सरकारी दस्तावेजों के लीक होने की घटनाएं पहले भी कभी-कभार हुई हैं। लेकिन दिल्ली पुलिस ने जिस कांड का भंडाफोड़ किया है वह दो खास कारणों से चौंकाता है। एक तो यह कि यह सब बरसों से चल रहा था। दूसरे, इसका दायरा बहुत व्यापक है। यह सही है कि गोपनीय जानकारियां चुराने वाले गिरोह ने सबसे ज्यादा सेंधमारी पेट्रोलियम मंत्रालय की फाइलों में की, मगर कोयला, बिजली, दूरसंचार जैसे अन्य मंत्रालय भी उनकी सेंध से बचे नहीं थे। इस मामले को कॉरपोरेट जासूसी कांड कहा जा रहा है। पर ऐसा कहना क्या उचित है? भ्रष्टाचार या काले धन का पता लगाने और आंतरिक सुरक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा, कानून-व्यवस्था जैसे कुछ खास मकसद से जासूसी राज्य करता है और इसके लिए उसके पास संवैधानिक अधिकार होते हैं।

ताजा मामले में बिचौलिए और कुछ कर्मचारी जो कर रहे थे वह जासूसी नहीं, अपराध है। दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा की कार्रवाई से जो हकीकत सामने आई है उसने कई सारे सवाल खड़े किए हैं। यह सुनने में आता रहा है कि सरकार की नीतियों और फैसलों को प्रभावित करने के लिए कंपनियां जब-तब दबाव डालती रहती हैं। अगर यह खुले रूप में रहता है तो इसे एक समूह के अपने कारोबारी हितों के लिए स्वाभाविक प्रयास के रूप में देखा जाता है। यह सरकार पर निर्भर करता है कि वह किस मांग को माने या न माने। मगर जो होता रहा वह सेंध लगाना था, लॉबिंग नहीं। इसलिए इस मामले के मद्देनजर एक उद्योग समूह का यह सुझाव एकदम बेतुका है कि लॉबिंग को कानूनी रूप दे देना चाहिए।

कई मंत्रालयों की फाइलों की चोरी की वारदातों ने सरकारी कामकाज की विश्वसनीयता को सर्वोच्च स्तर पर ऐसा नुकसान पहुंचाया है जिसकी दूसरी मिसाल शायद ही मिले। बरसों से यह गोरखधंधा चलता रहा, तो इसके पीछे सिर्फ निगरानी में रही चूक थी, या कार्रवाई के लिए इच्छाशक्ति की कमी भी? जो हो, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पदभार संभालते ही सख्त और सतर्क प्रशासन के संकेत दिए थे। पर यह हैरत की बात है कि कई-कई मंत्रालयों के दस्तावेजों की चोरी और इसके पीछे एक बड़े गिरोह का हाथ होने की बात सामने आने के बाद भी सारे मामले की जांच अभी तक सीबीआइ को क्यों नहीं सौंपी गई है? दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने सराहनीय काम किया है, पर इस मामले की जांच सीबीआइ को सौंपी जानी चाहिए। यह मान लेना निहायत भोलापन होगा कि सरकार की नाक के नीचे सारा खेल केवल कुछ बिचौलियों और कुछ अदना कर्मचारियों का था। कोई चपरासी या क्लर्क कैसे यह जान सकता है कि पेट्रोलियम मंत्रालय की किस फाइल में क्या है और वित्तमंत्री के बजट भाषण के किस अंश को चुरा कर लाने से मुंहमागी कीमत मिलेगी। कई पूर्व नौकरशाह सेवानिवृत्त होते ही किसी न किसी कंपनी की सेवा में ऊंचे ओहदे पर लग जाते हैं। इसलिए संभव है जिन लोगों की गिरफ्तारी हुई है उनसे ऊपर के भी कुछ लोगों की इस सब में मिलीभगत रही हो।

जांच और कार्रवाई इस कोण से भी होनी चाहिए कि चुराए गए दस्तावेजों के लाभार्थी कौन थे और उन्होंने चोरी से हासिल सूचनाओं का क्या-क्या इस्तेमाल किया। पिछली सरकार के समय जब जयपाल रेड्डी पेट्रोलियम मंत्री बनाए गए तो उन्हें इस सेंधमारी की भनक थी। इसीलिए उन्होंने खुफिया ब्यूरो से कुछ नौकरशाहों पर नजर रखने की सिफारिश की थी और कई कर्मचारियों और चपरासियों की ड्यूटी बदल दी थी। रेड्डी का मंत्रालय बदल दिया गया। उन्हें क्यों हटाया गया यह आज भी रहस्य है। सचिव स्तर के अनेक अधिकारियों की भी ड्यूटी संदिग्ध ढंग से बदले जाने के आरोप लगते रहे हैं। लिहाजा, सबसे अहम तकाजा यह है कि सारे मामले को तर्कसंगत परिणति तक पहुंचाया जाए।

 

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