मोदी सरकार की जो खास उपलब्धियां गिनाई जा सकती हैं उनमें एक यह भी है कि संयुक्त राष्ट्र से योग के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस घोषित करवाने में उसे कामयाबी मिली। सितंबर 2014 में संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने का आग्रह किया था। उनके इस प्रस्ताव को खासा समर्थन मिला। चालीस इस्लामी राष्ट्रों समेत करीब एक सौ नब्बे देशों ने उनकी इस पहल की हिमायत की। नतीजतन संयुक्त राष्ट्र ने योग दिवस मनाए जाने का प्रस्ताव मंजूर कर लिया और इसके लिए इक्कीस जून का दिन तय किया। पिछले साल इक्कीस जून को पहला अंतरराष्ट्रीय दिवस था और इस बार दूसरा है। पिछली बार की तरह इस बार भी काफी धूमधाम से यह दिन मनाया जा रहा है।
पिछली बार प्रधानमंत्री ने दिल्ली में राजपथ पर हजारों लोगों के साथ योगाभ्यास किया था, इस बार उनकी भागीदारी के साथ योग का वैसा ही नजारा चंडीगढ़ में होगा। इसके अलावा भी देश भर में ढेर सारे आयोजनों की तैयारियां कई दिनों से चल रही थीं। इस सारी धूमधाम से योग को खूब प्रचार मिला है। योग के प्रति अधिक से अधिक लोग आकृष्ट हों, यह अच्छी बात है। लेकिन यह सारा तामझाम और उत्साह क्या उस योग के लिए है जिसे रविवार को जारी हुए अपने एक संदेश में प्रधानमंत्री ने ‘भारत की प्राचीन परंपरा का अमूल्य उपहार’ कहा है। एक आध्यात्मिक साधना पद्धति और दर्शन के रूप में भारत में हजारों वर्षों से योग की परंपरा रही है। बाकी विश्व भी सदियों से इससे कुछ हद तक परिचित रहा है। लेकिन पिछले कुछ दशकों से पश्चिमी देशों में जिस चीज को लोकप्रियता मिली है वह योग नहीं, योगा है। यानी वे इसे शरीर को लचीला और दुरुस्त रखने की एक कारगर विधि के तौर पर देखते हैं। भारत में भी आम समाज में यह दृष्टिकोण और रुझान बढ़ता गया है।
यों व्यायाम के तौर पर भी योग की अद्भुत उपयोगिता है। जीवनशैली-जनित बीमारियां बढ़ती गई हैं। तनाव, अवसाद और अन्य मानसिक रोग भी बढ़े हैं। इस सब से निपटने और स्वास्थ्यप्रद जीवनशैली के लिए योग के महत्त्व से इनकार नहीं किया जा सकता। पर हमें नहीं भूलना चाहिए कि योग के और गहन पक्ष भी हैं। योग को चित्तशुद्धि का माध्यम माना जाता रहा है। चित्तशुद्धि का विद्वेष की राजनीति से कोई संबंध नहीं हो सकता। फिर, दूसरी बात यह कि जो लोग योग के लिए बहुत उत्साहित हैं, वे स्वास्थ्य से जुड़ी दूसरी चीजों की फिक्र क्यों नहीं करते? मसलन, प्राणायाम के महत्त्व का बखान करने वाले वायु प्रदूषण को लेकर चिंतित क्यों नहीं हैं?
योग का अलख जगाने के लिए केंद्र के सभी मंत्री देश भर में अलग-अलग जगह जा धमके, इनमें से दस मंत्री सिर्फ उत्तर प्रदेश में, जहां अगला सबसे बड़ा चुनावी मुकाबला होना है। क्या यह सब सिर्फ योग के लिए है? अगर सरकार में योग के लिए इतना जोश है, तो वह जन-स्वास्थ्य के बाकी तकाजों को लेकर सक्रिय क्यों नहीं दिखती? सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा की बदहाली और दवा समेत चिकित्सा सुविधाओं के दिनोंदिन और महंगे होते जाने की हकीकत किसी से छिपी नहीं है। योग का जाप कर सरकार जन-स्वास्थ्य से जुड़ी अपनी जिम्मेवारियों से पल्ला नहीं झाड़ सकती।