चुनाव कराने के तरीके को लेकर विपक्षी इंडिया गठबंधन ने आयोग को कुछ सुझाव भेजे हैं। सुझाव की शक्ल में हैं सवाल। दिल्ली में अपनी चौथी बैठक में विपक्षी गठबंधन ने प्रस्ताव पारित कर चुनाव आयोग से मांग की है कि मतपत्रों के जरिए चुनाव कराए जाएं और अगर ऐसा नहीं हो सकता को मतदाता सत्यापित पर्चियों (वीवीपीएटी) की सौ फीसद गिनती की जाए।

विपक्ष का सुझाव है कि मतदान के दौरान पर्ची को बाक्स में डालने की जगह इसे मतदाता को सौंपा जाए और वह अपनी पसंद को सत्यापित करने के बाद इसे मतपेटी में डाल देगा। विपक्षी नेताओं का दावा है कि चुनाव आयोग ने ज्ञापन का जवाब नहीं दिया है। दरअसल, हाल में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद मध्य प्रदेश के नतीजों को लेकर सवाल उठे। कहा गया कि नतीजा पूर्व सर्वेक्षण के जरिए वहां के परिणाम के बारे में पहले से माहौल बनाने की कोशिश की गई। यह गंभीर बात है। ऐसी बातों का सीधा संबंध भारतीय लोकतंत्र की साख से होता है।

लोकतंत्र का अनिवार्य तत्व है कि चुनाव में सभी सहभागी पक्षों का यकीन बना रहे। तभी राजनीतिक दल अपनी हार को सहजता से स्वीकार कर पाएंगे। ईवीएम की बनावट और संचालन को लेकर अरसे से सवाल उठते रहे हैं। राजनीतिक दल ही नहीं, कई स्तर पर विशेषज्ञ और पेशेवर भी संदेह जताते रहे हैं। चुनाव आयोग ऐसे दावों का खंडन करता आ रहा है। वर्ष 1998 में दिल्ली, राजस्थान और मध्य प्रदेश के विधानसभा की कुछ सीटों पर ईवीएम का इस्तेमाल हुआ था। लेकिन वर्ष 2004 के आम चुनाव में पहली बार हर संसदीय क्षेत्र में ईवीएम का पूरी तरह से इस्तेमाल हुआ।

2009 के चुनावी नतीजों के बाद इसमें गड़बड़ी का आरोप भाजपा ने लगाया। विदेशों की बात करें तो दुनिया के 31 देशों में ईवीएम का इस्तेमाल हुआ, लेकिन अधिकतर देशों ने इसमें गड़बड़ी की शिकायत के बाद मतपत्र की विधि अपना ली। अमेरिका, इंग्लैंड और जर्मनी जैसे विकसित देशों ने ईवीएम को नकार ही दिया। वहां चुनाव मतपत्रों के द्वारा ही कराए जाते हैं। इन तथ्यों के बरअक्स यह सवाल बार-बार उठता है कि क्या भारत में मतपत्रों की वापसी संभव है।

चुनाव आयोग कई बार कह चुका है कि तकनीक के मौजूदा दौर में अतीत की ओर लौटना उचित नहीं होगा। जाहिर है, वैकल्पिक उपाय सोचने होंगे। विपक्ष ने ईवीएम और पर्चियों की गणना साथ-साथ कराने का सुझाव दिया है। कहा जा रहा है कि ऐसा करने से भविष्य में कोई दल सत्तारूढ़ दल पर चुनावों में धांधली को लेकर सवाल नहीं उठा पाएगा।

चुनाव लोकतंत्र की नींव होते हैं। किसी देश का भविष्य चुनाव में जीतने वाले दल के हाथ में होता है। चाहे उसे कुल मतदाताओं के एक तिहाई ही मत क्यों न मिले हों, पर उसकी नीतियों का असर सौ फीसद मतदाताओं और उनके परिवारों पर पड़ता है। इसलिए चुनाव आयोग का हर काम निष्पक्ष और पारदर्शी होना चाहिए।

चुनाव आयोग की यह छवि धूमिल न हो, यह देखना सत्ता पक्ष के साथ विपक्ष का भी काम है। एक स्वस्थ लोकतंत्र में होने वाली सबसे बड़ी प्रतियोगिता चुनाव है। उसके आयोजक यानी चुनाव आयोग से निष्पक्षता की अपेक्षा स्वाभाविक है। चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है, इसकी शुचिता बनी रहनी चाहिए।