बरसात अब हर वर्ष कुछ नई चुनौतियां लेकर आने लगी है। इस बार अनेक शहरों में जल भराव की वजह से जिस तरह व्यवस्थाओं की पोल खुली, वह आने वाले वर्षों के लिए बड़ी चिंता का संकेत है। उत्तर प्रदेश की विधानसभा में पानी भर गया। दिल्ली में एक कोचिंग केंद्र के तलघर में इतनी तेजी से पानी भर गया कि तीन विद्यार्थी उसमें डूब कर मर गए। जलनिकासी की व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न इस वर्ष बरसात शुरू होने के साथ ही लगने शुरू हो गए।

सबसे अधिक किरकिरी तो अयोध्या में बने नए मंदिर और दूसरी इमारतों को लेकर हुई। पहली ही बारिश में वहां की सड़कें धंस गई, शहर में जगह जगह पानी भर गया। मुंबई और पुणे में पिछले अन्य वर्षों की तुलना में इस वर्ष जलभराव से कुछ अधिक तबाही देखी जा रही है। ऐसा नहीं माना जा सकता कि नगर निकाय और दूसरे संबंधित महकमे जलभराव की समस्या और जल निकासी के रास्तों में आने वाली अड़चनों से अनजान हैं। मगर इस समस्या के समाधान को लेकर उनमें संजीदगी नजर नहीं आती।

एक तथ्य तो उजागर है कि ज्यादातर शहरों में जल निकासी का प्रबंध काफी पुराना पड़ चुका है। उनकी न तो समय पर समुचित सफाई हो पाती है और न टूट-फूट की मरम्मत। इसके अलावा, जल निकासी के रास्तों के आसपास बिजली, टेलीफोन आदि के तारों या फिर पेयजल के पाइपों की मरम्मत के लिए खुदाई होती रहती है। सड़कों की मरम्मत के समय भी जल निकासी के रास्तों का ध्यान नहीं रखा जाता।

इस तरह उन मार्गों में टूट-फूट होती रहती है, उनमें ठोस मलबा भरने से जल निकासी अवरूद्ध होती है। नतीजा, सामान्य से अधिक बारिश होते ही सड़कें और मुहल्ले जलमग्न हो जाते हैं। बरसात के पानी का संचय करने का प्रस्ताव पुराना है, मगर उस तरफ भी ध्यान नहीं दिया जाता। अगर जगह-जगह बरसाती पानी को जमीन के अंदर भेजने का प्रबंध कर दिया जाए, तो इससे जलभराव की समस्या तो कुछ कम होगी ही, भूजल का स्तर भी सुधरेगा। मगर जब नालों और नालियों की सफाई में गंभीरता नहीं दिखती, तो वर्षा जल संचय की योजनाओं को लेकर कितनी उम्मीद की जा सकती है।