गणतंत्र दिवस के मौके पर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की सुरक्षा के मद्देनजर पूरी दिल्ली में पंद्रह हजार सीसीटीवी कैमरे लगाए जाने की खबरें आई थीं। उस दौरान दिल्ली में अभूतपूर्व सुरक्षा-व्यवस्था की गई थी। लेकिन अब उचित ही यह सवाल उठ रहा है कि ओबामा की सुरक्षा के लिए सरकार अगर इतना मुस्तैद हो सकती है, तो राजधानी में महिलाओं को सुरक्षित माहौल मुहैया कराने के मामले में वह संवेदनशील क्यों नहीं दिखती! इस मसले पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी कहा है कि अगर सरकार किसी और देश के मुखिया के दौरे के समय इतने बड़े पैमाने पर सीसीटीवी कैमरा लगा सकती है, तो देश की महिलाओं की सुरक्षा के मकसद से ऐसा क्यों नहीं हो सकता! हालांकि सरकार की ओर से यह बताया गया कि केवल साढ़े आठ सौ कैमरे लगाए गए थे और वे किराए पर लिए गए थे। गौरतलब है कि इस मसले पर अदालत में दाखिल एक याचिका में कहा गया था कि सोलह दिसंबर, 2012 को दिल्ली में हुई बलात्कार और हत्या जैसी बर्बर घटनाओं के मद्देनजर यह निर्देश दिया जाए कि अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा की सुरक्षा के मकसद से लगाए गए सीसीटीवी कैमरों को वहीं रहने दिया जाए, ताकि राजधानी का हर नागरिक और खासकर महिलाएं खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें। यों ऐसी मांग उठने से पहले खुद सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह किसी भी अपराध की स्थिति को खत्म करे और कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर ऐसे इंतजाम करे कि आपराधिक प्रवृत्ति के लोग किसी घटना को अंजाम देने की हिम्मत न करें।
मगर आमतौर पर ऐसा होता नहीं है। जब भी कोई घटना चर्चा में आती है, तब सरकार और पुलिस की ओर से भविष्य में सब कुछ ठीक कर देने के दावे किए जाते हैं। मगर कुछ ही दिनों में हालात फिर वैसे हो जाते हैं। यह बेवजह नहीं है कि कुछ अपराधी मानसिकता वाले लोग चौकस सुरक्षा-व्यवस्था के दावों को धता बता कर बेखौफ अपना काम करते रहते हैं। पिछले दिनों जिस समय दिल्ली में अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा की यात्रा को लेकर राष्ट्रीय राजधानी में चप्पे-चप्पे पर पुलिस की नजर होने और सुरक्षा के चाक-चौबंद इंतजाम होने का दावा किया जा रहा था, उसी दौरान वसंतकुंज इलाके में एक ऑटो चालक ने रूसी महिला के साथ बलात्कार की कोशिश की और नाकाम रहने पर पत्थर से मार कर उसे घायल कर दिया। सवाल है कि आखिर सुरक्षा-व्यवस्था की प्राथमिकता क्या है! करीब महीने भर पहले खुद दिल्ली पुलिस ने एक आकलन पेश किया, जिसके मुताबिक स्थिति में सुधार के तमाम वादों के बावजूद महिलाओं के खिलाफ अपराध में दोगुनी बढ़ोतरी दर्ज की गई। इसके अलावा, यह छिपा नहीं है कि समाज और पुलिस के रवैए की वजह से आज भी बहुत सारे मामलों की शिकायत पुलिस में दर्ज नहीं हो पाती। सिर्फ दर्ज शिकायतों पर अगर ईमानदारी से कार्रवाई हो तो कायदे से अपराधों में कमी आनी चाहिए। लेकिन पुलिस थानों के अलावा राष्ट्रीय महिला आयोग के पास पहुंचने वाली शिकायतों में भी लगातार वृद्धि से पता चलता है कि ऐसा नहीं हो पा रहा है। ऐसे में अदालत की यह टिप्पणी बिल्कुल उचित है कि अगर सरकार एक शख्स की सुरक्षा के लिए इतनी सक्रिय हो सकती है, तो हजारों-लाखों महिलाओं की सुरक्षा के लिए इसी तरह के इंतजाम क्यों नहीं किए जा सकते। बात सिर्फ कैमरे लगाने की नहीं, उनके सही ढंग से संचालन और उनसे मिले चित्रों का ठीक से विश्लेषण करने की भी व्यवस्था हो।
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