दिल्ली विश्वविद्यालय के दो कालेजों में मंगलवार को कुछ असामाजिक तत्त्वों की अराजकता की जैसी हरकत सामने आई है, उससे एक बार फिर यही पता चलता है कि छात्रसंघ चुनावों के दौरान आशंका के बावजूद ऐसे हालात से निपटने के कोई इंतजाम नहीं किए गए। खबरों के मुताबिक, रामजस कालेज और मिरांडा हाउस कालेज में छात्रसंघ चुनाव के लिए प्रचार के बहाने कुछ असामाजिक तत्त्व दाखिल हो गए और अराजक हरकतें करने लगे।
आरोप है कि हाथों में डंडे लिए लोगों ने वहां छात्रों से मारपीट की, छात्राओं पर फब्तियां कसीं और कइयों से अभद्र बर्ताव किया। यह एक चिंताजनक स्थिति है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के कालेजों के परिसरों को आमतौर पर सुरक्षित इलाकों के तौर पर देखा जाता है, लेकिन वहां भी छात्र-छात्राओं को आपराधिक हरकतों का सामना करना पड़ रहा है।
इस घटना में अफसोसनाक पहलू यह है कि जिन लोगों पर ऐसी अराजकता फैलाने का आरोप है, वे छात्रसंघ चुनावों में हिस्सा लेने वाले एक प्रमुख छात्र संगठन ‘नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन आफ इंडिया’ के उम्मीदवारों के साथ चुनाव प्रचार करने गए थे! सवाल है कि अगर ये आरोप सही हैं तो जिस संगठन या नेता के साथ बाहरी तत्त्व कालेजों में घुसे, उसकी क्या जिम्मेदारी थी?
किसी भी परिस्थिति में अगर चुनाव प्रचार के दौरान इस तरह की अराजकता सामने आई है, तो यह परिसर के भीतर अपराध के पांव फैलने को ही दर्शाता है। दरअसल, यह किसी एक संगठन तक सिमटा मामला नहीं है, इसलिए इसे लेकर सभी को चिंतित होने की जरूरत है। खासतौर पर कालेज और विश्वविद्यालय में सभी विद्यार्थियों का हित सुनिश्चित करने का दावा करने वाले छात्र संगठनों को इस मसले पर विचार करने की जरूरत है कि चुनाव में जीत के लिए वे जिन तौर-तरीकों को आजमाते हैं, वे कितने सही हैं।
आखिर क्या वजह है कि कालेज या विश्वविद्यालय में किसी समस्या से जुड़े मुद्दे पर केंद्रित विचार आधारित जनमत बनाने के बजाय कोई संगठन प्रचार के दौरान आक्रामक रुख अख्तियार करता है और कई बार हिंसक टकराव के हालात भी पैदा हो जाते हैं? फिर इसमें विश्वविद्यालय और कालेज परिसर में पसरी असुरक्षा की हकीकत का भी पता चलता है, जिसमें बाहरी तत्त्व घुस मनमानी करते हैं और अराजकता फैलाते हैं। यहां विद्यार्थियों की सुरक्षा के लिए कोई तंत्र समय पर सक्रिय नहीं होता।
पिछले कुछ समय से अक्सर ऐसे मामले देखे जा रहे हैं, जिनमें किसी विश्वविद्यालय या फिर कालेज परिसर में बाहर से कुछ लोग घुस जाते हैं और वहां छात्र-छात्राओं से दुर्व्यवहार और मारपीट करते हैं और फरार हो जाते हैं। मामला पुलिस के पास भी पहुंचता है, लेकिन कार्रवाई के स्तर पर ऐसी सख्ती का उदाहरण सामने नहीं आता है, जिससे असामाजिक तत्त्वों को सबक मिले।
खासतौर पर छात्रसंघ चुनावों के दौरान जिस तरह की खींचतान और कई बार टकराव तक का माहौल बन जाता है, उसमें यह सुनिश्चित किए जाने की जरूरत है कि किसी संगठन के उम्मीदवार या उनसे जुड़े नेता के साथ कितने और किस तरह के कार्यकर्ता परिसर में प्रवेश कर सकते हैं। कालेजों में प्रचार से जुड़ी गतिविधियों को लेकर प्रशासन की ओर से एक स्पष्ट नियमन तय होना चाहिए।
यह कालेजों में सुरक्षा-व्यवस्था से भी जुड़ा सवाल है और ऐसी अराजकता की घटनाएं यही दर्शाती हैं कि परिसरों के भीतर भी विद्यार्थी असुरक्षित हैं। सही है कि कई विश्वविद्यालयों के भीतर सुरक्षा-तंत्र खड़ा किया गया है। जरूरत पड़ने पर पुलिस-प्रशासन को भी अक्सर सक्रिय देखा जाता है। इसके बावजूद शैक्षणिक परिसरों का माहौल पूरी तरह सुरक्षित नहीं बनाया जा सका है।