उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनावों के मद््देनजर विपक्षी पार्टियां जहां रैलियों और अभियानों की शुरुआत कर चुकी हैं, वहीं समाजवादी पार्टी की सरकार भी अपनी छवि में सुधार के लिए चिंतित है, अपनी उपलब्धियों के विज्ञापनों का सहारा लेने के साथ-साथ कुछ सख्त फैसले लेते दिखना चाहती है। सपा के कई नेताओं और कुछ मंत्रियों पर लग रहे भ्रष्टाचार के आरोपों के प्रति पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की उदासीनता विपक्षी दलों के लिए मुद््दा बनती जा रही थी। शायद यही वजह है कि राज्य के दो मंत्रियों पर लगे आरोपों का मामला जब तूल पकड़ने लगा और अदालत ने भी सख्त रवैया अख्तियार किया, तब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने दोनों को बर्खास्त कर एक सख्त संदेश देने की कोशिश की।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में कई सालों से लगातार अवैध खनन की शिकायतें सामने आ रही थीं। खननमंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति पर अवैध खनन को बढ़ावा देने और पंचायती राज मंत्री राजकिशोर सिंह पर भ्रष्टाचार और जमीन हड़पने के आरोप काफी समय से लगते रहे हैं। वहीं पिछले लगभग ढाई साल से लगातार विवादों में रहने के बावजूद प्रजापति का कैबिनेट मंत्री बन जाना भी शक की निगाह से देखा जा रहा था। चूंकि दोनों को ही पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के करीब माना जाता रहा है, इसलिए इनके खिलाफ कोई कार्रवाई करना जरूरी नहीं समझा गया। लेकिन जब इलाहाबाद हाइकोर्ट ने शिकायतों का संज्ञान लेकर मामले की जांच सीबीआई से कराने का आदेश जारी किया, तो मुख्यमंत्री के सामने इसके सिवा कोई चारा नहीं बचा कि वे दोनों मंत्रियों को बर्खास्त कर अपनी छवि बचाने की कोशिश करें।
पुख्ता आरोपों को देखते हुए अखिलेश यादव को सख्त कार्रवाई कर अपनी ईमानदार इच्छाशक्ति का सबूत देना चाहिए था। पर विडंबना यह है कि सरकार का रवैया एक तरह से आरोपी मंत्रियों को बचाने का रहा। आखिर क्यों राज्य सरकार ने इस समूचे मामले की जांच सीबीआई से न कराने की मांग हाइकोर्ट से की थी? अब यह मांग खारिज हो जाने तथा जल्दी जांच की स्थिति-रिपोर्ट देने के अदालती आदेश के बाद मंत्रियों की बर्खास्तगी को राज्य सरकार की मजबूरी की कार्रवाई के तौर पर देखा जाएगा। ऐसे तमाम आरोप सामने आते रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में खनन के क्षेत्र में भ्रष्टाचार काफी तेजी से बढ़ा है और कानूनी तौर पर इजाजत के मुकाबले बीस-पच्चीस गुना ज्यादा खनन किया जा रहा है।
कानूनों को ताक पर रख कर होने वाली खनन गतिविधियों ने पर्यावरण को भयावह नुकसान पहुंचाया। क्या राज्य सरकार को इसकी भनक नहीं लगी होगी। ऐसा लगता है कि यह सब एक गोरखधंधे की तरह चल रहा था और राज्य सरकार ने आंखें बंद कर रखी थीं। जहां खननमंत्री ही अवैध खनन में लिप्त हों, वहां और उम्मीद ही क्या की जा सकती है! इस तरह सपा सरकार ने कर्नाटक में भाजपा सरकार के समय चले रेड्डी बंधुओं के प्रकरण के दोहराया है। अवैध खनन में लगे लोगों को मिलने वाले सरकारी संरक्षण का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि अगर किसी प्रशासनिक अधिकारी ने इस गतिविधि को रोकने की कोशिश की तो उलटे उसे ही निशाना बनाया गया। इसलिए दो मंत्रियों की बर्खास्तगी की औपचारिक कार्रवाई शायद ही अखिलेश सरकार की छवि में कोई इजाफा कर पाए।