क्रिकेट को बाकी खेलों के मुकाबले ज्यादा अनिश्चितताओं का खेल कहा जाता है। इसके बावजूद क्रिकेट खेलने वाले सभी देशों की टीमें इसमें अपनी आखिरी हद तक जीत की कोशिश करती हैं। खासतौर पर अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में जीत हासिल करना किसी भी टीम का सपना होता है। लेकिन इसमें बाजी वही टीम मारती है, जो अपने सामने खड़ी होने वाली सभी तरह चुनौतियों का सटीक अंदाजा लगा पाती है।
विश्वकप प्रतियोगिताओं में भारतीय क्रिकेट टीम ने अपनी अच्छी साख बनाई है और दुनिया की मजबूत टीमों में शुमार की जाती है। हालांकि अनेक मौकों पर विश्वकप के मैचों में टीम को अपेक्षित कामयाबी नहीं मिली, लेकिन यह मैदान के हालात पर निर्भर है कि उसमें कितना दम दिखाने का मौका मिला।
अपनी मजबूत स्थिति और छवि को बनाए रखने के लिए भारत की ओर से हर कोशिश की जाती है और इसी को मद्देनजर रखते हुए टीम का भी चयन किया जाता है। यों मैदान में प्रदर्शन से ही किसी की वास्तविक क्षमता का पता चल पाता है, लेकिन विश्वकप जैसी प्रतियोगिता के लिए चुने गए खिलाड़ियों की टीम को आमतौर पर अनुभव और ऊर्जा की कसौटी पर आंका जाता है।
इस लिहाज से देखें तो विश्वकप प्रतियोगिता के लिए मंगलवार को जिस भारतीय टीम की घोषणा की गई, उसमें चुने गए खिलाड़ियों के समीकरण को मैदान में सभी मोर्चों को साधने की कवायद कहा जा सकता है। कप्तानी रोहित शर्मा के पास रहेगी और टीम के उपकप्तान हार्दिक पांड्या होंगे। टीम में पंद्रह खिलाड़ियों को चुना गया है, लेकिन इनमें तीन को हरफनमौला कहा जा सकता है, चार गेंदबाज और सात बल्लेबाज हैं।
इस प्रतियोगिता में भारत के सामने जो मुख्य चुनौतियां होंगी, उसके मुताबिक चुनी गई टीम को संतुलित और गहराई के बेहतर संयोजन के तौर पर देखा जा रहा है। दरअसल, पिछले एक-दो सालों के दौरान अलग-अलग प्रतियोगिताओं और कुछ देशों के साथ हुए मैचों में बल्लेबाजी और गेंदबाजी के मोर्चे पर जिन खिलाड़ियों ने अपनी क्षमता साबित की और भविष्य में और बेहतर करने की उम्मीद जगाई, उनके टीम में शामिल होने की उम्मीद पहले भी जताई जा रही थी। लेकिन कुछ ऐसे खिलाड़ियों को लेकर आशंका बनी हुई थी, जिनका अनुभव टीम के बेहतर प्रदर्शन के लिए जरूरी माना जा रहा था, लेकिन उनके सामने स्वास्थ्य चुनौतियां थीं।
मसलन, विकेट कीपर बल्लेबाज केएल राहुल टीम के एक मजबूत स्तंभ के तौर पर देखे जा रहे थे, लेकिन चोट और आपरेशन के बाद वे पिछले करीब छह महीने से अंतरराष्ट्रीय मैच नहीं खेल सके थे। अब उनके स्वस्थ होने से टीम में एक बड़ी कमी पूरी होने की उम्मीद बंधी है। फिर श्रेयस अय्यर और जसप्रीत बुमराह ने भी चोट से उबर कर टीम में वापसी की है।
इसी तरह, हाल के प्रदर्शन के बजाय विस्फोटक क्षमता के आधार पर सूर्यकुमार यादव को तरजीह दिया गया। दूसरी ओर, कुलदीप, रविंद्र जडेजा और मोहम्मद शमी आदि को गेंदबाजी के मोर्चे की मजबूत ताकत के तौर पर देखा गया है। पिछले दस साल से भारतीय टीम आइसीसी का कोई बड़ा खिताब नहीं जीत पाई है, लेकिन अब उम्मीद की जानी चाहिए कि करीब बारह साल बाद भारतीय टीम के पास विश्वकप जीतने का मौका है।
यह ध्यान रखने की जरूरत है कि भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता, दर्शक संख्या आदि के मद्देनजर अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में देश को खास जगह हासिल है। स्वाभाविक ही दुनिया भर में अपेक्षा की जाती है कि भारतीय टीम विश्वकप के फाइनल में पहुंचे। लेकिन भारत में उम्मीद यह होगी कि टीम विश्वकप जीत कर लाए।