हिमालयी राज्यों में पहाड़ों के दरकने का सिलसिला आखिर क्यों शुरू हो गया है? हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में हुए हादसे ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है। कहीं यह विकास की धारा में पहाड़ों की प्रकृति से छेड़छाड़ का नतीजा तो नही है! बाढ़ और भूस्खलन की बढ़ती घटनाएं इसी ओर इशारा कर रही हैं। गौरतलब है कि बिलासपुर जिले के बरठीं में मंगलवार शाम को पहाड़ का एक हिस्सा टूट कर निजी बस पर जा गिरा, जिससे कई लोगों की जान चली गई। कहा जा रहा है कि जिस जगह यह हादसा हुआ, वहां पहाड़ से अक्सर पत्थर गिरते थे।
इसके बावजूद उस स्थान को चिह्नित कर सुरक्षा के इंतजाम नहीं किए गए। यह गंभीर चिंता का विषय है कि पहाड़ी राज्यों में भूस्खलन से हादसे लगातार बढ़ रहे हैं, मगर इसे सिर्फ भारी बारिश से जोड़कर ही देखा जाता रहा है। जबकि अनियंत्रित निर्माण कार्यों और वन भूमि के क्षरण के पहलू की अनदेखी की जा रही है।
इसमें दोराय नहीं कि हम पहाड़ों को संरक्षित करने के बजाय उन्हें लगातार क्षति पहुंचा रहे हैं। पहाड़ों की सुंदरता पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है और उनकी सुविधा के लिए वहां नई सड़कों का निर्माण एवं विस्तार के साथ सुरंगें तैयार की जा रही हैं। जाहिर है, इसके लिए पहाड़ों को काटा जा रहा है, जिससे वे अंदर से खोखले हो रहे हैं। सैलानियों की बढ़ती संख्या और वाहनों का दबाव भी पहाड़ों को झेलना पड़ रहा है। रही-सही कसर पेड़ों की अनियंत्रित कटाई ने पूरी कर दी है।
अब पहाड़ इतने कमजोर हो गए हैं कि भारी बारिश या बादल फटने की स्थिति में वे खुद को संभाल नहीं पाते हैं। इसका नतीजा बाढ़ और भारी भूस्खलन के रूप में सामने आता है। नीति निर्माताओं और जनता को यह याद रखना होगा कि विकास के साथ-साथ पर्यावरण एवं प्रकृति का संरक्षण भी बेहद जरूरी है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो इसकी कीमत हमें जानमाल के नुकसान के रूप में चुकानी पड़ सकती है। अब समय आ गया है कि इस विषय पर गंभीरता से विचार किया जाए और संतुलित विकास की ओर कदम बढ़ाया जाए।