बिहार में करीब महीने भर से कयास लगाए जा रहे थे कि मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को हटा कर एक बार फिर नीतीश कुमार राज्य का नेतृत्व संभालने की तैयारी कर रहे हैं। मगर शीर्ष स्तर के नेताओं की ओर से कई बार जद (एकी) के भीतर चल रही उठा-पटक को लेकर सफाई दी गई कि पार्टी में कोई मतभेद नहीं हैं और मांझी को नहीं हटाया जाएगा। अब राज्य में तेजी से बदलते राजनीतिक घटनाक्रम से साफ है कि जद (एकी) के भीतर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। पार्टी अध्यक्ष शरद यादव ने स्थिति को संभालने के लिए जिस तरह अचानक सात फरवरी को विधायक दल की बैठक बुलाने की बात कही, उसके बाद परदे के पीछे चल रहा टकराव सामने आ गया। मांझी ने साफ कह दिया कि अध्यक्ष की यह पहल नियमों के अनुकूल नहीं है और विधायक दल की बैठक बीस फरवरी को होगी। हालांकि इस मसले पर जद (एकी) की ओर से यह कहा गया कि पार्टी के संविधान के तहत अध्यक्ष को विधायक दल की बैठक बुलाने का अधिकार है। साफ है कि अगर यह टकराव इसी दिशा में आगे बढ़ा तो इसका सीधा असर बिहार सरकार की स्थिरता पर पड़ेगा। खबरें यहां तक आ चुकी हैं कि मांझी की कुर्सी पर खतरा पैदा हुआ तो वे विधानसभा भंग करने की सिफारिश भी कर सकते हैं।

गौरतलब है कि पिछले साल जब लोकसभा चुनाव में जद (एकी) की बड़ी हार हुई तो उसे राज्य सरकार के प्रति जनता का भरोसा टूटने की तरह देखा गया। इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और उनकी जगह जीतन राम मांझी को नेतृत्व सौंपा गया। सामाजिक तौर पर महादलित वर्ग से आने वाले मांझी के कुर्सी संभालने के बाद राज्य की राजनीति में कमजोर तबकों के लिए जगह बचे होने का संदेश गया। चुनावों में दलित और अति पिछड़ी जातियों के वोटों की गोलबंदी के लिहाज से भी इसे अनुकूल माना गया। लेकिन पिछले कुछ समय से जिस तरह की खींचतान चल रही है, उससे ऐसा लगता है कि यह नेतृत्व के लिए महत्त्वाकांक्षाओं का टकराव है। यों अगर किन्हीं हालात में विवाद सुलझ गया और सब कुछ ठीक रहा तो राज्य सरकार का कार्यकाल नवंबर में खत्म होगा। लेकिन बढ़ते दबाव के बीच मांझी विधानसभा को भंग करने की सिफारिश कर देते हैं तो अगले कुछ महीने में चुनाव की नौबत भी आ सकती है।

दूसरी ओर, भाजपा जद (एकी) में मची इस उथल-पुथल का लाभ उठाने की तैयारी में दिखती है। जद (एकी) और भाजपा के बीच अलगाव के बाद राजद के सहयोग से जीतन राम मांझी के मुख्यमंत्री बनने के बाद जिस भाजपा ने राज्य में ‘जंगल राज’ लौटने का शोर मचाना शुरू कर दिया था, वह फिलहाल मांझी के प्रति अप्रत्याशित सहानुभूति दर्शा रही है। अफवाहें यहां तक उड़ीं कि अगर मांझी को अपमानित किया गया तो वे भाजपा का दामन थाम सकते हैं। जाहिर है, भाजपा का मकसद आंतरिक टकराव को टूट में बदलते देखना है, ताकि इस बिखराव का फायदा उसे मिल सके। अगले चुनावों में भाजपा की चुनौती के मद्देनजर ही जनता परिवार के एका की कोशिशें चल रही थीं और कम से कम बिहार में राष्ट्रीय जनता दल और जद (एकी) के विलय की बात जोर पकड़ चुकी थी। लेकिन फिलहाल जद (एकी) जिस उथल-पुथल के दौर में है, उसमें भाजपा के विरोध में एक ठोस मोर्चे की बात अधर में लटक गई लगती है। अगर यही स्थिति बनी रही तो इसका सीधा लाभ राज्य में भाजपा को मिल सकता है।

 

फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें- https://www.facebook.com/Jansatta

ट्विटर पेज पर फॉलो करने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/Jansatta