जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमले के बाद भारत के ‘आपरेशन सिंदूर’ की सफलता ने दुनिया को यह साफ संदेश दिया है कि सीमा पार से आतंकवाद को अब कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। पाकिस्तान भी अब दबी जुबान में यह स्वीकार कर रहा है कि चार दिन के सैन्य संघर्ष के दौरान भारत के लक्षित हमलों से उसे नुकसान झेलना पड़ा है। वह भी ऐसी स्थिति में जब चीन और तुर्किये न केवल कूटनीतिक, बल्कि तकनीकी और हथियारों की आपूर्ति में भी पाकिस्तान का सहयोग कर रहे थे। इस संघर्ष में चीन और तुर्किये की भूमिका पहले भी उजागर हो चुकी है, लेकिन अब भारतीय सेना के उप प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर सिंह ने खुलासा किया है कि चीन भारतीय सैन्य तैनाती की पाकिस्तान को सीधी जानकारी दे रहा था।

यही नहीं, चीन ने पाकिस्तान के चेहरे का इस्तेमाल कर इस संघर्ष को अपने हथियारों के परीक्षण की प्रयोगशाला की तरह लिया। हालांकि, भारतीय सैन्य बलों की जवाबी कार्रवाई ने चीन के इस परीक्षण के नतीजों की सच्चाई भी सबके सामने ला दी है। चीनी हथियारों के हर वार को नाकाम कर भारत ने यह साबित कर दिया है कि उसके सुरक्षा कवच को भेदना इतना आसान नहीं है। मगर, पाकिस्तान को चीन और तुर्किये का साथ मिलने से यह बात भी साफ हो गई है कि भविष्य में भारत के लिए चुनौतियां और बढ़ेंगी, जिनसे निपटने के लिए कई मोर्चों पर तैयारी की जरूरत है।

भारत दुनिया में तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था है

भारत दुनिया में तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था है यह बात भी किसी से छिपी नहीं है कि पाकिस्तान और चीन की दोस्ती भारत की वजह से है। दरअसल, भारत दुनिया में तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था है और चीन भविष्य की संभावनाओं को लेकर इससे चिंतित है। इसलिए वह कूटनीतिक तरीके से पाकिस्तान को अपने पाले में बनाए रखना चाहता है। संकट के दौरान पाकिस्तान की मदद करने से भी वह पीछे नहीं हटता है। इसके पीछे चीन के अपने निजी स्वार्थ निहित हैं।

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उधर, तुर्किये भी पाकिस्तान का मददगार बना हुआ है, लेकिन भारत को सीधे तौर पर तुर्किये से कोई खतरा नहीं है। चीन से चुनौती इसलिए है, क्योंकि पाकिस्तान की तरह उसके साथ भी भारत की सीमा लगती है। भारत और चीन को वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) विभाजित करती है और चीन यहां पर घुसपैठ की नाकाम कोशिश करता रहता है।

पर्दे के पीछे चीन और तुर्किये पाकिस्तान को हरसंभव सहायता दे रहे थे

भारतीय सेना के उप प्रमुख के मुताबिक, सात से दस मई के बीच हुए सैन्य संघर्ष के दौरान पाकिस्तान सिर्फ सामने नजर आ रहा था, पर्दे के पीछे चीन और तुर्किये उसे हरसंभव सहायता दे रहे थे। चीन अपने उपग्रहों का उपयोग भारतीय सैन्य तैनाती की निगरानी के लिए कर रहा था। बहरहाल, रक्षा मामलों में चीन और पाकिस्तान को अलग-अलग करके देखना सही नहीं होगा। ‘आपरेशन सिंदूर’ के बाद यह तस्वीर साफ हो गई है कि चीन और पाकिस्तान ने अपनी रक्षा रणनीतियों में गहरा तालमेल बना लिया है।

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जब कभी पाकिस्तान से भारत के सैन्य टकराव की स्थिति आएगी, चीन भले ही परोक्ष रूप से, लेकिन उसमें खास भूमिका निभाएगा। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए भारत को खुद को तैयार करना होगा। रक्षा उद्योग को अनुसंधान और विकास पर अधिक निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करना होगा, ताकि रक्षा मामलों में भारत की आत्मनिर्भता को मजबूत किया जा सके। कूटनीतिक स्तर पर विभिन्न देशों से संबंधों को सुदृढ़ करने के प्रयासों में भी तेजी लानी होगी, ताकि जरूरत के समय उनका साथ मिल सके।