प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यों तो क्रिकेट विश्व कप में शिरकत करने वाले सभी सार्क देशों के राष्ट्राध्यक्षों को फोन कर उनकी टीमों के लिए अपनी शुभकामना दी, पर इसमें खास महत्त्व पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से हुई बातचीत का ही है। सार्क देशों में एक पाकिस्तान ही है, जिसके साथ भारत के संबंध महीनों से तनाव भरे रहे हैं। मोदी की इस पहल को क्रिकेट कूटनीति कहा गया है। अलबत्ता क्रिकेट के जरिए नए सिरे से संवाद शुरू करने का यह पहला उदाहरण नहीं है। जिया-उल-हक और मुशर्रफ ने भी क्रिकेट कूटनीति का सहारा लिया था, जब दोनों देशों के रिश्ते बिगड़े हुए थे।

भारत ने पाकिस्तान के साथ विदेश सचिव स्तर की होने वाली वार्ता पिछले साल अगस्त में स्थगित कर दी थी। इसके पीछे हुर्रियत नेताओं से पाकिस्तान के उच्चायुक्त की मुलाकात से पैदा हुई नाराजगी थी। फिर, नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम के उल्लंघन की रह-रह कर होती रही घटनाओं ने संवाद बहाली की संभावना को और मुश्किल बना दिया। इस खटास की छाया पिछले साल काठमांडो में हुए सार्क के शिखर सम्मेलन में भी दिखी थी, जब मोदी और शरीफ दोनों एक दूसरे से कन्नी काटते रहे। उनका अनबोलापन सम्मेलन के आखिरी क्षणों में टूटा, जिसका श्रेय मेजबान देश के प्रधानमंत्री सुशील कुमार कोइराला को था। अब मोदी ने नए विदेश सचिव एस जयशंकर को सार्क के अन्य सदस्य देशों की यात्रा पर भेजने का फैसला किया है। जाहिर है, भारत के विदेश सचिव पाकिस्तान भी जाएंगे। और जैसा कि विदेश मंत्रालय ने कहा है, यह दौरा महज सांकेतिक नहीं होगा, उस अवसर पर द्विपक्षीय मसलों पर बातचीत भी होगी। इस तरह ठप पड़ी वार्ता प्रक्रिया को फिर से पटरी पर लाने का रास्ता साफ हो गया है।

देर से ही सही, यह दुरुस्त कदम है। कई महीनों बाद भारत के रुख में यह परिवर्तन क्यों आया, इसकी खास वजहों का अंदाजा लगाया जा सकता है। नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम की घटनाएं थम गई हैं। दूसरे, जम्मू-कश्मीर में नई सरकार पीडीपी की साझेदारी से ही बनेगी, ज्यादा संभावना है कि साझा सरकार की अगुआई भी उसी की हो। पीडीपी पाकिस्तान से बातचीत शुरू करने के पक्ष में है। फिर, अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी दोनों पड़ोसी देशों को बातचीत की मेज पर देखना चाहता है। यह केवल अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों की ही नहीं, सार्क के अन्य सदस्य देशों की भी इच्छा है। सार्क का एजेंडा ठहराव का शिकार है, और इसका एक बड़ा कारण भारत-पाकिस्तान की आपसी खटास ही रही है। सार्क विश्वविद्यालय की स्थापना के पुराने फैसले से लेकर सार्क-उपग्रह के मोदी के प्रस्ताव तक, सभी अधर में हैं। फिर, भारत-पाकिस्तान के बीच व्यापार बढ़ाने और वीजा उदारीकरण जैसे दोनों तरफ के नागरिकों के स्तर पर संपर्क और आवाजाही को प्रोत्साहित करने जैसे पहले के समझौते भी ठंडे बस्ते में चले गए हैं। क्रिकेट कूटनीति दरअसल जनता के स्तर पर संपर्क का ही एक रूपक है। यों दोनों देशों के बीच संवाद-गतिरोध तोड़ने की पहल क्रिकेट संबंधी शुभकामना के पहले ही हो गई थी, जब मोदी सरकार ने अपने पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को ‘तापी’ यानी ताजिकिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत के बीच प्रस्तावित गैस परियोजना पर बातचीत के लिए इस्लामाबाद भेजा था। प्रधान ने अलग से नवाज शरीफ से भी मुलाकात की थी। बहरहाल, पाकिस्तान से संबंध सुधार की कोशिशों को कई बार घरेलू राजनीति की संकीर्णता से पलीता लग जाता है। इस बारे में सजग रहना होगा।

 

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