वर्ष 2020-21 का आर्थिक सर्वे बता रहा है कि कोरोना महामारी के कारण उत्पन्न हालात ने देश की अर्थव्यवस्था को रसातल में पहुंचा दिया और आने वाले वर्षों में भी इसका असर झेलने को हमें तैयार रहना होगा। आर्थिक समीक्षा के मुताबिक इस साल अर्थव्यवस्था में 7.7 फीसद का संकुचन रहेगा, लेकिन साथ ही अगले वित्त वर्ष में इसमें तेजी से सुधार की उम्मीद जताते हुए विकास दर ग्यारह फीसद रहने की बात भी कही गई है।

इस साल कृषि को छोड़ अर्थव्यवस्था के लगभग सभी क्षेत्रों में जैसी गिरावट देखने को मिली है, उसे देखते हुए अगर भारत अगले वित्त वर्ष में दस फीसद से ज्यादा की वृद्धि दर हासिल करने में कामयाब रहता है तो यह कम बड़ी उपलब्धि नहीं होगी। सर्वे के अनुसार अर्थव्यवस्था को कोरोना काल से पूर्व की स्थिति में लाने के लिए कम से कम दो साल तो लगेंगे ही। पर जिस तरह के हालात हैं, उनमें अर्थव्यवस्था को सामान्य होने में दो साल से ज्यादा भी लग जाएं तो कोई आश्चर्य की बात नहीं।

आर्थिक सर्वे में कृषि क्षेत्र की विकास दर 3.4 फीसद रहने का अनुमान है। लेकिन उद्योग और सेवा क्षेत्र की जो तस्वीर देखने को मिल रही है, वह निराशाजनक है। सर्वे के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में औद्योगिक क्षेत्र में 9.6 फीसद और सेवा क्षेत्र में साढ़े आठ फीसद से ज्यादा की गिरावट रहने का अनुमान है। चिंता की बात ज्यादा इसलिए भी है कि जीडीपी में इन दोनों क्षेत्र क्षेत्रों का बड़ा योगदान रहता है। मांग, खपत और उत्पादन का चक्र काफी कुछ इन्हीं दोनों क्षेत्रों पर निर्भर रहता है।

यही क्षेत्र हैं जो सबसे ज्यादा रोजगार देते हैं। आज स्थिति यह है कि पूर्णबंदी में जो उद्योग-धंधे बंद हुए, उनमें से बड़ी संख्या में अभी तक चालू नहीं हो पाए हैं। जिन करोड़ों लोगों का काम-धंधा बंद हुआ, उनमें भी बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जिनके पास अभी भी रोजगार नहीं है। सरकार के अब तक के राहत पैकेजों का भी सकारात्मक परिणाम देखने को नहीं मिला है। जाहिर है, यह चुनौती आने वाले साल में भी बनी रहेगी और इससे निजात पाने में लंबा समय लग सकता है।

कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए पूर्णबंदी जैसा कदम अपरिहार्य था। सरकार का जोर अर्थव्यवस्था से भी ज्यादा महामारी से निपटने की रणनीति पर रहा। इसमें कोई संदेह नहीं कि कोरोना के खिलाफ जंग में दूसरे देशों की तुलना में भारत के प्रयास कहीं ज्यादा सफल रहे हैं। भारत में दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान चल रहा है। लेकिन अब जोर आर्थिक मोर्चे पर ठोस नतीजे देने वाली नीतियों के निर्माण पर होना चाहिए। विनिर्माण व सेवा क्षेत्र और बुनियादी क्षेत्र की परियोजनाओं को ज्यादा जोर देने की जरूरत है। हालांकि सरकार ने साफ कर दिया है कि कर्ज भुगतान में मोहलत जैसी कुछ रियायतें लंबे समय तक नहीं रहेंगी, क्योंकि बैंकिंग क्षेत्र पर इसका बुरा असर पड़ रहा है। ऐसे में उद्योगों खासतौर से छोटे और मझौले उद्योगों के लिए उदार नीतियां अपनानी होंगी।

सर्वे में स्वास्थ्य क्षेत्र पर खर्च को ढाई से तीन फीसद तक ले जाने की बात भी है। देश में स्वास्थ्य क्षेत्र को सुधारने के लिए क्या कुछ होना चाहिए, यह हम पिछले दस महीनों में अनुभव कर ही चुके हैं। देश के समक्ष इस वक्त बड़ी चुनौती मौजूदा संकट से बाहर निकलने की तो है ही, साथ ही अगले पांच में दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का सपना भी है। इसलिए अब ऐसी आर्थिक नीतियों के निर्माण और उन पर ईमानदारी से अमल की जरूरत है जो संकट से उबारने के साथ ही तेज वृद्धि का रास्ता भी दिखा सकें।