चुनाव के वक्त लोकतंत्र में सघन प्रचार एक स्वाभाविक राजनीतिक प्रक्रिया है। मगर दिल्ली के विधानसभा चुनावों में जिस तरह विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच बार-बार मुठभेड़ की-सी स्थिति देखी गई उसे स्वच्छ लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा मानने में किसी को भी संकोच हो सकता है। भारतीय जनता पार्टी के रुख से जाहिर था कि उसने किसी भी कीमत पर जीत हासिल करने की ठानी थी। इसलिए उसके प्रचार अभियान में एक तरह की आक्रामकता बराबर दिखती रही। चुनाव प्रचार के आखिरी चरण में न सिर्फ प्रधानमंत्री सहित अनेक मंत्री रैलियों में उतारे गए, बल्कि तमाम सांसदों को चुनाव संबंधी जिम्मेदारियां सौंपी गर्इं। यही नहीं, दूसरे राज्यों से भी बड़ी संख्या में भाजपा और संघ कार्यकर्ताओं को बुला कर चुनाव प्रचार में लगा दिया गया। जाहिर है, भाजपा अपने प्रचार के दौरान मुद्दों के बजाय भीड़ और आक्रामक प्रचार अभियान के जरिए मतदाताओं को प्रभावित करने की कोशिश करती रही। मगर चुनावी सर्वेक्षणों में आम आदमी पार्टी की स्थिति मजबूत होने की खबरों ने शायद भाजपा के खेमे में निराशा का माहौल पैदा किया और उसके कार्यकर्ता कई जगहों पर धीरज खो बैठे। दक्षिणी दिल्ली के संगम विहार विधानसभा क्षेत्र में प्रचार के दौरान भाजपा और आम आदमी पार्टी के समर्थकों के बीच हुई हिंसा और उसमें दो महिलाओं सहित छह ‘आप’ कार्यकर्ताओं का घायल हो जाना इसी तनावपूर्ण माहौल का नतीजा कहा जा सकता है। दोनों दलों के कार्यकर्ताओं के बीच ऐसी छिटपुट झड़पें पहले भी कई मौकों पर देखी गर्इं। जब चुनाव प्रचार के लिए बाहर से कार्यकर्ता बुलाए जाते हैं और उन्हें पूरे आक्रामक तेवर में प्रचार की छूट दी जाती है तो एक तरह से पार्टी ऐसी हिंसक घटनाओं को न्योता देती है। भाजपा ने अपने कार्यकर्ताओं को अनुशासित रखने की कोशिश की होती तो ऐसी अप्रिय स्थितियां न पैदा होने पातीं।
ऐसा लगता है कि भाजपा को शायद जमीनी स्तर पर जनता के रुख का अहसास है, इसलिए उसके निचले से लेकर शीर्ष स्तर तक के नेता कभी हमलावर रुख के साथ बयान जारी करते रहे, तो कभी बचाव की मुद्रा में दिखते रहे। किसी भी तरह चुनाव जीतने की जुगत भिड़ाते देखे गए। वोटिंग मशीन में गड़बड़ी की शिकायतें भी सामने आर्इं, हालांकि चुनाव आयोग ने इससे इनकार किया है। सत्ताधारी दल के सांसदों और केंद्रीय मंत्रियों के इतने बड़े पैमाने पर चुनाव-प्रचार में शामिल होने से एक बड़ी समस्या यह पैदा हुई कि उसका असर सामान्य सुरक्षा-व्यवस्था पर पड़ा। चुनाव अभियान में लगे सांसदों और मंत्रियों की सुरक्षा के मद्देनजर बड़ी संख्या में सुरक्षाकर्मियों की तैनाती की गई। शांतिपूर्ण चुनाव प्रचार अभियान और मतदान किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में एक अनिवार्य पहलू है। यह कोई छिपा तथ्य नहीं है कि देश के कई हिस्सों में चुनावों का अतीत काफी हिंसक रहा है और उससे निपटना प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती थी। प्रचार अभियानों से लेकर मतदान तक के दौरान राजनीतिक दलों के समर्थकों के बीच होने वाले टकरावों में अनेक लोगों के मारे जाने की खबरें आती रही हैं। लेकिन पिछले कई सालों में चुनाव आयोग की ओर से स्वच्छ मतदान सुनिश्चित कराने के लिए कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर भी पर्याप्त इंतजामों के चलते चुनावी हिंसा की घटनाओं पर काफी हद तक काबू पाने में मदद मिली है। अब अपने आक्रामक रुख के चलते भाजपा अगर उत्तेजना और हिंसा का वही माहौल पैदा करना चाहती है तो, यह लोकतांत्रिक प्रणाली के साथ खिलवाड़ होगा।
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