उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में एक बस दुर्घटना और उसमें चौदह लोगों की मौत इस प्रदेश में आए दिन होने वाले हादसों की एक कड़ी भर है। हैरानी की बात यह है कि इस तरह की लगातार दुर्घटनाओं के बावजूद पहाड़ी इलाके के खतरनाक रास्तों के प्रबंधन को लेकर ऐसी कोई राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं दिखाई देती, जिससे यह लगे कि सरकार अब कुछ ठोस इंतजाम करने के लिए तैयार है, ताकि फिर कोई बड़ा हादसा नहीं हो। गौरतलब है कि उत्तरकाशी जिले के नौगांव के पास एक निजी बस करीब तीन सौ मीटर गहरी खाई में जा गिरी और यमुना नदी में जा समाई। सड़क से खाई की गहराई इतनी ज्यादा है कि बचाव और राहत दल को घायलों को अस्पताल तक पहुंचाने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। इस हादसे की वजह ड्राइवर का संतुलन खो देना बताया जा रहा है। तथ्य यह भी हो सकता है। लेकिन यह छिपा नहीं है कि पहाड़ी इलाकों में ज्यादातर जगहों पर सड़कों का प्रबंधन और सुरक्षा के इंतजामों में घोर कमी है और यही वजह है कि आए दिन मामूली चूक की वजह से वाहनों के खाई में गिरने और लोगों के मरने की खबरें आती रहती हैं।

करीब साढ़े तीन महीने पहले उत्तराखंड के ही कोटद्वार में एक बस के खाई में गिरने से अड़तालीस लोगों की जान चली गई। ऐसी हर घटना के बाद सरकार और उसके नुमाइंदे शोक जताने और आर्थिक व चिकित्सा राहत देने की घोषणा की औपचारिकता पूरी करते हैं। लेकिन वैसे उपाय करने की ओर कोई व्यापक कदम नहीं उठाया जाता, ताकि इस तरह की दुर्घटनाएं न हों। इसमें कोई शक नहीं कि पहाड़ी इलाकों में भी देश के दूसरे क्षेत्रों की तरह ही सड़क हादसे होते रहते हैं और लोग मारे जाते हैं। लेकिन एक बड़ा फर्क यह है कि पहाड़ी सड़कों पर बहुत छोटी चूक के बाद अगर कोई वाहन गहरी खाई में गिर जाता है तो उसमें लोगों के बचने की संभावना नहीं के बराबर होती है। जबकि समतल भूभाग में होने वालों का हादसों का स्वरूप कुछ अलग होता है। पहाड़ी इलाकों में वाहन चलाना अपेक्षया ज्यादा जोखिम भरा होता है और चालक से अतिरिक्त सावधानी की मांग करता है। रफ्तार से लेकर सड़कों पर आगे निकलने या मुड़ने की जगहों पर एक पल की असावधानी गाड़ी को ऊंचे पहाड़ से नीचे गिरा दे सकती है।

यह समस्या न केवल उत्तराखंड में, बल्कि हिमाचल प्रदेश में भी लंबे समय से कायम है। दरअसल, ज्यादातर जगहों पर रास्ते बेहद खतरनाक हैं और सड़कों की चौड़ाई काफी कम है। गाड़ियों को आगे निकलने या एक दूसरे के पास से गुजरते हुए छोटी चूक भी जानलेवा साबित हो जाती है। बहुत कम जगहों पर ब्लैक स्पॉट और क्रैश बैरियर जैसे इंतजाम किए गए हैं, जहां गाड़ी के असंतुलित होने पर वह खाई में गिरने से बच सके। जब भी कोई बड़ा हादसा हो जाता है, तब उसके मुख्य कारण के रूप में सड़कों के किनारे पैराफिट या क्रैशबैरियर न होना ही बताया जाता है। लेकिन वाहनों के फिसल कर या उलट कर पहाड़ से नीचे गिरने और लगातार मौतों के बावजूद संबंधित महकमों को पैराफिट या क्रैश बैरियर लगाने का काम जरूरी नहीं लगता है। सड़कों के किनारे सिर्फ इतना काम करा देना ही दुर्घटना के बावजूद वाहनों के गहरी खाई में गिरने और लोगों की मौत की आंशका को काफी कम कर सकता है। इसलिए इन इलाकों में सड़क प्रबंधन के रूप में हादसों के लिहाज से खतरनाक जगहों की पहचान के साथ-साथ व्यापक रूप पैराफिट या क्रैश बैरियर लगाने की तत्काल जरूरत है।