हत्या जैसे जघन्य अपराध को लेकर आम धारणा यही होती है कि इसके पीछे कोई बड़ा कारण होगा। मगर पिछले कुछ समय से जिस तरह बेहद मामूली बातों पर भी लोगों में आक्रामकता देखी जाने लगी है, झगड़े होने लगे हैं और कई बार गुस्से में उपजी हिंसा का अंत किसी की हत्या तक के साथ होने लगा है, वह हैरान करता है। यह बहुत धीमी रफ्तार से विकास की कोशिश करते समाज के लिए बेहद चिंताजनक है कि जिन बातों को सामान्य बातचीत से सुलझाया जा सकता है, उसमें नाहक ही किसी की जान तक चली जाती है।
मामूली बात पर हो गई हत्या
कुछ दिन पहले दिल्ली के ज्वाला नगर इलाके में एक व्यक्ति ने अपने एक साथी की पत्थर से हमला कर सिर्फ इसलिए हत्या कर दी कि उसने उससे बीड़ी मांगी थी और इस पर झगड़ा हो गया। प्रथम दृष्टया ऐसी वजह से एक जघन्य अपराध के घटित होने पर विश्वास करना मुश्किल हो जाता है। मगर हाल के वर्षों में बहुत सारे लोगों में एक विचित्र किस्म की आक्रामकता देखी जाने लगी है, जिसका कोई मजबूत आधार नहीं होता।
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निश्चित रूप से यह समाज में बढ़ती हताशा और उससे उपजे गुस्से का उदाहरण है, जिस पर देश और समाज के कर्ताधर्ताओं को सोचने की जरूरत है। अब यह कोई छिपा तथ्य नहीं है कि अर्थव्यवस्था की चमकती तस्वीर में से एक बड़ा तबका गायब रहता है, जो कई तरह की आर्थिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक स्तर पर चुपचाप पसरते संकटों का शिकार होता है। एक अन्य स्तर ऐसे लोगों का भी होता है, जो सभी संसाधनों और सुविधाओं से लैस होते हैं, मगर अहं और वर्चस्व की कुंठा से भरे रहते हैं।
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वे इतना भी सोच पाने में सक्षम नहीं होते कि बहुत छोटी बात पर उनके इस कदर आपराधिक हो जाने के बाद कानून जब अपना काम करेगा, तो उन्हें किस तरह की स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। जाहिर है, सरकार को अपराधों पर लगाम लगाने के लिए कानूनों को सख्ती से लागू करने के साथ-साथ लोगों के भीतर इस तरह बढ़ती आक्रामकता, गुस्से और उसके कारणों को ध्यान में रख कर भी सामाजिक विकास नीतियां तय करने की जरूरत है।