घर खरीदना आज भी आम आदमी के लिए सपना है। कम ही लोग बैंक से कर्ज लेकर छोटा-सा घर खरीदने की हिम्मत जुटा पाते हैं। यहां तक कि शुरूआती एकमुश्त छोटी राशि देने के लिए भी उनके पास पैसा नहीं होता। इसी का फायदा जमीन-जायदाद के कारोबारी उठाते हैं। घर खरीदने के लिए लोग अपनी जिंदगी भर की कमाई का निवेश करते हैं, लेकिन जब समय आता है, तो भवन-निर्माता और बैंकों का गठजोड़ उनके सारे सपने तोड़ देता है। ऐसे ही मामले में शीर्ष न्यायालय का कड़ा रुख सामने आया है।

दरअसल, लोग किसी तरह घर तो खरीद लेते हैं, लेकिन कई बार उनमें अधूरे निर्माण के कारण, तो कभी बैंक की मनमानी की वजह से कब्जा नहीं मिलता। दरअसल, भवन निर्माताओं और बैंकों के बीच साठगांठ का आलम यह है कि आम आदमी इनके जाल में फंस जाता है और ये उनके सपनों की ‘फिरौती’ वसूलते हैं। कब्जा देने में देरी पर घर खरीदारों की एक याचिका पर शीर्ष अदालत को यह कहना पड़ा है कि भवन निर्माताओं और बैंकों के बीच गठजोड़ की जांच के लिए विशेष जांच टीम का गठन किया जाना चाहिए।

लाखों परिवार किराए के घरों में किसी तरह कर रहे जीवन बसर

गौरतलब है कि घर खरीदने के इच्छुक लोगों को ज्यादातर कारोबारी कर्ज दिलाने का प्रलोभन देते हैं। दूसरी ओर बैंक हर किस्त के तत्काल भुगतान का दबाव डालते हैं। बेतहाशा महंगाई और बेरोजगारी की मार से दबा गरीब इतना पैसा नहीं जोड़ पाता कि वह एक कमरे का भी घर खरीद सके। एक तरफ घरों के किराए मनमाने तरीके से बढ़े हैं, तो दूसरी ओर जमीन-जायदाद की कीमतें आसमान छू रही हैं।

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ऐसे में स्थिर या कम आमदनी और महंगाई के कारण कामकाजी परिवारों की इतनी बचत नहीं कि वे घर का सपना भी देख सकें। यह स्थिति समूचे देश में है। खासतौर पर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में रोजी-रोटी के लिए आए लाखों परिवार किराए के घरों में किसी तरह जीवन बसर कर रहे हैं। ऐसे मामलों में सीबीआइ को मामला दर्ज करने के लिए इशारा कर शीर्ष अदालत ने जता दिया है कि वह इस मामले में गंभीर है।