जिस वक्त अमेरिका की पारस्परिक शुल्क नीति की वजह से दुनिया भर में आर्थिक अनिश्चितता का वातावरण है, भारत के साथ उसके द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर बातचीत का सिलसिला कई सकारात्मक संकेत लिए हुए है। जब डोनाल्ड ट्रंप ने अलग-अलग देशों से आयात होने वाली वस्तुओं पर अपनी शुल्क दरों की घोषणा की, तो दुनिया भर से तल्ख प्रतिक्रियाएं उभरनी शुरू हो गर्इं। हालांकि ट्रंप प्रशासन ने अपनी शुल्क नीति को नब्बे दिनों के लिए विराम दे रखा है, पर आने वाले दिनों में आर्थिक उथल-पुथल की आशंकाएं समाप्त नहीं हुई हैं।

दुनिया भर के पूंजी बाजार में हिचकोले देखे जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में भारत के साथ अमेरिका का सकारात्मक रुख बना हुआ है। फरवरी में प्रधानमंत्री जब अमेरिका यात्रा पर गए थे, तभी उन्होंने द्विपक्षीय व्यापार समझौते का प्रस्ताव रखा था और अमेरिका ने उस पर गर्मजोशी दिखाते हुए अगले पांच वर्षों में पारस्परिक व्यापार गतिविधियों को वर्तमान एक सौ नब्बे अरब डालर से बढ़ा कर पांच सौ अरब डालर तक पहुंचाने का इरादा जताया था। उसके बाद भारत ने कई अमेरिकी उत्पादों पर शुल्क में भारी कटौती कर दी थी। इसकी ट्रंप ने प्रशंसा भी की।

इस सिलसिले में भारत-अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर दो दिन की बातचीत शुरू हो गई है। माना जा रहा है कि दोनों देश जल्दी ही इस समझौते पर हस्ताक्षर कर लेंगे। इन दिनों अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वेंस भारत दौरे पर हैं। दिल्ली आते ही उन्होंने प्रधानमंत्री के साथ इस मसले पर बातचीत की और सकारात्मक रुख दिखाया था। अभी जब दोनों देशों के बीच इस मसले पर वाशिंगटन में बातचीत शुरू हुई है, तो उसके पहले वेंस ने कहा कि द्विपक्षीय व्यापार संबंधी शर्तें तय हो चुकी हैं। यानी स्पष्ट है कि अगले कुछ महीनों में इस समझौते पर हस्ताक्षर किए जा सकते हैं।

निस्संदेह इस समझौते से न केवल भारत-अमेरिकी रिश्ते और प्रगाढ़ होंगे, बल्कि दुनिया की बदलती आर्थिक स्थितियों में नए समीकरण भी बनेंगे। यों, दोनों देशों के बीच व्यापार को लेकर कोई गहरे मतभेद पहले से ही नहीं थे, जैसे अमेरिका के साथ चीन के हैं। फिर, ट्रंप प्रशासन की पारस्परिक शुल्क नीति को लेकर भारत ने कभी कोई तल्ख टिप्पणी नहीं की। उसने संयम और संतुलन के साथ अमेरिकी फैसलों पर लगातार नजर बनाए रखा और द्विपक्षीय व्यापार को लेकर अपनी बातचीत के सिलसिले को आगे बढ़ाने पर वह कायम रहा। उसी का नतीजा है कि अमेरिका के साथ उसकी नजदीकी कुछ और बढ़ी है।

विशेषज्ञों का मानना है कि दोनों देशों के बीच व्यापार समझौते के तहत कई वस्तुओं पर सीमा शुल्क में भारी कटौती की जा सकती या उसे खत्म किया जा सकता है। अमेरिका चाहता है कि भारत उसके औद्योगिक उत्पादों, विद्युत वाहनों, वाइन, पेट्रोरसायन, दुग्ध और कुछ कृषि उत्पादों के आयात में रियायत दे, जबकि भारत चाहता है कि अमेरिका यहां के परिधान, कपड़ा, रत्न और आभूषण, चमड़ा, प्लास्टिक समेत समुद्री खाद्य आदि के निर्यात पर शुल्क कम करे।

अमेरिका ने फिलहाल सभी देशों के लिए आधार शुल्क दस फीसद रखा हुआ है, इसलिए इन वस्तुओं पर शुल्क निर्धारण में सहनीय दरें रखना बहुत पेचीदा मसला नहीं माना जा रहा। इसके अलावा, ट्रंप प्रशासन पर दुनिया भर से और अपने नागरिकों की ओर से शुल्क निर्धारण में नरमी लाने के जैसे दबाव बन रहे हैं, उसमें कुछ सकारात्मक नतीजों की उम्मीद बनी हुई है।