अमेरिका में सत्ता परिवर्तन के बाद अलग-अलग देशों के साथ संबंधों के समीकरण में बदलाव आने की उम्मीद की जा रही है। इस क्रम में पाकिस्तान में भी यह अपेक्षा थी कि जो बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद पिछले कुछ सालों के दौरान अमेरिका से ठंडे पड़ते रिश्ते को संभालने का क्रम फिर शुरू होगा। लेकिन जाहिर है, इस तरह की पहलकदमी और उसके नतीजे इस बात पर निर्भर करते हैं कि दोनों देशों के भीतर अहम मसलों पर क्या रुख अपनाया जाता है और उसकी अहमियत कूटनीतिक मोर्चे पर कितनी होगी।

इस लिहाज से देखें तो पाकिस्तान को महज उम्मीद करने से ज्यादा कुछ करना था। मगर वहां के सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार डेनियल पर्ल की हत्या के मामले में जो फैसला सुनाया है, उसने पाकिस्तान के सामने एक असुविधाजनक हालात पैदा कर दिया है। जिस मामले में पकड़े गए आरोपी को उचित सजा को लेकर संबंधित सभी पक्ष आश्वस्त थे, उसमें विपरीत फैसले ने खासतौर पर अमेरिकी सरकार को ज्यादा निराश किया है। यह बेवजह नहीं है कि अमेरिकी सत्ता संस्थान के भीतर इस मामले में तीखी प्रतिक्रिया हुई है।

गौरतलब है कि डेनियल पर्ल द वाल स्ट्रीट जर्नल के दक्षिण एशिया क्षेत्र के ब्यूरो प्रमुख थे। सन 2002 में जब वे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ और आतंकी संगठन अलकायदा के बीच सांठगांठ पर केंद्रित खबर पर काम कर रहे थे, तब उनका अपहरण कर लिया गया और बाद में उनकी हत्या की बात सामने आई।

इस हत्याकांड का मुख्य आरोपी ओमर सईद शेख अलकायदा से जुड़ा आतंकी है, जिसे गिरफ्तार भी किया गया था। लेकिन पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह उसे बरी कर दिया, उसने न केवल अमेरिका में, बल्कि दुनिया भर में मानवाधिकारों को लेकर फिक्रमंद लोगों को परेशान किया है।

स्वाभाविक ही अमेरिका की ओर से यह तीखा बयान सामने आया है कि पाकिस्तान के सुुप्रीम कोर्ट द्वारा डेनियल पर्ल के हत्यारे को रिहा करने के फैसले की अमेरिका निंदा करता है। यही नहीं, अमेरिका ने शेख पर अपने यहां मुकदमा चलाने की मांग की और पाकिस्तान से उसे सौंपने के लिए कहा।

पाकिस्तान इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की दलील दे सकता है, लेकिन उसे अच्छी तरह पता है कि सईद शेख उसके लिए किस महत्त्व का शख्स है और उसके मामले को अदालत में कैसे रखा गया होगा। खबरों के मुताबिक पर्ल की हत्या के बाद शेख पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के लिए काम करने लगा था। अंदाजा लगाया जा सकता है कि सबूत होने के बावजूद उसे शीर्ष अदालत से बरी किए जाने के लिए कैसी पटकथा लिखी गई होगी।

हालांकि इस फैसले के बाद पाकिस्तान के सामने तात्कालिक चुनौती यह खड़ी होगी कि वह विश्व समुदाय के सामने आतंक से निपटने के मोर्चे पर अपनी गंभीरता को कैसे विश्वसनीय तरीके से पेश कर पाएगा। फिलहाल पाकिस्तान की छवि अपनी सीमा में स्थित ठिकानों से अपनी गतिविधियां संचालित करने वाले आतंकी संगठनों को संरक्षण देने वाले एक देश के रूप में बनी हुई है। समय-समय पर वह इससे निकलने के लिए दिखावे की कुछ कार्रवाइयां करता है। लेकिन कुछ ही समय बाद उसका रुख आतंकियों को संरक्षण देने या बचाने वाले देश के रूप में सामने आता है।

आतंकवाद के प्रति उसके इसी नरम रुख की वजह से उसे एफएटीएफ यानी फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स की ओर से कई तरह के प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा है। अब वहां सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले के बाद एफएटीएफ से राहत मिल पाने की उसकी उम्मीद एक बार फिर धूमिल होती दिख रही है। लेकिन क्या इसके लिए वह खुद जिम्मेदार नहीं है?