अन्य लोगों की तरह राजनीतिकों को भी कुछ समय के अवकाश की जरूरत हो सकती है। पश्चिम में तो नेताओं का छुट्टी पर जाना आम बात है। लेकिन कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के अचानक अवकाश पर चले जाने से कई सवाल उठे हैं, कुछ अटकलें भी लगाई गई हैं। कांग्रेस का कहना है कि उन्होंने छुट्टी पर जाने से पहले पार्टी को औपचारिक तौर पर सूचित किया, लौट कर वे फिर से पार्टी के काम में सक्रियता से लग जाएंगे। पार्टी ने यह भी कहा है कि उनके इस समय अवकाश पर जाने का मकसद कुछ समय एकांत में रह कर पार्टी की और अपनी भविष्य की भूमिका पर चिंतन-मनन करना है।
बजट सत्र से पहले छुट्टी पर जाने और सोच-विचार के लिए पर्याप्त गुंजाइश थी, बजट सत्र के दो हिस्सों के बीच भी इसके लिए समय निकाला जा सकता था। फिर राहुल गांधी ने अवकाश के लिए यही वक्त क्यों चुना, जब संसद का बजट सत्र शुरू हो रहा था। सोनिया गांधी के बाद राहुल ही कांग्रेस के सबसे प्रमुख नेता हैं, लोकसभा चुनाव में वही पार्टी का चेहरा भी थे। फिर उन्होंने अवकाश का समय चुनते हुए संसदीय सत्र का खयाल क्यों नहीं किया? इसी सत्र में भूमि अधिग्रहण अध्यादेश की जगह विधेयक लाने की तैयारी सरकार ने कर रखी थी। कांग्रेस इस अध्यादेश का विरोध करती रही है। उसने धरने का भी कार्यक्रम तय किया हुआ है, जिसकी अगुआई शायद राहुल को ही करनी थी। फिर उनके एकाएक छुट््टी लेने की खबर कैसे आ गई? इससे अधिक माकूल मुद््दा सरकार को घेरने के लिए और क्या हो सकता है?
राहुल गांधी ने एक समय भट्टा पारसौल से मनमाने अधिग्रहण के खिलाफ मुहिम छेड़ी थी। फिर अंगरेजी हुकूमत के जमाने में बने कानून की जगह भूमि अधिग्रहण संबंधी नया कानून यूपीए सरकार के समय बना, तो इसमें उनकी अहम भूमिका थी। पर जब संसद से सड़क तक अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ आवाज उठ रही है, तो वे गैरहाजिर हैं! कोई कह सकता है कि उनकी अनुपस्थिति संसद को बहुत नहीं खलेगी, क्योंकि वे कोई मुखर नेता नहीं हैं। चाहे संसद में हों या बाहर, वे अपनी पसंद से कभी कोई मुद््दा उठाते हैं, फिर छोड़ देते हैं। अधिकतर मसलों पर लोग नहीं जान पाते कि उनका नजरिया क्या है। पार्टी को इसका नुकसान भी उठाना पड़ा है। उनकी अनुपस्थिति से बजट सत्र में कांग्रेस की संसदीय भूमिका पर कोई फर्क भले न पड़े, पार्टी को एक असहज स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। अटकलें लगाई जा रही हैं कि पार्टी के कामकाज और संगठन में फेरबदल की राहुल की योजना कुछ वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं को रास नहीं आ रही थी। इससे पैदा हुई खिन्नता अवकाश के पीछे रही होगी।
तो क्या राहुल जिस दिशा में पार्टी को ले जाना चाहते हैं उसके लिए पार्टी का एक धड़ा तैयार नहीं है? इस वक्त वाकई कांग्रेस को नए विचारों और नई कार्य-योजना की जरूरत है, जो लोकसभा चुनाव और फिर हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड, दिल्ली में मिली करारी शिकस्त के बाद पार्टी को हताशा से उबारने और कार्यकर्ताओं के बुरी तरह लड़खड़ाते मनोबल को संभालने में मदद कर सके। विपक्ष में आने के बाद पार्टी को संघर्ष की योजना भी बनानी है, गठजोड़ और रणनीति की बाबत भी नए सिरे से सोचना है। अप्रैल में संभावित पार्टी के अगले अधिवेशन के मद््देनजर सांगठनिक पुनरुद्धार और पुनर्गठन के सवाल तो उसके सामने हैं ही। हो सकता है राहुल गांधी का लौटना पार्टी की उम्मीदों के अनुरूप हो, यानी वे नई कार्य-योजना और नई रणनीति की रूपरेखा के साथ लौटें। पर क्या उसे पार्टी में वे आम राय से स्वीकृत और लागू करा सकेंगे!
फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करें- https://www.facebook.com/Jansatta
ट्विटर पेज पर फॉलो करने के लिए क्लिक करें- https://twitter.com/Jansatta