बदलते वैश्विक परिदृश्य में भारत और कुवैत के बीच साझेदारी के जिस नए अध्याय की शुरूआत हुई है, वह दोनों देशों के लिए बेहद अहम है। यों आर्थिक और कूटनीतिक स्तर पर भारत-कुवैत के रिश्ते काफी पुराने हैं, लेकिन अब दोनों पक्षों के बीच इसे रणनीतिक साझेदारी में बदलने पर सहमति बनी है और कुछ अहम समझौतों पर हस्ताक्षर भी हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कुवैत के अमीर शेख मेसल अल-अहमद अल-जबर अल-सबा के बीच रविवार को हुई व्यापक वार्ता के बाद जारी संयुक्त बयान में आतंकवाद के खिलाफ मोर्चेबंदी में आपसी सहयोग बढ़ाने का संकल्प लिया गया और सीमा पार से संचालित सभी तरह के आतंकवाद की साफ शब्दों में निंदा की गई।
आतंकवाद को लेकर कुवैत की ओर से जारी यह स्पष्टता भारत के लिहाज से इसलिए महत्त्वपूर्ण
खासकर सीमा पार आतंकवाद को लेकर कुवैत की ओर से जारी यह स्पष्टता भारत के लिहाज से इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि यहां के जम्मू-कश्मीर जैसे पाकिस्तान की सीमा से सटे इलाके इस समस्या से बहुत बुरी तरह प्रभावित रहे हैं। पाकिस्तान स्थित ठिकानों से संचालित आतंकी गतिविधियां भारत के लिए एक बड़ी चुनौती रही हैं।
43 लाख में 10 लाख भारतीय
गौरतलब है कि करीब तैंतालीस वर्षों के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री का यह पहला कुवैत का दौरा है, जिसमें भारत और कुवैत के बीच साझेदारी के जिन आयामों पर सहमति बनी है, उसे अरब देशों में भारत के कूटनीतिक मोर्चे के मजबूत होने के तौर पर देखा जा रहा है। कुवैत की कुल तैंतालीस लाख की आबादी में करीब दस लाख भारतीय हैं और कुल श्रमिकों में तीस फीसद और बड़ी संख्या में इंजीनियर तथा वित्तीय क्षेत्र के पेशेवर भारत से गए लोग हैं।
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इस दृष्टि से देखें तो आर्थिक संबंधों में गति लाने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी, औषधि, फिनटेक, बुनियादी ढांचे आदि के क्षेत्र में हुए समझौते और साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग पर बनी सहमति का आने वाले वक्त में सकारात्मक असर पड़ेगा। उम्मीद की जा सकती है कि अब कुवैत में औषधि के क्षेत्र में भारत का निर्यात बढ़ेगा, वहीं कच्चे तेल, गैस और पेट्रोकेमिकल उत्पाद के आयात के समांतर अब रक्षा क्षेत्र में साझेदारी की बुनियाद पर दोनों देशों के बीच संबंधों में और मजबूती आएगी।