कई बार कह चुकी हूं मैं कि कांग्रेस पार्टी की राजनीतिक समस्या सिर्फ यह है कि गांधी परिवार को अभी गवारा नहीं है कि वह सत्ता में नहीं रहा। इसलिए अच्छा लगा जब पिछले हफ्ते यही बात प्रधानमंत्री ने कही और वित्तमंत्री ने भी। और भी अच्छा लगा जब राहुल गांधी ने गलती से इस बात को खुद इन शब्दों में कबूल किया कि, ‘मैं यहां भारत को नरेंद्र मोदी से बचाने के लिए हूं।’ यानी कि न उन्हें और न उनकी माताजी को 2014 के आम चुनावों का जनादेश स्वीकार है, सो संसद में हंगामा होता रहेगा और संसद के बाहर भी।

ललित मोदी को लेकर मानसून सत्र बेकार न किया जाता तो कोई और मुद्दा जरूर पेश आता। याद रखिए कि राहुल गांधी जबसे अपनी लंबी छुट्टियों से लौटे हैं, तब से आक्रामक रूप धारण करके कोई न कोई मुद्दा ढूंढ़ कर हंगामा करते रहे हैं। पहले गुस्सा व्यक्त किया अमेठी में उस फूड पार्क के बंद होने को लेकर, फिर भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन पर हंगामा हुआ, फिर किसानों की बर्बाद फसलों को लेकर प्रधानमंत्री को कड़े शब्दों में नसीहतें दी गर्इं और अब पुणे स्थित फिल्म इंस्टीट्यूट की समस्याओं को इतना गंभीर समझा राहुलजी ने कि राष्ट्रपति भवन पहुंच गए मोदी सरकार के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने।

रही ललित मोदी और व्यापमं वाले मुद्दे की बात, तो इनमें उनको पूरी तरह मोदी सरकार पर हल्ला बोलने का मौका दिखा। वे भूल गए कि व्यापमं घोटाला तब शुरू हुआ था जब मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। भूल गए कि तब घोटाले की तहकीकात शुरू करवाई भारतीय जनता पार्टी के एक मुख्यमंत्री ने। भूल गए कि ललित मोदी का पासपोर्ट रद्द किया था उनकी मम्मीजी की सरकार ने और उनके शासनकाल में उनको वापस लाने की कोई ठोस कोशिश नहीं हुई। भूल गए इस बात को भी कि आइपीएल तब शुरू हुआ था जब भारत में कांग्रेस का राज था, सो अगर वह वास्तव में काला धन छिपाने का पिटारा है, जैसा राहुलजी अब कहते हैं, तो दोष मोदी सरकार पर नहीं डाला जा सकता। सच तो यह है कि इन तमाम शिकायतों के पीछे एक महाशिकायत यह है कि गांधी परिवार को बिल्कुल गवारा नहीं है कि जिस अधिकार को वह जन्मसिद्ध मानता है, उसे उससे एक गुजराती चाय वाले के बेटे ने छीन लिया है।

मोदी को अब अगर इस बात का अहसास होने लगा है, तो यह भी शीघ्र ही समझ लें कि गांधी परिवार के खिलाफ उनके पास अगर ब्रह्मास्त्र है तो वह आर्थिक है, राजनीतिक नहीं। वे अर्थव्यवस्था में फिर से बहार लाने का काम अगर कर पाते हैं, तो भारत के शाही परिवार को शह भी दे सकेंगे और मात भी। बहार आने से पहले कई आर्थिक सुधारों की जरूरत है, जिनमें से कई संसद के बाहर हो सकते हैं। इनकी तरफ इशारा हरसिमरत कौर बादल ने किया पिछले हफ्ते, जिस दिन मुंबई के उच्च न्यायालय ने मैगी नूडल्स से प्रतिबंध हटाया था। मंत्रीजी ने स्पष्ट शब्दों में टीवी पर कहा कि खाद्य क्षेत्र में इंस्पेक्टर राज इतनी बड़ी समस्या बन गया है कि जिस क्षेत्र में लाखों नई नौकरियों की गुंजाइश है वह तरक्की नहीं कर पा रहा है, बावजूद इसके कि तकरीबन पचास फीसद सब्जियां, फल और अनाज खेतों में ही सड़ जाते हैं।

सच तो यह है कि इंस्पेक्टर राज अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र में है और इसके होते वे एक करोड़ नई नौकरियां कभी नहीं पैदा हो पाएंगी, जिनकी भारत के नौजवानों को हर साल जरूरत है। प्रधानमंत्री बहुत बार कह चुके हैं कि वे भारत में व्यवसाय के लिए बेहतरीन माहौल बनाना चाहते हैं, लेकिन जमीनी तौर पर अभी तक कोई ठोस परिवर्तन नहीं दिख रहा है। निवेशकों पर सरकारी अधिकारियों का ऐसा शिकंजा है कि कई निजी कंपनियां कंगाल हो जाती हैं सरकार के लिए सड़कें, बिजली घर और हवाई अड््डे बनाते। इसलिए कि सरकार उनके पैसे देने में सात से दस साल लगाती है, कोई न कोई विवाद शुरू करके। विवाद सुलझ जाने के बाद भी सरकारी अफसर पैसा देने से कतराते हैं, क्योंकि भ्रष्टाचार विरोधी कानून के तहत उन पर झूठे इल्जाम कोई भी लगा सकता है।

मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद सरकारी अधिकारियों के अधिकार और बढ़ गए हैं, कम होने के बदले। जो काले धन को लेकर नया कानून बना है उसके तहत कर विभाग के अधिकारी उद्योगपतियों पर काला धन रखने के झूठे इल्जाम लगा कर दस साल तक जेल भेज सकते हैं। क्या प्रधानमंत्री जानते नहीं हैं कि कर विभाग के अधिकारियों की जब भी तफ्तीश हुई है, तो काले धन के भंडार मिले हैं? ऐसे लोगों के अधिकार बढ़ाने से कैसे बनेगा व्यवसाय के लिए सुहाना माहौल?

एक और सुधार बहुत जरूरी है। राहुल और सोनिया गांधी ने किसी न किसी बहाने कई महत्त्वपूर्ण उद्योग बंद करवाए थे। कभी पर्यावरण का वास्ता देकर, तो कभी आदिवासियों की धार्मिक भावनाओं का वास्ता देकर। ये ऐसी योजनाएं थीं, जिनमें हजारों करोड़ रुपए का निवेश हो चुका था, सो जब इनको बंद किया गया तो अर्थव्यवस्था को गहरा नुकसान हुआ। मोदी ने खुद कई बार इनका जिक्र किया है ‘जयंती टैक्स’ का मजाक उड़ा कर, लेकिन इनको दोबारा जिंदा करने का काम अभी तक शुरू नहीं हुआ है। व्यवसाय के लिए सुहाना माहौल कैसे बन पाएगा जब इस तरह की गलतियों को सुधारने का काम शुरू भी नहीं हुआ है?
प्रधानमंत्री अगर इस डर से रुक गए हैं कि उन पर ‘शूट-बूट सरकार’ का इल्जाम लगा चुके हैं राहुल गांधी, तो बहुत बड़ी गलती कर रहे हैं। इस तरह के इल्जाम लगते रहेंगे, ताकि मोदी किसी हालत में सफल न हों। फूंक-फूंक कर चलने का समय नहीं है अब।