पद्म भूषण सम्मान के लिए खुद को नजरअंदाज किए जाने पर बैडमिंटन खिलाड़ी और ओलंपिक पदक विजेता सायना नेहवाल की नाराजगी के बाद आखिरकार खेल मंत्रालय ने उनका नाम गृह मंत्रालय को भेज दिया है। अब यह विवाद शायद थम जाए। पर इससे एक बार फिर यह सवाल उठा है कि किसी शख्सियत को पद्म सम्मानों के लिए चुने जाने के पैमाने क्या होते हैं! गौरतलब है कि 2014 के पद्म भूषण सम्मान के लिए खेल मंत्रालय की ओर से कुश्ती में दो बार के ओलंपिक विजेता सुशील कुमार का नाम विशेष मामले के तौर पर गृह मंत्रालय को भेजे जाने के बाद सायना नेहवाल ने निराशा जाहिर की थी। नियमों के मुताबिक दो पद्म भूषण सम्मानों के बीच पांच साल का अंतराल जरूरी है। सायना नेहवाल ने इसी आधार पर अपनी दावेदारी पेश करते हुए कहा कि सुशील कुमार का नाम भेजा जा सकता है तो उनका क्यों नहीं! वे भी पांच साल का अंतराल पूरा कर चुकी हैं। सायना का नाम पहले न भेजे जाने को लेकर खेल मंत्रालय ने सफाई दी है कि बीएआइ यानी बैडमिंटन एसोशिएशन आॅफ इंडिया ने समय रहते उनके नाम की सिफारिश नहीं भेजी थी। लेकिन मीडिया में आई खबरों के मुताबिक बीएआइ ने सायना को पद्म भूषण देने से संबंधित पत्र पहले ही भेज दिया था और वह खेल मंत्रालय में ग्यारह अगस्त को पहुंच गया था। सवाल है कि खेल मंत्रालय और बीएआइ के दावों में कौन सही है और इतने महत्त्वपूर्ण सम्मान के मसले पर ऐसी अप्रिय स्थिति कैसे पैदा हुई।
पद्म पुरस्कारों की गरिमा के लिहाज से होना यह चाहिए कि जब भी इसके लिए किसी व्यक्ति का चुनाव हो तो उसे लेकर किसी को एतराज न हो और उस पर किसी विवाद की गुंजाइश न रहे। लेकिन गाहे-बगाहे देश के सर्वश्रेष्ठ सम्मानों तक को लेकर जिस तरह की आपत्तियां उठती रही हैं, उससे यही लगता है कि हर सरकार अपनी सुविधा से इनके लिए लोगों का नाम चुनती रही है। क्रिकेट में उपलब्धियों के लिए जब सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न के लिए चुना गया तो सवाल उठे थे कि आखिर हॉकी की दुनिया में देश को शीर्ष पर पहुंचाने वाले मेजर ध्यानचंद को इसके लिए सुपात्र क्यों नहीं समझा गया।
उस्ताद विलायत खान और कत्थक नृत्यांगना सितारा देवी जैसी शख्सियतों ने चयन की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए पद्म सम्मान लौटा दिया था। गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय काफी पहले इस मसले पर सुझाव दे चुका है कि पद्म पुरस्कार पाने के हकदार शख्सियतों को चुनने के लिए राष्ट्रीय चयन समिति गठित की जाए, जिसमें लोकसभा अध्यक्ष, भारत के मुख्य न्यायाधीश या उनके प्रतिनिधि, लोकसभा में विपक्ष के नेता आदि शामिल हों। पद्म पुरस्कारों के चयन में पारदर्शिता लाने के लिए 1996 में उपराष्ट्रपति पद पर रहते हुए केआर नारायणन ने एक उच्चस्तरीय समीक्षा समिति बनाई थी। लेकिन इन सम्मानों को निर्विवाद बनाने के लिए सरकारों ने अब तक क्या किया है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि खासकर पद्म पुरस्कारों को लेकर अक्सर सवाल उठते रहते हैं। सवाल यह भी है कि जब संयुक्त राष्ट्र दूरदराज में रहने वाले और प्रचार से अलग सामाजिक उत्थान में लगे किसी साधारण व्यक्ति को सम्मानित कर सकता है, तो क्या पद्म पुरस्कारों के दायरे में कुछ विशेष और जन-उपयोगी काम करने वाले आम लोग नहीं आ सकते!
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