जम्मू-कश्मीर के लोगों ने स्पष्ट जनादेश देकर एक स्थिर सरकार की बुनियाद रख दी है। अब नई सरकार के सामने जहां जन आकाक्षांओं को पूरा करने संबंधी चुनौतियां होंगी, वहीं अपने संकल्प को पूरा करने का अवसर भी। चुनाव से पहले ही जनता ने अपने इरादे जाहिर कर दिए थे कि वह अलगाववाद और आतंकवाद से मुक्ति चाहती है। जिस उत्साह और निडरता से लोगों ने मतदान में हिस्सा लिया, उससे जाहिर है कि लोग वहां एक मजबूत लोकतंत्र देखना चाहते हैं। कांग्रेस लोकलुभावन योजनाओं और वादों के साथ मैदान में उतरी थी, मगर नैशनल कांफ्रेंस पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल कराने और उन कानूनों को खत्म करने के वादे के साथ चुनाव लड़ी, जो विशेष राज्य के दर्जे को प्रभावित करते हैं।

नतीजों से साफ है कि कश्मीर के मतदाताओं ने नैशनल कांफ्रेंस के वादे पर भरोसा किया है। मगर इन नतीजों से यह संदेश निकला है कि लोग राज्य में अमन-चैन चाहते हैं। इसलिए नैशनल कांफ्रेंस को अपने कुछ एजंडों को छोड़ कर अब ऐसा वातावरण बनाना होगा, जिसमें नागरिक स्वयं को सुरक्षित महसूस करें। राज्य में अमन कायम हो और वह देश के विकास के साथ कदम से कदम मिला कर चल सके।

उपराज्यपाल के पास हैं असीमित शक्तियां

नई सरकार को अब सकारात्मक रुख दिखाने के साथ शासन की राह में आने वाली बाधाओं को भी पार करना है। केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद जम्मू-कश्मीर में हालात पहले जैसे नहीं हैं। उपराज्यपाल के पास असीमित शक्तियां हैं। भावी मुख्यमंत्री को कानून व्यवस्था से लेकर कई प्रशासनिक मामलों में प्रस्ताव उपराज्यपाल के पास भेजने होंगे। ऐसे में नौकरशाही नई सरकार के काम में कितनी मददगार साबित होगी, यह देखने की बात है।

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एक तरफ गठबंधन सरकार को वे सभी वादे पूरे करने हैं, जो उसने मतदाताओं से किए हैं, दूसरी तरफ उसे विकास योजनाओं को लागू करने के लिए केंद्र सरकार से सहायता की दरकार होगी। ऐसे में केंद्र से भी अपेक्षा की जाती है कि वह राज्य के रचनात्मक विकास में उदारता दिखाएगा। जम्मू-कश्मीर में मजबूत लोकतंत्र और शांतिपूर्ण वातावरण बनाने के साथ उसके विकास के लिए यह समन्वय बहुत जरूरी है।