लोकसभा चुनाव में मिली जबर्दस्त कामयाबी से नरेंद्र मोदी की छवि नायक की बन गई। मोदी खुद भी इसका श्रेय लूटते रहे। उनकी पार्टी के लोगों समेत उनके समर्थकों ने इस तरह मोदी-महिमा गान शुरू किया मानो यही हर समस्या का समाधान हो। कांग्रेस-मुक्त भारत का नारा लगाने वालों को व्यक्ति-पूजा की कांग्रेसी संस्कृति से कोई परहेज नहीं है बल्कि वे इसमें कुछ कदम आगे ही दिखते हैं। इस प्रवृत्ति का चरम रूप मोदी के गृहराज्य गुजरात में दिखा है। राजकोट में कुछ मोदी-प्रशंसकों ने एक मंदिर बनाया है, जिसमें नरेंद्र मोदी की आवक्ष प्रतिमा की प्रतिष्ठापना की जानी थी। गुजरात के कृषिमंत्री ने इस कार्य के लिए सहमति भी दे दी थी। मगर जब इस बाबत समाचार छपे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एतराज जाहिर किया कि हमारी संस्कृति में किसी जीवित व्यक्ति का मंदिर बनाने की परंपरा नहीं है। बहरहाल, मंदिर के संयोजकों ने अब वहां भारत माता की प्रतिमा लगाने की घोषणा कर दी है। मगर सवाल है कि मोदी ने पहले ही इस मंदिर को बनने से क्यों नहीं रोका। मंदिर के संयोजकों का कहना है कि वे तब से इस स्थान पर नरेंद्र मोदी की तस्वीर रख कर पूजा-पाठ कर रहे हैं, जब मोदी पहली बार विधानसभा का चुनाव जीते और मुख्यमंत्री बने थे।
साल भर पहले भी अखबारों में इस मंदिर के बारे में खबरें छपी थीं। अब उन्होंने संगमरमर की मूर्ति बनवा ली है। पहले जहां झोपड़ीनुमा मंडप था, वहां पक्का भवन तैयार कर लिया गया है। पिछले लोकसभा चुनाव के वक्त जब मोदी ने चाय पर चर्चा कार्यक्रम शुरू किया तो यह स्थान उसका प्रमुख केंद्र हुआ करता था। ऐसे में यह नहीं माना जा सकता कि मोदी को इस मंदिर और इसके स्वरूप के बारे में जानकारी नहीं रही होगी। संयोजकों का कहना है कि यह मंदिर सरकारी जमीन पर बना है और उसे अतिक्रमण करके हासिल किया गया है। तो क्या यह माना जाए कि राजकोट के प्रशासन को भी इस मंदिर के बारे में कोई जानकारी नहीं थी! जो हो, मोदी के एतराज के बाद अब उनका मंदिर नहीं बनेगा। पर क्या इससे यह उम्मीद की जानी चाहिए कि वे अपने समर्थकों, कार्यकर्ताओं और पार्टीजनों को ऐसी दूसरी गतिविधियों से विरत रहने को कहेंगे, जो भारतीय संस्कृति के विरुद्ध हैं!
कुछ समय से हिंदू महासभा नाथूराम गोडसे के महिमामंडन पर आमादा है। गोडसे का मंदिर बनाने के लिए पहले इस संगठन ने सरकारी जमीन आबंटित करने की मांग की। फिर कहा कि जमीन आबंटित नहीं की गई तो हिंदू महासभा के कार्यालय परिसर में ही गोडसे की मूर्ति स्थापित की जाएगी। पिछले दिनों राजस्थान के अलवर में एक नवनिर्मित पुल के उद्घाटन के कुछ दिन पहले उस पर नाथूराम गोडसे मार्ग की तख्ती लगा दी गई थी। अखबारों में इसकी तस्वीरें छपीं तो वहां की पुलिस सक्रिय हुई और किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर मामले को रफा-दफा कर दिया गया। सवाल है कि केंद्र में भाजपा सरकार आने के बाद ऐसी घटनाएं क्यों बढ़ी हैं? हद तो यह है कि भाजपा के एक सांसद भी गोडसे के महिमामंडन में शामिल हो गए। मोदी इस सब पर क्यों चुप्पी साधे रहे हैं?
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