एक संवेदनशील समाज अपने बीच पल रही नकारात्मक प्रवृत्तियों की पहचान करता और उसे नजरअंदाज करने के बजाय दूर करने के लिए उचित रास्ते अपनाता है। विडंबना है कि हमारे आसपास कई ऐसी स्थितियां होती हैं, जिन्हें लेकर समाज आमतौर पर उपेक्षा और कई बार उसे खारिज करने का रवैया अख्तियार कर लेता है। नतीजतन वह समस्या और जटिल होती जाती है। समूचे देश के युवाओं के बीच मादक पदार्थों की बढ़ती लत या नशे की आदत एक ऐसी समस्या है, जिससे निपटने में समाज से लेकर सरकार तक ने एक तरह की उदासीनता ही दर्शायी है।

नशे से मुक्ति की गुंजाइश

बल्कि आमतौर पर मादक पदार्थों के लती युवाओं में सुधार या नशे से मुक्ति की गुंजाइश पैदा करने के बजाय उन्हें सबके लिए खतरनाक व्यक्ति के रूप में देखा जाता है। जबकि यह हमेशा साबित हुआ है कि इस तरह की नकारात्मक सामाजिक प्रतिक्रिया की वजह से जो युवा मादक पदार्थों के दलदल से बाहर आ सकते थे, वे भी अपनी उपेक्षा और खुद को अपमानित किए जाने की वजह से उस संजाल में और ज्यादा उलझते चले जाते हैं।

लोगों के प्रति एक नकारात्मक भाव

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मादक पदार्थों के सेवन के खिलाफ लड़ाई से जुड़े महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर रोशनी डाली और इससे प्रभावित युवाओं का ‘दानवीकरण’ करने के बजाय उनके पुनर्वास पर जोर दिया। यह छिपा तथ्य नहीं है कि समाज में एक बड़ा तबका किसी न किसी तरह के मादक पदार्थ का सेवन करता है, मगर इसके समांतर ऐसे लोगों के प्रति एक नकारात्मक भाव भी होता है।

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जब कोई युवा संगति या अन्य वजहों से धूम्रपान, शराब या इससे ज्यादा घातक नशीले पदार्थों का सेवन करने लगता है, तब उसके प्रति एक आम सामाजिक प्रतिक्रिया ऐसी नहीं होती, जिसमें उसके उस जाल में फंसने के कारणों पर गौर करके उससे निकालने की इच्छाशक्ति दिखे। इसके उलट इस दुश्चक्र में फंसे युवाओं के बारे में नकारात्मक धारणा बनाई जाती है। इसका नतीजा यह होता है कि एक लत का शिकार होकर पहले ही उद्वेलन और द्वंद्व के मनोविज्ञान में फंस गया व्यक्ति अपने प्रति अपमानजनक और उपेक्षित रवैये से चोट खाकर और ज्यादा नशे में डूब जाता है।

नशे का दीर्घकालिक सामाजिक और आर्थिक नुकसान

सवाल है कि नशे के संजाल में फंसे युवा के एक बेहतर मनुष्य होने की उम्मीद पालने वाले समाज को इससे क्या हासिल होता है। व्यवहार मनोविज्ञान की कसौटी पर देखें तो मादक पदार्थों की लत या अनुचित आदत का शिकार हो गए व्यक्ति में भी अपने प्रति संवेदनशील बर्ताव और उचित तौर-तरीके के जरिए बदलाव लाया जा सकता है, उसे इस जाल से बाहर निकाला जा सकता है। इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने मादक द्रव्यों की लत के बहुआयामी कारणों की ओर इशारा किया, जिसमें शैक्षणिक दबाव, पारिवारिक अशांति और नशीली दवाओं की आसान उपलब्धता शामिल है।

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ये कारक ही अक्सर किशोरों और युवाओं के बीच भावनात्मक पलायनवाद के रूप में मादक पदार्थों के सेवन को बढ़ावा देते हैं। पिछले कुछ समय से इन्हीं जटिल परिस्थितियों का फायदा उठा कर अवैध व्यापार करने वाले इसका इस्तेमाल आतंकवाद और हिंसा को बढ़ावा देने में कर रहे हैं, जिसका दीर्घकालिक सामाजिक और आर्थिक नुकसान हो रहा है। ऐसे में नशे का शिकार होने वाले युवाओं की उपेक्षा करने या उन्हें ‘शैतान’ समझने के बजाय उनके प्रति रचनात्मक व्यवहार और उनका पुनर्वास एक ठोस रास्ता है, जो भटके हुए युवाओं को फिर से एक सचेतन और संवेदनशील इंसान बना सकता है।