आखिरकार भारतीय जनता पार्टी ने हिमाचल प्रदेश में सर्वसम्मति से जयराम ठाकुर को सरकार की कमान सौंप दी। वहां के विधानसभा चुनाव में भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी प्रेम कुमार धूमल सहित कई वरिष्ठ नेताओं के चुनाव हार जाने के बाद सबकी नजरें इस बात पर टिकी थीं कि वहां का मुख्यमंत्री किसे बनाया जाता है। पर हरियाणा और उत्तर प्रदेश में जिस तरह अंतिम समय में भाजपा ने चौंकाने वाला फैसला किया, वैसा हिमाचल में नहीं किया। विधायक दल की सहमति से फैसला किया गया। जयराम ठाकुर की छवि एक बेदाग नेता की रही है। वे लंबे समय से प्रदेश में भाजपा की राजनीति करते रहे हैं। उन्होंने अपना राजनीतिक जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से होते हुए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और फिर भाजपा में शुरू किया था। 2009 से 2012 तक वे पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे और उस दौरान भाजपा ने हिमाचल में अपनी स्थिति काफी मजबूत की। वे धूमल सरकार में ग्रामीण विकास व पंचायती राज मंत्री भी रहे। इस तरह उनके प्रशासनिक और राजनीतिक अनुभव को लेकर पार्टी नेतृत्व को कोई असमंजस नहीं था। फिर संघ से जुड़ाव मुख्यमंत्री पद के लिए उनकी अतिरिक्त योग्यता थी। बड़ी बात यह कि उन्हें मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी सौंप कर भाजपा ने एक बार फिर यह साबित किया है कि वह दूसरी कतार के नेताओं के लिए जगह बनाने को प्रतिबद्ध है।
इस विधानसभा चुनाव में भाजपा ने बहुमत हासिल तो कर लिया, पर जिस तरह धूमल सहित उसके कई बड़े नेताओं को पराजय का मुंह देखना पड़ा, उसमें यह जरूरत लगातार रेखांकित होती रही है कि पार्टी की स्थिति मजबूत करने के लिए वहां साफ-सुथरी सरकार बहुत जरूरी है। वीरभद्र सिंह के कार्यकाल में लोगों में भ्रष्टाचार और जिन अव्यवस्थाओं को लेकर असंतोष था, उसमें सकारात्मक काम की उम्मीद की जा रही है। ऐसे में भाजपा के सामने किसी ऐसे नेता की जरूरत थी, जिसका जमीनी आधार हो और उसकी छवि बेदाग हो। हालांकि ठाकुर के अलावा जेपी नड्डा जैसे कुछ नामों को लेकर भी इस पद के लिए कयास लगाए जा रहे थे, पर उनमें से ठाकुर को चुन कर भाजपा ने उचित फैसला किया है।
जयराम ठाकुर मंडी के हैं। इस तरह वहां के लोग इस बात से प्रसन्न हैं कि पहली बार प्रदेश में मंडी से कोई मुख्यमंत्री बना है। पर जयराम ठाकुर के सामने जो चुनौतियां होंगी, उनमें मंडी इलाके की समस्याओं से मुक्ति दिलाने की भी होगी। पिछले कुछ सालों में हिमाचल के विभिन्न इलाकों में विकास के नाम पर चलाई गई परियोजनाओं की वजह से पर्यावरण को पहुंच रहे नुकसान को लेकर लोगों में आक्रोश देखा गया है। खनिजों की निकासी और सूक्ष्म पनबिजली परियोजनाओं के चलते अनेक इलाकों में पहाड़ों के खिसकने की घटनाएं बढ़ी हैं। खनिजों के लिए खुदाई से कई पहाड़ खोखले हो चुके हैं। इसमें मंडी इलाका भी काफी प्रभावित है। विकास परियोजनाओं और रोजगार के नए अवसर पैदा करने के नाम पर पर्यावरण की बिगड़ती हालत को संभालना ठाकुर के लिए बड़ी चुनौती होगी। हालांकि केंद्र सरकार का जोर विदेशी और निजी कंपनियों का निवेश बढ़ाने और औद्योगिक विस्तार पर अधिक है। इससे उन्हें तालमेल बिठाना होगा। फिर पार्टी का जनाधार मजबूत करने का दारोमदार भी काफी हद तक उन पर होगा। इस तरह उन्हें अपने कामकाज के जरिए लोगों का भरोसा जीतना होगा।