भारत-चीन के बीच सीमा विवाद और अन्य मुद्दों पर वार्ता में जिन बिंदुओं पर सहमति बनने के दावे किए जाते हैं, उनमें से कई धरातल पर नहीं दिखते। संबंधों में कभी नरमी तो कभी गरमी बनी रहने बावजूद यह अच्छी बात है कि दोनों पक्ष बातचीत की मेज पर बैठते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच रूस के कजान में मुलाकात के बाद दोनों देशों में विभिन्न स्तर पर कूटनीतिक और सैन्य वार्ता जारी है। लद्दाख में सीमा विवाद को लेकर वार्ता का दौर लंबा चला है। वहां कुछ गश्ती इलाकों को लेकर समाधान निकाला जाना अभी भी बाकी है।
बहरहाल, यह अच्छी बात है कि दोनों देशों में बातचीत का क्रम हाल के दिनों में कभी टूटा नहीं है। इसी कड़ी में जी-20 सम्मेलन में जब दोनों देशों के विदेशमंत्री अलग से मिले, तो उन्होंने मानसरोवर यात्रा बहाल करने और सीमा विवादों को लेकर उत्साहजनक बातचीत की। हालांकि मानसरोवर यात्रा फिर से शुरू करने को लेकर दोनों देशों के विदेश मंत्रालय के स्तर पर पिछले महीने ही फैसला हो गया था, मगर विदेश मंत्रियों की ताजा बैठक से उसका आधार और मजबूत हुआ है।
करीब पांच वर्ष से रुकी है कैलास मानसरोवर यात्रा
अब दोनों देशों के संबंधित महकमे इसके विभिन्न पक्षों की तैयारी कर सकेंगे। तल्ख रिश्तों की वजह से करीब पांच वर्ष से कैलास मानसरोवर यात्रा रुकी हुई थी। उम्मीद है कि यह यात्रा शुरू होने से दोनों देशों के संबंधों में जमी बर्फ कुछ और पिघलेगी।
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गलवान घाटी में हुए सैन्य संघर्ष के बाद दोनों देशों के रिश्ते तनावपूर्ण हो गए थे। इसके बाद अक्तूबर में रूस के कजान में ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी और चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग की मुलाकात में बर्फ पिघली। जब दोनों नेता मिले, तो उन्होंने जल्दी ही सीमा विवाद सुलझा लेने की योजना पर बात की। इस तरह लंबे समय से चला आ रहा गतिरोध कुछ हद तक दूर हो सका और संवेदनशील मसलों पर बातचीत का सिलसिला शुरू हो सका।
आने वाली गर्मियों में फिर शुरू हो सकती है यात्रा
मानसरोवर यात्रा भारतीयों की आस्था से जुड़ी है, लेकिन सीमा विवाद के कारण चीन उसमें अड़चन पैदा करता रहा है। अब उम्मीद बनी है कि आने वाली गर्मियों में यह यात्रा फिर से शुरू हो सकेगी। फिर, जैसा कि चीन भरोसा दिलाता रहा है और पिछले कुछ महीनों में उसने इस पर बल देकर कहा है कि सीमा की पहचान का काम जल्दी ही पूरा कर लिया जाएगा, मानसरोवर यात्रा शुरू होने से उसके वादे पर यकीन कुछ बढ़ेगा।
यह अच्छी बात है कि दोनों देश सौहार्दपूर्ण वातावरण में बातचीत करते रहे हैं। मगर चीन की तरफ से यह साबित करना अभी बाकी है कि सौहार्द की सीमा केवल बातचीत की मेज तक सीमित नहीं होनी चाहिए। इसे धरातल पर भी दिखना चाहिए। चीन अब भी अपनी विस्तारवादी नीतियों के चलते भारत के हिस्से वाले इलाकों में पांव पसारने से बाज नहीं आता।
सुरक्षा गश्त को लेकर भी उठते हैं सवाल
अपने आधिकारिक मानचित्र में बदलाव कर वह भारत के कई क्षेत्रों को अपने हिस्से में दिखा चुका है। उसने कुछ इलाकों में भारत की जमीन पर अपने प्रशासनिक भवन खड़े कर लिए हैं। कुछ विवादित भूखंडों पर पुल आदि का निर्माण कर रहा है। सुरक्षा गश्त को लेकर भी सवाल उठते हैं। अगर चीन सचमुच भारत के साथ अपने रिश्ते सौहार्दपूर्ण बनाए रखना चाहता है, तो उसे व्यावहारिक धरातल पर लचीलापन दिखाना होगा।