अतिविशिष्ट लोगों के लिए खरीदे जाने वाले अगस्ता वेस्टलैंड हेलिकॉप्टरों के सौदे में दलाली करने वाले क्रिश्चियन मिशेल के भारत लाए जाने के बाद उन नामों के खुलासे की उम्मीद जगी है, जो इसमें शामिल थे। उसके प्रत्यर्पण के साथ ही भाजपा नेता, यहां तक कि प्रधानमंत्री खुद, कांग्रेस के प्रति हमलावर हो गए हैं। इस तरह रफाल विमान सौदे में गड़बड़ी को लेकर जो कांग्रेस भाजपा पर निशाना साध रही थी, वह अब खुद निशाने पर आ गई है। यूपीए सरकार के समय छत्तीस सौ करोड़ रुपए में अगस्ता वेस्टलैंड कंपनी से बारह अतिविशिष्ट हेलिकॉप्टर खरीदने का सौदा हुआ था। हालांकि इसमें कुछ और कंपनियों से उनके हेलिकॉप्टरों के लिए प्रस्ताव मंगाया गया था, पर अगस्ता वेस्टलैंड ने उसमें बाजी मारी थी। सौदे से पहले मनमोहन सिंह सरकार ने एक शर्त यह रखी थी कि इसमें किसी बिचौलिए को शामिल नहीं किया जाएगा। अगर किसी बिचौलिए के इसमें शामिल होने की बात पता चलेगी, तो सौदा रद्द मान लिया जाएगा। मगर सौदा होने के कुछ समय बाद ही इसमें रिश्वत देने की बात उठी थी। इस पर तुरंत इटली की जांच एजेंसी ने अगस्ता वेस्टलैंड और उसकी मातृ संस्था फिनमेकेनिका के खिलाफ जांच शुरू कर दी और पाया कि इसमें दस प्रतिशत यानी तीन सौ साठ करोड़ रुपए रिश्वत दी गई थी। इस जांच के आधार पर यूपीए सरकार ने तुरंत सौदा रद्द कर दिया और कंपनी की तरफ से जमानत के तौर पर जमा कराए धन पैसे की भरपाई कर ली थी।
मगर इतने से मामला रफा-दफा नहीं हो जाता। आखिर यह सवाल अनुत्तरित है कि इस सौदे में जिन लोगों ने रिश्वत खाई, वे कौन हैं। यों तत्कालीन वायुसेना प्रमुख को भी इसमें आरोपी बनाया गया था। मगर सौदे को मंजूरी देते वक्त तत्कालीन सरकार के कुछ मंत्री भी शामिल थे। उनमें से किनके जरिए मिशेल ने हेलिकॉप्टर सौदे को प्रभावित करने की कोशिश थी, इसे जानना जरूरी है। रक्षा सौदों में बिचौलियों की भागीदारी नई बात नहीं है। पर चूंकि बोफर्स आदि मामलों में कांग्रेस अपना हाथ पहले ही जला चुकी थी, इसलिए सावधानी बरतते हुए अगस्ता वेस्टलैंड हेलिकॉप्टर खरीद में मनमोहन सिंह सरकार ने शर्त रखी थी कि इसमें किसी बिचौलिए की मदद नहीं ली जाएगी। फिर भी मिशेल और दो अन्य लोग यहां के कुछ नेताओं और सेना अधिकारियों को प्रभावित करने में कामयाब रहे, तो उन लोगों के नाम उजागर होना जरूरी है। आखिर जो रिश्वत उन्होंने खाई उसकी भरपाई भी होनी है।
इसलिए कांग्रेस यह कह कर अपना बचाव नहीं कर सकती कि अतिविशिष्ट हेलिकॉप्टरों की खरीद का प्रस्ताव अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के समय में मंजूर हुआ था। मगर सौदा तो यूपीए सरकार के समय हुआ था और उसमें रिश्वत लेने का आरोप कुछ तत्कालीन मंत्री और वायु सेना के अधिकारियों पर लगे थे। फिर कांग्रेस यह कह कर भी नहीं बच सकती कि सरकार ने सौदा रद्द कर दिया था, इसलिए उसमें धन की बर्बादी होने से बच गई थी। पर चिंता का विषय सेना में साजो-सामान की खरीद में भ्रष्टाचार और उसकी साख को लेकर है। कई गंभीर सवाल इससे जुड़े हैं। सवाल यह भी है कि जब बिचौलिए धन का लोभ देकर साजो-सामान की खरीद के लिए सेना के अधिकारियों को प्रभावित कर सकते हैं, तो वे इसी तरह सुरक्षा संबंधी दूसरे मामलों में भी सेंध लगाने का प्रयास कर सकते हैं। इसलिए मिशेल के प्रत्यर्पण से होने वाले खुलासे महत्त्वपूर्ण होंगे।