देश के विद्यालयों में मध्याह्न भोजन योजना के तहत विषाक्त या दूषित भोजन खाने से बच्चों के बीमार पड़ने, यहां तक कि मर जाने की घटनाएं अक्सर सामने आती रहती हैं। विडंबना है कि इतना संवेदनशील मामला होने के बावजूद किसी घटना से सबक लेकर सावधानी बरतना जरूरी नहीं समझा जाता। यही वजह है कि एक घटना के कुछ दिनों बाद वैसा ही दूसरा मामला सामने आता रहता है और फिर संबंधित महकमे की ओर से जांच और कार्रवाई के भरोसे के साथ शांत पड़ जाता है।

इलाज के बाद बच्चों की स्थिति स्थिर

ताजा घटना महाराष्ट्र में चंद्रपुर जिले के सावली तहसील के एक विद्यालय में संदिग्ध विषाक्त भोजन के सेवन के बाद सौ से ज्यादा विद्यार्थियों को पेट दर्द की शिकायत और उल्टी की वजह से अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। गनीमत है कि इलाज के बाद बच्चों की स्थिति स्थिर बताई गई, लेकिन अंदाजा लगाया जा सकता है कि भोजन में विषाक्तता अगर थोड़ी ज्यादा होती, तो इतनी बड़ी संख्या में बच्चों के साथ क्या हो सकता था।

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सवाल है कि देश भर के सरकारी विद्यालयों में बच्चों को कुपोषण की समस्या से बचाने के उद्देश्य से चल रही इस योजना में इस व्यापक खामी को दुरुस्त करने के लिए कोई ठोस उपाय क्यों नहीं किए जाते। क्या वजह है कि हर कुछ समय के बाद देश के अलग-अलग इलाकों से इस तरह की घटना सामने आती रहती है, जिनमें विद्यालयों में मिले मध्याह्न भोजन से कई बच्चों की जिंदगी खतरे में पड़ जाती है?

मध्याह्न भोजन योजना में इस तरह की गड़बड़ियों के मामलों की लापरवाही

ऐसे हर मामले के बाद भविष्य में सब कुछ ठीक करने का सरकारी भरोसा जरूर आता है, मगर इसे सुनिश्चित करने की हकीकत यही है कि कुछ समय बाद फिर किसी स्कूल में वैसी ही घटना हो जाती है। यह समझना मुश्किल है कि मध्याह्न भोजन की योजना में इस तरह की गड़बड़ियों के मामलों की अनदेखी या फिर एक दुरुस्त व्यवस्था करने को लेकर लापरवाही क्यों दिखती है!

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क्या ऐसा इसलिए है कि सरकारी विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चे आमतौर पर समाज के कमजोर तबकों से होते हैं? यह अफसोसनाक है कि अभाव से जूझते परिवारों के बच्चों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के मकसद से लागू इस महत्त्वाकांक्षी योजना में कई स्तर पर मौजूद गड़बड़ियों को दूर करने को लेकर सरकार के भीतर इच्छाशक्ति का अभाव दिखता है।