दिल्ली और आसपास के कुछ इलाकों के बीच बहुत सारे मामलों में एक दूसरे पर निर्भरता को देखते हुए इन्हें आपस में जोड़ने के लिए ही एनसीआर यानी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र बनाया गया। इसके सकारात्मक नतीजे भी सामने आए। खासतौर पर बस या मेट्रो ट्रेन जैसे सार्वजनिक परिवहन के साधनों के चलते आज आवास और रोजगार की जगहों के एनसीआर के दो इलाकों में होने से लोगों को परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता। लेकिन तिपहिया वाहन के राज्य की सीमा पार करने पर पाबंदी एक बड़ी बाधा बनी हुई थी। करीब साल भर पहले दिल्ली के परिवहन विभाग की एनसीआर में तिपहिया वाहनों के निर्बाध परिचालन की घोषणा के बावजूद इस दिशा में कोई खास प्रगति नहीं हो सकी। मगर अब दिल्ली के परिवहन विभाग की ओर से तिपहिया वाहन चालकों को परमिट जारी करने की शुरुआत के साथ ही एनसीआर में लोगों की सुगम आवाजाही के मोर्चे पर एक और बाधा खत्म हो गई लगती है। अब गाजियाबाद और नोएडा से लोग जीपीएस लगे आॅटो में सीधे दिल्ली तक आ-जा सकेंगे। इन वाहनों की पहचान भले अलग होगी, लेकिन इनके सामान्य परिचालन के बाद इन पर निर्भर लोगों का सफर आसान हो जाएगा।
नोएडा, गाजियाबाद, फरीदाबाद और गुड़गांव जैसे शहरों से लाखों लोग रोजाना रोजी-रोटी या दूसरे कामों से दिल्ली आते-जाते हैं। इसी तरह दिल्ली में रहने वाले लोगों का भी इन शहरों में बराबर आना-जाना लगा रहता है। लेकिन हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सीमा में दिल्ली के परमिट वाले तिपहिया वाहनों के प्रवेश पर मनाही के चलते लोगों को खासी परेशानी होती रही है। यही स्थिति दिल्ली आने वाले तिपहिया वाहनों के मामले में भी थी। एनसीआर का हिस्सा होने के बावजूद दिल्ली से नोएडा या फरीदाबाद जाने के लिए सीमा पर ऑटो बदलना पड़ता रहा है। हालांकि इस मसले पर लंबे समय से दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के बीच बातचीत चल रही थी और करीब सात साल पहले एक समझौते पर हस्ताक्षर भी हुए थे। इसके अलावा दिल्ली सरकार की हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के साथ एक दूसरे के इलाके में निर्बाध सार्वजनिक परिवहन पर भी सहमति बनी थी। उसके तहत बसों और टैक्सियों के लिए रास्ता खुल गया, मगर तिपहिया वाहनों पर पाबंदी कायम रही।
सवाल है कि जब एनसीआर में बसों, मेट्रो या टैक्सियों के परिचालन में कोई बाधा नहीं है तो केवल तिपहिया को इससे बाहर रखने का क्या औचित्य था? फिर जहां एनसीआर में तेजी से विस्तार करते मेट्रो के किराए में पूरी तरह समानता है, वहीं बसों के मामले में कई बार बड़ा फासला देखने में आता है। इस लिहाज से ताजा पहल में तिपहिया के किराए को समान ढांचा देने की बात स्वागतयोग्य है। लेकिन यह ध्यान रखने की जरूरत है कि तमाम दावों और सख्त कदम उठाने की घोषणा के बावजूद मनमाना किराया वसूलने वाले ऑटो चालकों पर दिल्ली में भी अब तक पूरी तरह लगाम नहीं लगाई जा सकी है, कई के मीटर भी नहीं होते। आमतौर पर मीटर के बजाय पहले ही किराया तय करके चलना चाहते हैं। लोगों का यह अधिकार है कि वे उचित किराए पर अपने गंतव्य तक पहुंचें। इसलिए तिपहिया वाहनों की सुविधा में विस्तार के साथ-साथ किराये संबंधी मनमानी पर अंकुश लगाने की भी जरूरत है।
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