अमृतसर जिले में राजासांसी के पास अदवीवाल गांव में रविवार को निरंकारी सत्संग पर जो आतंकी हमला हुआ है, वह इस बात का स्पष्ट संकेत है कि पंजाब में आतंकवाद फिर से पैर पसार रहा है। भले इस हमले की जड़ें दशकों पुराने निरंकारी-सिख टकराव में बताई जा रही हों, लेकिन अब यहां आतंक फैलाने में कश्मीर में सक्रिय गुटों पर शक जा रहा है। दरअसल, इस हमले से कुछ दिन पहले ही पंजाब में आतंकियों की घुसपैठ की आशंका जताई गई है और पठानकोट में इनोवा लूटने के बाद राज्य में अलर्ट जारी कर दिया गया है। जैश-ए-मोहम्मद के कमांडर जाकिर मूसा को भी पंजाब में देखा गया है। अब तक जो तथ्य सामने आए हैं उनसे साफ है कि यह कोई निजी दुश्मनी को लेकर किया गया हमला नहीं, बल्कि आतंकी हमला है। इससे एक बात तो साफ है कि पंजाब में अशांति फैलाने की कोशिशें बंद नहीं हुई हैं और देश के भीतर और बाहर से इसे सुलगाने के प्रयास जारी हैं।

अस्सी के दशक में पंजाब ने जिस तरह का आतंकवाद झेला है, उसके घाव आज भी हरे हैं। हजारों बेगुनाह लोग आतंकवदियों की हिंसा का शिकार हुए। हालांकि पंजाब से आतंकवादियों के सफाए के बाद कुछ साल पहले तक लग रहा था कि वहां अब आतंकवाद का खात्मा हो चुका है। लेकिन पिछले दो साल में जिस तरह के हमले सामने आए हैं, उनसे तो लगता है राज्य में आतंक की चिनगारी अभी बुझी नहीं है। गौरतलब है कि जनवरी, 2016 में पठानकोट के वायुसेना स्टेशन पर आतंकी हमला हुआ था। इसके बाद जनवरी, 2017 में बठिंडा की मौड़ं मंडी में कार धमाके में तीन लोग मारे गए थे। फिर गुरदासपुर और जलंधर में आतंकी हमले देखने को मिले। हाल में थलसेनाध्यक्ष और खुफिया एजंसियों ने भी राज्य में आतंकी हमले को लेकर आगाह किया था। इस घटना के बाद सबसे बड़ी चिंता तो यही उभर कर आई है कि पंजाब कहीं फिर से भिंडरांवाले युग में तो नहीं जा रहा! अमृतसर में 13 अप्रैल 1978 को जरनैलसिंह भिंडरांवाले की एक सभा में निरंकारियों और निहंगों के बीच खूनी संघर्ष में तेरह सिख मारे गए थे। उसके बाद से पंजाब में आतंकवाद पनपा। तब से निरंकारियों और सिखों के बीच टकराव का यह सिलसिला कभी नहीं थमा। अगर ऐसा है तो यह पंजाब के लिए बड़े खतरे का संकेत है।

राज्य के मुख्यमंत्री ने इस घटना में खालिस्तान समर्थकों का हाथ होने की भी बात कही है। हालांकि यह कोई नई बात नहीं है। ब्रिटेन सहित यूरोप के कई देशों और अमेरिका में खालिस्तान समर्थक आज भी सक्रिय हैं और ये समूह-संगठन समय-समय पर अपनी मौजूदगी का अहसास कराते रहते हैं। इस साल अगस्त में अमेरिका के कैलिफोर्निया राज्य के युबा शहर में खालिस्तान समर्थकों ने दिल्ली सिख गुरद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष और शिरोमणि अकाली दल के नेता मंजीतसिंह जीके पर जानलेवा हमला कर दिया था। इस हमले से चार दिन पहले भी उन पर न्यूयार्क में खालिस्तान समर्थकों ने ही हमला किया था। हमलावर एक बड़े समूह में थे और खालिस्तान के लिए जनमत संग्रह की मांग कर रहे थे।

लंदन में भी खालिस्तान समर्थकों ने स्वतंत्रता दिवस पर जुलूस निकालने की कोशिश की थी और खालिस्तान की मांग को लेकर नारे लगाए थे। ये घटनाएं बताती हैं कि अलग खालिस्तान की मांग को लेकर सुगबुगाहट फिर तेज हो रही है। यह सभी जानते हैं कि पाकिस्तान शुरू से ही खालिस्तानियों को हर तरह से समर्थन और मदद देता रहा है और पंजाब में आतंकवाद फैलाता रहा है। ऐसे में केंद्र व राज्य सरकार, सेना, सुरक्षा बलों, खुफिया एजंसियों को सतर्क रहने की जरूरत है।