रिजर्व बैंक के गवर्नर ने संसद की वित्तीय मामलों की स्थायी समिति के समक्ष कहा है कि नोटबंदी का असर पड़ा था, लेकिन वह ज्यादा समय नहीं रहा। जबकि सरकार शुरू से दावा करती रही है कि नोटबंदी का कोई असर नहीं पड़ा। शुरू के कुछ दिनों में लोगों को जो दिक्कतें हुर्इं, वे ऐसी नहीं थीं, जिन्हें नोटबंदी के बुरे असर के रूप में देखा जाए। लेकिन पिछले दो साल में अर्थव्यवस्था को जिस तरह के झटके लगे हैं, उनके मूल में बड़ा कारण नोटबंदी को माना गया। यह बहस और चर्चा का विषय है कि नोटबंदी से हासिल क्या हुआ। सरकार जहां इसमें सिर्फ फायदे गिनाने पर तुली है, वहीं विपक्ष और अर्थशास्त्रियों का बड़ा वर्ग नोटबंदी के नकारात्मक असर को रेखांकित करता रहा है। ऐसे में रिजर्व बैंक गवर्नर का इतना भर भी मान लेना बड़ी बात है कि नोटबंदी का तात्कालिक असर पड़ा था। गहराई में जाएं तो पता चलेगा कि नोटबंदी का असर कोई मामूली नहीं था और इसकी मार से छोटे उद्यमी और किसान तो अभी तक उबर नहीं पाए हैं।

पिछले हफ्ते ही कृषि मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया था कि नोटबंदी का किसानों पर बहुत ही बुरा असर पड़ा। मंत्रालय ने नोटबंदी से कृषि पर प्रभाव के बारे में उसी समिति को भेजे अपने जवाब में यह हकीकत स्वीकार की है, जिसके सामने आरबीआइ गवर्नर ने भी ताजा स्वीकारोक्ति की है। इससे यह तो साफ है कि नोटबंदी से न केवल किसान, बल्कि छोटे उद्योग चौपट हो गए। पिछले दो साल में उद्योगों की क्या हालत रही, इसके गवाह सरकारी आंकड़े हैं। कृषि मंत्रालय ने समिति को बताया कि नोटबंदी ऐसे समय पर की गई थी, जब किसान खरीफ फसलों की बिक्री और रबी फसलों की बुआई में लगे थे और इसके लिए उन्हें तत्काल नगदी की जरूरत थी। लेकिन नोटबंदी की वजह से बाजार में नगदी का संकट खड़ा हो गया। मंत्रालय ने बताया कि भारत के 26.3 करोड़ किसान नगदी की अर्थव्यवस्था पर आधारित हैं और अचानक उपजे नगदी संकट के कारण किसान रबी फसलों के लिए बीज और खाद नहीं खरीद पाए थे। यहां तक कि मजदूरी देने और खेती के लिए सामान खरीदने में बड़े जमींदारों की भी हालत खराब हो गई थी। हालांकि गेहंू के बीज बेचने के लिए सरकार ने पांच सौ और एक हजार के पुराने नोट इस्तेमाल करने की इजाजत दे दी थी, लेकिन तब भी किसानों का संकट जस का तस बना रहा था। ऐसे में कौन मानेगा कि नोटबंदी देश के कृषि क्षेत्र लिए संकट का कारण नहीं बनी!

इसके अलावा, उद्योग धंधों की हालत क्या हुई, इसकी हकीकत सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनोमी (सीएमआइई) के आंकड़े बताते हैं। सीएमआइई की रिपोर्ट में कहा गया है कि नोटबंदी के बाद जनवरी-अप्रैल 2017 के बीच पंद्रह लाख लोगों की नौकरियां चली गर्इं। बेरोजगारी की समस्या और विकराल हुई है और बड़ा चुनावी मुद्दा बनी है। कहा जा रहा था कि नोटबंदी से आतंकियों की कमर टूटेगी, लेकिन पिछले दो साल में आतंकी हमलों में कहीं कमी नहीं आई। ऐसे में नोटबंदी को कैसे कामयाब माना जा सकता है? जिस तरह नोटबंदी का फैसला लागू किया गया, वह भी कम विवादास्पद नहीं रहा। तब से ही रिजर्व बैंक की स्वायत्तता पर आंच को लेकर सवाल उठते रहे हैं। हाल में रिजर्व बैंक के गवर्नर और सरकार के बीच उपजा गतिरोध अच्छी स्थिति का संकेत नहीं माना गया है। ऐसे में नोटबंदी के असर को लेकर आरबीआइ गवर्नर की स्वीकारोक्ति महत्त्वपूर्ण बात है।