इंडियन प्रीमियर लीग यानी आइपीएल की टीमों में खिलाड़ियों की खरीद के लिए लगी बोली में जिस तरह चर्चित क्रिकेटरों के बरक्स अनपहचाने भारतीय खिलाड़ियों ने जगह बनाई, उससे निस्संदेह उन तमाम खिलाड़ियों का हौसला बुलंद हुआ है जिनमें क्रिकेट का जुनून है। पिछले दिनों आइपीएल में सट्टेबाजी और स्पॉट फिक्सिंग के आरोपों के चलते इस खेल को लेकर खेल प्रेमियों में निराशा घर करती गई थी, वह भी इस नीलामी से कुछ हद तक दूर हुई है। आइपीएल खेलों का आयोजन क्रिकेट में रोमांच को भुनाने के मकसद से शुरू हुआ था। यह एक अद्भुत प्रयोग था। इसके चलते कई उभरती अनपहचानी क्रिकेट प्रतिभाओं को सितारे खिलाड़ियों के सामने अपना हुनर दिखाने का मौका मिला है। पर इस बार की नीलामी में आइपीएल टीमों ने क्रिकेट के चमकदार चेहरों की अपेक्षा नए खिलाड़ियों पर ज्यादा भरोसा दिखाया। उनमें पवन नेगी, नाथू सिंह, मुरुगन आश्विन, संजू सैमसन और ऋषभ पंत ने अप्रत्याशित सफलता अर्जित की। पवन नेगी ने तमाम देशी-विदेशी बड़े खिलाड़ियों को पछाड़ते हुए नीलामी में अनुभवी खिलाड़ी शेन वाटसन के करीब जगह बना ली। इनमें मुंबई इंडियंस टीम का नाथू सिंह को तीन करोड़ बीस लाख में खरीदना सबको हैरान करने वाला रहा। जब यह नीलामी चल रही थी तब बहुत सारे खेल प्रेमी हैरान थे कि आखिर टीमें इस तरह खिलाड़ियों का चयन क्यों कर रही हैं। मगर चयनकर्ताओं ने तमाम मंजे हुए खिलाड़ियों के बीच नए चेहरों का चुनाव किया तो, उसके पीछे उनका कौशल और बेहतरीन प्रदर्शन था। नाथू सिंह की पृष्ठभूमि निहायत सामान्य है। उनके पिता की आय इतनी भी नहीं कि वे किसी बेहतर क्रिकेट अकादमी में अपने बेटे का दाखिला करा सकें, उसके खेल का मासिक खर्च उठा सकें। जो कुछ उन्होंने किया, वह थोड़ा-बहुत उधार लेकर और अपना पेट काट कर किया। फिर भी नाथू ने तमाम नामी खिलाड़ियों के बीच अपनी पहचान बनाई तो इसके पीछे उसकी प्रतिभा थी।
आइपीएल टीमों के इस चुनाव ने एक बार फिर यही रेखांकित किया है कि हमारे देश में खेल प्रतिभाओं की कमी नहीं है, जरूरत है तो सिर्फ उन्हें पहचानने और प्रोत्साहित करने की। तमाम खेलों में ऐसे हजारों खिलाड़ी हैं, जिन्होंने साधनहीनता की स्थिति में और अपने दम पर कुशलता अर्जित की है। क्रिकेट को लेकर दीवानगी चूंकि हमारे देश में कुछ अधिक है, इसलिए इसमें खिलाड़ियों की कतार भी लंबी है। अनेक प्रशिक्षण अकादमियां खुल गई हैं। मगर जब खिलाड़ियों को मौका देने की बात होती है, तो उसमें अक्सर रसूख प्रभावी साबित होता है। भारतीय क्रिकेट टीम में खिलाड़ियों के चयन को लेकर प्राय: ऐसे आरोप लगते रहे हैं। इसलिए राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर के मैचों में जगह न मिल पाने की वजह से हजारों खिलाड़ियों का हुनर महज शौक साबित होकर रह जाता है। आइपीएल टीमों ने नई प्रतिभाओं पर भरोसा करके उनकी प्रतिभा का सम्मान किया है। जाहिर है, इससे दूसरे नए खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ेगा। हालांकि आइपीएल मैचों में फिक्सिंग और सट्टेबाजी मामले में नए खिलाड़ी ज्यादा दोषी पाए गए थे। मगर उसकी वजह थी कि उन पर दबाव बनाना टीम मालिकों और सटोरियों के लिए आसान था। लोढ़ा समिति की सिफारिशों और सर्वोच्च न्यायालय की सख्ती के बाद वैसे प्रयास शायद फिर न हों। इसलिए नए खिलाड़ियों के गुमराह होने की उम्मीद भी कम रहेगी। ऐसे में उनके लिए आइपीएल से आगे का रास्ता तय करने में आसानी होगी।