दुनिया भर में बढ़ते तापमान के दुष्परिणाम सामने आने लगे हैं। जलवायु विशेषज्ञों की राय है कि वैश्विक तापमान को अगर हम स्थिर नहीं रख पाए, तो डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने की सीमा को पार कर जाएंगे। हकीकत यही है कि जलवायु संकट हमारी देहरी तक आ पहुंचा है। इससे निपटने के लिए कहीं कोई संजीदगी नहीं दिखाई देती। नतीजा यह कि इसका प्रतिकूल असर अब भारत सहित दुनिया भर में दिखाई देने लगा है। कोई कारगर रणनीति नहीं बनी, तो गंभीर स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इससे जनहानि और स्वास्थ्य का जोखिम बढ़ गया है।

फिलहाल मौसम की बदली तस्वीरें डराने लगी हैं। इसी हफ्ते जहां राजस्थान में भीषण लू से लोगों को सजग किया गया, तो दक्षिण और पूर्वोत्तर भारत में बारिश की चेतावनी जारी की गई। लगातार बारिश से इस समय बंगलुरु बेहाल है। वहां जन-जीवन ठहर सा गया है। ऐसे में ‘काउंसिल आन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर’ की रपट को गंभीरता से लेने की जरूरत है। इसके मुताबिक देश में गर्म दिनों की तुलना में गर्म रातों की संख्या बढ़ रही है।

देश के सत्तावन फीसद जिले जोखिम में

मुंबई, दिल्ली, भोपाल, अहमदाबाद और हैदराबाद जैसे घने शहरी इलाकों में गर्मी का जोखिम बढ़ना खतरे की घंटी है। इस समय देश के सत्तावन फीसद जिले जोखिम में बताए जा रहे हैं। इन जिलों में छिहत्तर फीसद आबादी रहती है। गर्म रातों की संख्या बढ़ने से बड़ी संख्या में लोगों की सेहत पर असर पड़ेगा। क्योंकि रात में तापमान अधिक रहने से शरीर को आराम नहीं मिलता।

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दरअसल, उन्हीं इलाकों में गर्म रातों की संख्या बढ़ी है, जहां आबादी सघन है। इससे वस्तुस्थिति को समझा जा सकता है। दरअसल, न तो हमें प्रकृति की चिंता है और न ही कार्बन उत्सर्जन रोकने की फिक्र। आधुनिक जीवन शैली ने भी समस्या बढ़ाई है। यह स्थिति अकेले भारत ही नहीं, अन्य देशों में भी है। भारत सहित पूरे विश्व ने 2024 में सबसे गर्म वर्ष का सामना किया। मौसम के बदल रहे मिजाज को भांपते हुए हम जलवायु संकट के प्रति कब सजग होंगे?