सेना के हथियार डिपो और इनके आसपास के इलाके अगर किसी भयानक अग्निकांड का शिकार होते हैं तो यह गंभीर चिंता की बात है। ऐसी घटनाओं से सबसे पहला सवाल यह उठता है कि हमारे हथियारों के भंडार गृह सुरक्षित हैं भी या नहीं! वर्धा जिले में पुलगांव हथियार डिपो के पास मंगलवार सुबह एक बार फिर विस्फोट की जो घटना हुई, वह सुरक्षा से संबंधित गंभीर सवाल खड़े करती है। इस हादसे में छह लोग मारे गए और कई घायल हो गए। हादसा उस मैदान में हुआ जहां पुराना कबाड़ पड़ा हुआ था। इस जगह ठेके पर काम करने वाले मजदूर कबाड़ से लोहा, पीतल और दूसरी चीजें निकालने के काम में लगे थे। जाहिर है, इन लोगों की सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं था। यह कबाड़ हथियारों की फैक्टरी से निकला था, इसलिए इसकी जांच होनी चाहिए थी। लेकिन बिना किसी जांच के इसे बेकार समझ कर डाल दिया गया। यही विस्फोट की वजह बना। पुराने पड़ चुके हथियारों और इनके कलपुर्जों का कबाड़ नष्ट करना एक बड़ी समस्या है। पुलगांव में एशिया का दूसरा सबसे बड़ा हथियार डिपो है। अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस इस डिपो में ही बेकार हो चुके हथगोलों को बेकार करने का काम होता है। इतना ही नहीं, यहां सौर ऊर्जा से हथियारों के कवच गलाने की तकनीक भी इस्तेमाल की जाती है। ऐसे में यहां इस तरह के हादसों का होना गंभीर मामला है।

यह पहला मौका नहीं है जब वर्धा के पास स्थित यह हथियार डिपो ऐसे हादसे का शिकार हुआ है। दो साल पहले भी इसी डिपो में भयानक आग लग गई थी जिसमें सेना के दो अधिकारियों सहित सत्रह लोग मारे गए थे। इस घटना ने कई सवाल खड़े किए थे। लेकिन लगता है कि पिछली घटनाओं से कोई सबक नहीं लिया गया। क्या उसी का नतीजा नहीं है कि कि इसी हथियार डिपो के पास फिर से बड़ा हादसा हो गया? जाहिर है, अगर असावधानी की यह प्रकृति बनी रही तो फिर से इस तरह के हादसों की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। सेना के हथियार डिपो और अन्य सैन्य प्रतिष्ठान सुरक्षा की दृष्टि से बेहद संवेदनशील होते हैं, जो आमजन की पहुंच से दूर होते हैं। फिर भी इन जगहों पर अगर ऐसे हादसे होते हैं तो यह सुरक्षा में गंभीर चूक का मामला ही कहलाएगा। दो साल पहले पुलगांव में जब यह हादसा हुआ था तब माना जा रहा था कि यह किसी साजिश का भी नतीजा हो सकता है।

इसमें कोई शक नहीं कि दुश्मन देश की नजर सैन्य प्रतिष्ठानों को निशाना बनाने पर रहती है। भारत के सैन्य अड्डों पर फिदायीन हमले होते रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में सेना के हथियार डिपो तक पर आतंकी हमले हुए हैं। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल सैन्य प्रतिष्ठानों की सुरक्षा को लेकर खड़ा होना लाजिमी है। अगर दावों को मान लिया जाए कि देश के सैन्य प्रतिष्ठानों और हथियार कारखानों की सुरक्षा चाक-चौबंद है, तो फिर ऐसे हादसे क्यों होते हैं? क्या हमारे रखरखाव या पुराने हथियारों को नष्ट करने के काम में कहीं कोई चूक होती है? पिछले साल मध्यप्रदेश के जबलपुर स्थित हथियार कारखाने में दो सौ से ज्यादा बम फट गए थे। हथियारों के अलग- अलग डिपो में ऐसे दर्जनों हादसों हो चुके हैं। इसलिए बात कुल मिला कर सुरक्षा पर आ जाती है। ये घटनाएं बताती हैं कि हमारे तंत्र में ऐसी खामियां हैं, जिन्हें तत्काल पूरी तरह दुरुस्त करने की जरूरत है।