हरियाणा के नूंह में ब्रजमंडल धार्मिक यात्रा पर हुई पत्थरबाजी के बाद प्रशासन ने वहां अवैध निर्माणों और सरकारी जमीन पर अतिक्रमण को हटाना शुरू कर दिया था। बताया जा रहा था कि इन्हीं इमारतों से पत्थर बरसाए गए थे। अब पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने स्वत: संज्ञान लेते हुए वहां इमारतों को बुलडोजर से ढहाने पर रोक लगा दी है। प्रशासन का दावा है कि अब तक सैंतीस जगहों पर साढ़े सत्तावन एकड़ जमीन से अवैध निर्माण हटा दिए गए हैं।

दंगाइयों, अपराधियों के मकानों-दुकानों पर बुलडोजर चलाने का चलन

नूंह में अब तक एक सौ बासठ स्थायी और पांच सौ इक्यानबे अस्थायी निर्माण गिराए जा चुके हैं। प्रशासन अब भी अपने फैसले पर अडिग है कि मेवात इलाके में सारे अवैध निर्माणों की पहचान की जा रही है और उन्हें गिराया जाएगा। दरअसल, पिछले कुछ वर्षों से दंगा फैलाने वालों, दूसरे तरह के अपराधों में शामिल लोगों को दंडित करने का यह चलन चल पड़ा है कि उनके मकान-दुकान पर बुलडोजर चला कर ध्वस्त कर दिया जाता है। यह चलन सबसे पहले उत्तर प्रदेश सरकार ने शुरू किया था। उसकी नकल में मध्यप्रदेश सरकार ने भी आपराधिक तत्त्वों पर नकेल कसने का यह तरीका अपना लिया। अब हरियाणा सरकार भी उसी रास्ते पर चल चुकी है।

सरकारी जमीन पर कब्जा करके किसी भी प्रकार के निर्माण को जायज नहीं ठहराया जा सकता। उसे कानूनन ध्वस्त करने का सरकार के पास अधिकार है। मगर इस तरह बुलडोजर चलाने को लेकर सवाल इसलिए उठने लगे हैं कि प्रशासन को किसी अवैध निर्माण के बारे में तभी जानकारी क्यों मिलती है, जब वहां दंगा भड़क उठता है या कोई बड़ा अपराध हो जाता है।

हालांकि दूसरी सरकारों की तरह हरियाणा सरकार का भी कहना है कि जिन लोगों ने नूंह में अवैध कब्जा करके निर्माण कार्य किए थे, उन्हें पहले ही नोटिस भेजा जा चुका था। मगर फिर भी यह तर्क गले नहीं उतरता कि उन्हें ढहाने के लिए बुलडोजर तभी क्यों चले, जब धार्मिक यात्रा पर पत्थर बरसे और हरियाणा के अलग-अलग शहरों में सांप्रदायिक तनाव बढ़ गया। आखिर इतने बड़े भूखंड पर इतने सारे अवैध निर्माण रातोंरात तो हो नहीं गए होंगे।

ऐसा भी नहीं माना जा सकता कि इससे पहले वे निर्माण प्रशासन की नजर में नहीं रहे होंगे। यह भी छिपी बात नहीं है कि सरकारी भूखंडों पर ज्यादातर कब्जे सरकारी अमले की मिलीभगत से होते हैं। ऐसे में अगर पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने अभी चल रहे विध्वंस पर रोक लगाई है, तो उसके सवालों का जवाब देना प्रशासन के लिए आसान नहीं होगा।

अवैध निर्माण गिराने के ऐसे अभियानों में कई शिकायतें ऐसी आईं, जिनमें उन भवनों पर भी बुलडोजर चला दिया गया, जिनमें किसी भी प्रकार का अवैध निर्माण नहीं हुआ था। मध्यप्रदेश में तो एक शिकायतकर्ता ने कहा कि उसे मकान प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मिला था। इसलिए भी सरकारों की बुलडोजर प्रथा पर सवाल उठते आ रहे हैं। ऐसे दंगों में किसी पर अपराध सिद्ध होने से पहले ही सरकारें अगर उनके मकान ध्वस्त कर देती है, तो इसे न्याय नहीं कहा जा सकता।

लोग बड़ी मशक्कत और हसरत से घर बनाते हैं, उन घरों में पूरे परिवार का सपना पलता है, उन्हें बुलडोजर चला कर बेघर कर देना किसी कल्याणकारी सरकार का कदम नहीं माना जा सकता। अवैध निर्माण हटाने के भी नियम-कायदे हैं, उनका पालन होना ही चाहिए। पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय की रोक सरकार के लिए एक सबक है।