करीब दो महीने पहले बाजार में वस्तुओं की खुदरा कीमतों में कुछ गिरावट की वजह से आम लोगों को जो फौरी राहत मिली थी, वह अब एक बार फिर छिन गई लगती है। मंगलवार को राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय यानी एनएसओ की ओर जारी आंकड़ों के मुताबिक खाने-पीने की वस्तुओं के दाम में बढ़ोतरी की वजह से खुदरा महंगाई पिछले तीन महीने के उच्चस्तर यानी 5.55 फीसद पर पहुंच गई।
दरअसल, बीते अगस्त से खाद्य वस्तुओं के दाम में कमी आने की वजह से महंगाई दर में कमी आ रही थी। इसी क्रम में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई अक्तूबर में 4.87 फीसद पर आ गई थी। तब लोगों को यही लगा था कि पिछले करीब तीन साल से बाजार में बहुत सारी जरूरी वस्तुओं तक जिस तरह उनकी पहुंच नहीं हो पा रही थी, उससे अब राहत मिलेगी। मगर यह भाव ज्यादा दिन नहीं टिक सका। अक्तूबर में रोजमर्रा के जरूरी सामान की कीमतों में नरमी की वजह से जो उम्मीद जगी थी, वह नवंबर में छिन गई।
अब महंगाई की दर भले ही साढ़े पांच फीसद के आसपास यानी रिजर्व बैंक की ओर से अधिकतम सीमा के दायरे में हो, मगर यह उसके करीब भी है। वस्तुओं की खुदरा कीमतें इस स्तर पर पहुंचने के बाद एक बड़ी आबादी खाने-पीने तक को लेकर अपने हाथ समेटने लगती है। हालांकि माना जाता है कि ठंड के मौसम की शुरुआत के बाद खासतौर पर बाजार में सब्जियों की आमद बढ़ने की वजह से कीमतों में कमी आती है, लेकिन ताजा आंकड़े इसके अनुकूल नहीं दिख रहे। सही है कि करीब तीन साल पहले महामारी की वजह से जो हालात पैदा हुए, उससे उबरने में देश को काफी वक्त लगा और अब भी कई क्षेत्र खुद को संभालने की कोशिश में हैं।
मगर बहुत सारे मामलों में बाजार में सहजता आई है और इसका सीधा असर अर्थव्यवस्था पर भी देखने में आया। अब अगर स्थितियों में सुधार आने के साथ-साथ औद्योगिक से लेकर खाद्यान्न उत्पादन के स्तर पर भी उम्मीदें जगी हैं, तब ऐसी स्थिति में बढ़ती महंगाई एक प्रतिकूल स्थितियां ही पैदा करेगा। खासतौर पर खाने-पीने के सामान की कीमतें अगर आम लोगों की पहुंच से दूर होने लगती हैं, तो इसका सीधा असर उनके बाकी खर्चों पर पड़ता है।
महंगाई के मोर्चे पर तात्कालिक राहत मिलने के बाद उम्मीदों के धुंधले होने की वजहें कोई छिपी नहीं रही हैं। खुदरा मुद्रास्फीति में तेजी के लिए खाद्य वस्तुओं की कीमतों में तेज बढ़ोतरी को जिम्मेदार ठहराया गया है। दरअसल, नवंबर महीने में खाने-पीने की वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि हुई थी, जिसके कारण खाद्य महंगाई दर 8.70 फीसद जा पहुंची। यह अक्तूबर में 6.61 फीसद थी।
सवाल है कि अगर इस कारण को चिह्नित किया गया है, तब सरकार के संबंधित महकमे यह सुनिश्चित करने में नाकाम क्यों हो जाते हैं कि बाजार में मांग के अनुपात में जरूरी वस्तुओं, खासतौर पर खाने-पीने के सामान की आपूर्ति में सहजता बनी रहे! यह जगजाहिर तथ्य है कि अगर मौसम में उथल-पुथल से उत्पादन प्रभावित होने या फिर अन्य वजहों से बाजार में किसी वस्तु की आपूर्ति कम होती है, तो इसका फायदा उठा कर कुछ कारोबारी कीमतों के मामले में मनमानी करना शुरू कर देते हैं।
यानी उत्पादन से लेकर आपूर्ति और बिक्री के स्तर पर उपजी मुश्किल या फिर अव्यवस्था को अगर सही समय पर नियंत्रित नहीं किया जाता है तो इसका असर वस्तुओं की खुदरा कीमतों पर पड़ता है। अगर ऐसी स्थिति पैदा होती है तो इसमें दुरुस्त करने की जिम्मेदारी किसकी है?