संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता हासिल करने के लिए भारत लंबे समय से प्रयासरत है। इसके लिए चीन को छोड़ कर परिषद के बाकी स्थायी सदस्य अमेरिका, रूस, ब्रिटेन और फ्रांस समय-समय पर भारत की प्रबल दावेदारी का समर्थन भी करते रहे हैं। लेकिन हाल में इस मुद्दे पर अमेरिका के नए प्रशासन ने जो रुख दिखाया है, वह चिंता पैदा करने वाला है। संयुक्त राष्ट्र के लिए नामित अमेरिकी दूत लिंडा थॉमस ग्रीनफील्ड ने स्थायी सदस्यता के मुद्दे पर भारत का खुल कर समर्थन करने के बजाय यह कह दिया कि यह चर्चा का विषय है, क्योंकि कुछ दूसरे देश इन देशों को अपने क्षेत्र का प्रतिनिधि नहीं बनाने को लेकर समहत नहीं हैं।

भारत के संदर्भ में देखें तो उनका इशारा पाकिस्तान की ओर ही रहा होगा। इस मुद्दे पर भारत को लेकर बाइडेन प्रशासन ने अपना रुख अब तक साफ नहीं किया है। अमेरिका के इस बदले हुए रुख से यह संकेत मिलता है कि इस मुद्दे पर राष्ट्रपति जो बाइडेन भारत का खुल कर समर्थन करने से परहेज करेंगे, जैसा कि तीन पूर्व राष्ट्रपति- जॉर्ज बुश, बराक ओबामा और डोनाल्ड ट्रंप करते रहे थे। अगर ऐसा है तो यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता की दावेदारी के मुद्दे पर अमेरिका उलझन में क्यों है।

अमेरिका से भारत के रिश्ते काफी मजबूत रहे हैं, दोनों के बीच कारोबारी संबंध हैं, सैन्य करार हैं और पिछले कुछ समय में अरबो डॉलर के हथियारों के सौदे भी हुए हैं। ऐसे में अमेरिका भारत को लेकर अगर ऊहापोह में रहता है तो यह निश्चित रूप से उसकी बदलती नीतियों का संकेत माना जाना चाहिए। भारत को यह उम्मीद थी कि अमेरिका इस मुद्दे पर खुल कर उसका साथ देगा। यह उम्मीद इसलिए भी ज्यादा रही क्योंकि अपने चुनाव अभियान के एक नीतिगत दस्तावेज में बाइडेन ने भारत की स्थायी सदस्यता के लिए समर्थन के वादे को दोहराया था।

इसलिए अब अमेरिका का बदला रुख हैरान करने वाला है। भारत के अलावा जापान, जर्मनी और ब्राजील भी लंबे समय से सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की मांग उठा रहे हैं। लेकिन इटली, पाकिस्तान, मैक्सिको, मिस्र जैसे देश इसका विरोध करते रहे हैं। बाइडेन प्रसासन को यह समझना होगा कि बदलते अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में अगर कुछ देशों को सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता नहीं दी गई तो इस वैश्विक निकाय की प्रासंगिकता पर सवाल और तेजी उठने लगेगें और साथ ही असंतुलन भी पैदा होगा।

इसमें कोई संदेह नहीं कि जब तक सुरक्षा परिषद के मौजूदा स्थायी सदस्य इसके विस्तार पर सहमत नहीं होंगे, तब तक दूसरे देशों को परिषद के स्थायी सदस्य के रूप में शामिल करने का रास्ता नहीं खुलेगा। इसलिए संयुक्त राष्ट्र में सुधार की मांग भी लंबे समय से उठ रही है। भारत भी उन देशों में शामिल है जो संयुक्त राष्ट्र को और ज्यादा प्रभावी निकाय बनाने के पक्षधर रहे हैं। पिछले साढ़े सात दशक में दुनिया की राजनीति पूरी तरह से बदल चुकी है, नए-नए वैश्विक समीकरण बनते-बिगड़ते रहे हैं।

वैश्विक निकायों की भूमिका भी बदलती जा रही है। ऐसे में संयुक्त राष्ट्र दशकों से चले आ रहे अपने ढांचे और व्यवस्था को कब तक ढोहता रहेगा, यह बड़ा सवाल है। कूटनीतिक क्षमताओं और सफलताओं के बूते पूरी दुनिया में भारत का कद तेजी से बढ़ा है। आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक अभियान में भारत ने सबके साथ सहयोग का रुख अपनाया है। क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए सभी समझौतों और संधियों का पालन किया है। ऐसे में भारत को सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता क्यों नहीं मिलनी चाहिए?