जम्मू-कश्मीर में हुए विधानसभा चुनाव के आखिरी चरण में भी जिस तरह लोगों ने उत्साह के साथ मतदान किया, उससे यह साफ जाहिर है कि राज्य में लोकतंत्र की नई हवा बहने की उम्मीद मजबूत हुई है। गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर में अंतिम चरण के चुनाव में 69.65 फीसद मतदान हुआ। तीन चरणों में हुए चुनाव में भारी संख्या में लोगों ने अपने विवेक से मताधिकार का प्रयोग कर देश के लोकतंत्र में भरोसा तो जताया ही, साथ ही उन्होंने अलगाववादी ताकतों और उन्हें पनाह देने वाले देशों को भी आईना दिखा दिया।

यह भी संयोग है कि इस बार राज्य में कहीं पुनर्मतदान की नौबत नहीं आई। न कहीं कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ी और न ही आतंकी हिंसा की कोई बड़ी खबर आई। वहीं तमाम अंतर्विरोधों के बीच सभी राजनीतिक दलों ने भी संयम का परिचय देते हुए देते हुए रैलियां और सभाएं कीं। इस तरह जम्मू-कश्मीर के नागरिकों ने पूरी दुनिया को बड़ा संदेश दिया कि यहां लोकतंत्र की जड़ें कितनी गहरी हैं। मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने भी यह कहा कि इस चुनाव ने लोकतंत्र की गहराई को चिह्नित किया है और यह आने वाले वर्षों में क्षेत्र की लोकतांत्रिक भावना को प्रेरित करता रहेगा।

अलगाववादी प्रभावी इलाके में भारी मतदान

सच यह है कि जम्मू कश्मीर के लोगों ने चुनावी बहिष्कार के किसी भी झांसे में आने के बजाय लोकतंत्र में आस्था जताई। यह कम बड़ी बात नहीं कि उन निर्वाचन क्षेत्रों में भी जम कर मतदान हुआ, जहां अलगाववादी समूह लोकतांत्रिक प्रक्रिया को ठेस पहुंचाने के लिए चुनावी बहिष्कार का एलान कर दिया करते थे। इसके उलट चुनाव में ऐसे समूहों की भागीदारी और सक्रियता देखी गई, जो एक समय वहां के लोगों से चुनाव से दूर रहने का आह्वान करते थे या उन्हें धमकाते थे। इसे एक बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है कि चुनाव में भागीदारी करके अलगाववाद की राजनीति करने वाले समूहों ने मुख्यधारा की राजनीति और देश के संविधान में विश्वास जाहिर किया।

संपादकीय: ऐसे ही नहीं मिल जाती ‘राम रहीम’ को पैरोल, पर्दे के पीछे चल रही अलग ही कहानी

एक खास बात यह भी दिखी कि जहां महिला मतदाताओं की संख्या में सत्ताईस फीसद से अधिक की बढ़ोतरी हुई, वहीं 2014 के बाद महिला उम्मीदवार भी अधिक संख्या में चुनाव मैदान में उतरीं। बहरहाल, नतीजों की तस्वीर चाहे जो बने, जम्मू-कश्मीर के मतदाताओं ने लोकतंत्र के पक्ष में फैसला सुना दिया है।