राजस्थान के भीलवाड़ा में एक बच्ची की हत्या की घटना ने यही साबित किया है कि राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है और ऐसा लगता है कि अपराधियों के भीतर प्रशासन का कोई भय नहीं रह गया है। खबरों के मुताबिक, कोटड़ी इलाके के नरसिंहपुरा गांव में बकरी चराने खेतों की ओर गई बच्ची जब देर तक घर नहीं लौटी तब उसके परिवार के लोगों ने ढूंढ़ना शुरू किया।
खेतों में लकड़ी जला कर कोयला बनाने वाली एक भट्टी में कुछ अवशेष मिलने और उसकी पहचान के बाद यह पता चल सका कि बच्ची की हत्या करके उसे जला दिया गया है। स्थानीय लोगों ने आशंका बलात्कार की भी जताई है। जब मामले ने तूल पकड़ लिया, तब पुलिस ने चार आरोपियों को हिरासत में लिया। लेकिन आखिर क्या कारण है कि राजस्थान में पिछले कुछ समय से बलात्कार की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं और सरकार के लिए उन पर रोक लगाना मानो मुश्किल हो गया है। सरकार और पुलिस के कामकाज का वह कौन-सा तरीका है कि आपराधिक मानसिकता वाले लोगों के भीतर कोई खौफ नहीं रह गया लगता है।
राजस्थान पुलिस की हाल की एक रपट कहती है कि दस साल से कम आयु की बच्चियों से बलात्कार की घटनाओं में करीब तीन फीसद का इजाफा हुआ है। वहीं छोटी बच्चियों से सामूहिक बलात्कार की वारदात में भी इस साल 13.64 फीसद की बढ़ोतरी हुई है। यानी खुद पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि पिछले कुछ सालों में मासूम बच्चियों के खिलाफ यौन हिंसा और दरिंदगी की घटनाएं बढ़ी हैं। बलात्कार के ज्यादातर मामलों में मुख्य आरोपी पीड़ित के परिचित ही होते हैं।
लेकिन इन घटनाओं पर पुलिस को जहां सक्रिय होकर अपराधियों के खिलाफ जरूरी कार्रवाई करनी चाहिए वहां शासन-प्रशासन के भीतर एक विचित्र चुप्पी छाई दिखती है। क्या यही रवैया एक मुख्य कारण नहीं है जिसकी वजह से आपराधिक तत्त्वों को अपनी मनमानी करने को लेकर बेखौफ बनाता है? फिर देश के दूसरे इलाकों में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों को लेकर आक्रामक रहने वाली पार्टियों को क्या राजस्थान में भी बढ़ते अपराधों और खासतौर पर महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा के मामलों को लेकर संवेदनशील और ठोस रुख नहीं अपनाना चाहिए?
दरअसल, यौन हिंसा की बढ़ती घटनाएं जहां कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर सरकार की नाकामी का नतीजा हैं, वहीं एक सवाल यह भी है कि बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के मामले बिगड़ती तस्वीर को लेकर कानूनी सख्ती के साथ-साथ क्या इससे जुड़ी अन्य जटिलताओं पर विचार किया जाता है? कुछ लोगों के भीतर ऐसी कुंठा और मानसिक विकृति पलती रहती है, जिसका शिकार होकर वे मासूमों तक की हत्या या उनके खिलाफ यौन हिंसा करने से नहीं हिचकते।
पेशेवर अपराधियों से निपटना पुलिस की कामकाज की शैली और ईमानदार इच्छाशक्ति पर निर्भर है। इसके समांतर बलात्कार जैसे गंभीर अपराधों में भी अगर वैसे लोग भी शामिल पाए जाने लगे हैं, जो आदतन अपराधी नहीं हैं, तो यह किसी भी समाज और सरकार के लिए चिंतित होने वाली बात है। सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी कानून व्यवस्था और उसका प्रभाव कायम करना होना चाहिए, ताकि अपराध की मंशा रखने वालों के भीतर खौफ पैदा हो। साथ ही अपराधों की जड़ पर भी प्रहार करने की जरूरत है।