पहलगाम हमले के बाद जिस तरह दुनिया के अनेक देश भारत के समर्थन में खड़े नजर आ रहे हैं, उससे निश्चय ही पाकिस्तान में पल रहे आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक युद्ध को बल मिला है। सब जानते हैं कि पाकिस्तान सदा से भारत के विरुद्ध आतंकवाद को पोसता और एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करता रहा है। विश्व आतंकवाद की सूची में भी वह दुनिया में सबसे ऊपर के देशों में शुमार है। इसलिए चीन को छोड़ कर शायद ही किसी का पाकिस्तान को खुला समर्थन है।

पहलगाम की घटना के बाद देश में जनाक्रोश है। पर सरकार अभी रणनीतिक रूप से संयम बरत रही है, तो उसकी वजहें साफ हैं। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुतारेस ने कहा है कि सैन्य कार्रवाई समस्या का समाधान नहीं है। मगर रूस, जापान, अमेरिका आदि ने आतंकवाद से निपटने में भारत का समर्थन किया है। फिर भी पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा। पहलगाम हमले के बाद से ही वह लगातार नियंत्रण रेखा पर गोलीबारी कर रहा है। वह संघर्ष विराम का उल्लंघन कर एक तरह से भारत को उकसा रहा है। मगर भारत अभी सही समय के इंतजार में है।

यह तो साफ है कि पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए केवल सैन्य कार्रवाई काफी नहीं है। उसके खिलाफ लंबे वक्त की रणनीति बना कर हमले करने होंगे। इसलिए सरकार ने पहले उस पर आर्थिक आघात करने का निर्णय किया। उसमें सिंधु जल समझौते को निलंबित कर दिया गया, पाकिस्तान से किसी भी प्रकार का आयात-निर्यात रोक दिया गया। माली बदहाली के बुरे दौर से गुजर रहे पाकिस्तान पर ये दो बड़े हमले हैं। उसके बाद सेनाध्यक्षों को कार्रवाई के लिए खुली छूट दे दी गई है। अब कई राज्यों में हवाई हमलों के वक्त नागरिकों को सतर्क रहने और सुरक्षा के अभ्यास कराए गए हैं।

जाहिर है, जमीनी जंग की तैयारियां भी चल रही हैं। हालांकि कुछ लोग अब भी दबाव बनाने का प्रयास कर रहे हैं कि पाकिस्तान पर हमले में देर नहीं होनी चाहिए। मगर अब तक के अनुभवों से जाहिर है कि तात्कालिक प्रतिक्रिया में की गई कार्रवाइयों का कोई उल्लेखनीय और स्थायी प्रभाव नहीं पड़ा है।

पुलवामा और उड़ी हमले के बाद सेना ने पाकिस्तान सीमा में घुस कर लक्षित हमले किए थे, पर हकीकत यही है कि वहां आतंकी प्रशिक्षण शिविर बंद नहीं हुए हैं। ऐसे में, अगर आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक युद्ध के लिए ठंडे दिमाग से रणनीति बनाई जा रही है, तो उम्मीद की जानी चाहिए कि उसका उल्लेखनीय नतीजा निकल सकता है।

पाकिस्तान की सेना और खुफिया एजंसी आइएसआइ आतंकवादी संगठनों को संरक्षण और प्रशिक्षण देती रही हैं। जाहिर है, इन दोनों को सबक सिखाए बगैर इस समस्या पर काबू पाने का भरोसा नहीं दिलाया जा सकता। मगर इसके लिए सैन्य कार्रवाई के समांतर ही वहां की सियासी हुकूमत पर नकेल कसना भी जरूरी है। हालांकि पाकिस्तान एक तरह से दुनिया से अलग-थलग पड़ चुका है और चीन की इमदाद पर उसका गुजारा चल पा रहा है।

बाहरी रकम का बड़ा हिस्सा सेना के हिस्से चला जाता है। ऐसे में उसे बाहर से मिलने वाली इमदाद और उसकी अंदरूनी कमजोरियों पर भी हमला करना जरूरी माना जाता है। भारत उसे उन सभी मोर्चों पर घेरने और कमजोर करने में जुटा है। इस रणनीतिक घेरेबंदी से बेहतर नतीजों की उम्मीद है।