पिछले कुछ वर्षों के दौरान वैश्विक स्तर पर सहयोग के समीकरणों में तेजी से बदलाव हो रहा है, उसमें ज्यादातर देशों के लिए यह बात मायने रखती है कि आर्थिक, रणनीतिक और कूटनीतिक मोर्चे पर भारत का रुख क्या रहता है। यह बेवजह नहीं है कि अलग-अलग देश अपने तरीके से भारत के साथ सहयोग के नए रास्ते खोजने की कोशिश कर रहे हैं। डोनाल्ड ट्रंप के इस बार राष्ट्रपति बनने के बाद कई मसलों पर अमेरिका का रुख छिपा नहीं है। ट्रंप के कई बयानों से वैश्विक स्तर पर उपजी अनिश्चितता के बीच यह स्वाभाविक ही है कि दूसरे देश भावी अवरोधों के मद्देनजर नए और वैकल्पिक रास्तों की ओर कदम बढ़ाएं।
इस लिहाज से देखें तो यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वान डेर लेयेन की ताजा भारत यात्रा की अपनी अहमियत है। गौरतलब है कि बढ़ती वैश्विक चिंताओं के बीच यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष का मुख्य उद्देश्य व्यापार, निवेश और स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्रों में भारत के साथ सहयोग को बढ़ाना है। उनके साथ सत्ताईस सदस्य देशों के वरिष्ठ राजनीतिक नेता भी भारत दौरे पर आए हैं। भारत के प्रधानमंत्री के साथ बैठक के दौरान दोनों पक्षों ने आपसी साझेदारी को और ज्यादा मजबूत करने के साथ-साथ भारत, पश्चिम एशिया, यूरोप आर्थिक गलियारे जैसी अत्यधिक महत्त्वपूर्ण संपर्क परियोजनाओं पर व्यापक चर्चा की।
यूरोपीय संघ और भारत के बीच व्यापार लगभग एक सौ साठ बिलियन डालर का है। फिलहाल यूरोप में करीब पचास लाख भारतीय रहते हैं और भारतीय पेशेवरों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। जाहिर है, अगर यूरोपीय संघ और भारत के बीच साझेदारी का नया अध्याय शुरू होता है, तो उसमें इन तथ्यों की अहम भूमिका रहेगी। यही वजह है कि यूरोपीय संघ की अध्यक्ष की यात्रा के दौरान दोनों पक्षों ने व्यापार और निवेश के क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने की दिशा में कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाने पर संवाद को आगे बढ़ाया है।
इस क्रम में मुक्त व्यापार समझौते के जरिए दोनों क्षेत्रों में व्यापार को बढ़ावा देने, बाजार तक पहुंच में सुधार लाने और परस्पर आर्थिक सहयोग को और मजबूत करने की दिशा में कुछ महत्त्वपूर्ण फैसले लिए जा सकते हैं। साथ ही, बाहरी अंतरिक्ष, रक्षा, जल प्रबंधन और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में भी सहयोग की संभावना बेहतर होने की उम्मीद है।
एक रपट के मुताबिक, भारत में मौजूदा समय में छह हजार से अधिक यूरोपीय कंपनियां काम कर रही हैं। वे लाखों नौकरियों का सृजन कर रही हैं और इस तरह भारत के आर्थिक विकास में योगदान दे रही हैं। ऐसे में अगर यूरोपीय संघ और भारत के बीच आर्थिक सहयोग का माहौल बेहतर हो तो दोनों पक्षों के बीच निवेश के नए रास्ते खुल सकते हैं और कारोबारी माहौल में और सुधार हो सकता है। हालांकि इस संदर्भ में यह भी ध्यान में रखने की जरूरत है कि यूरोपीय संघ अगर भारत के साथ अपने व्यापार संबंधों को बढ़ाने की कोशिश में है, तो इसके पीछे चीन के जोखिम से पार पाना भी एक मुख्य कारण है।
यूरोपीय संघ से कार, शराब और अन्य उत्पादों पर ऊंचे आयात शुल्क, यूरोपीय बाजार में उसकी दवाओं और रसायनों तक भारत की ज्यादा पहुंच, भारत की ओर से कार्बन टैक्स के प्रस्ताव का विरोध, डेटा सुरक्षा आदि कई ऐसे बिंदु हैं, जिन पर सहमति की बुनियाद पर ही दोनों पक्षों के बीच संबंधों का यह सफर आगे बढ़ सकेगा। यह जरूरी होगा कि अगर इस वर्ष के अंत तक एक मुक्त व्यापार समझौता सामने आता है, तो वह आपसी हितों को सुनिश्चित करने वाला हो।