पश्चिम बंगाल में आपराधिक घटनाओं को अक्सर राजनीतिक रंग दे दिया जाता है। अब तो ऐसी घटनाओं की जांच करने वालों पर हमले की संस्कृति भी विकसित हो चली है। इसका ताजा उदाहरण राष्ट्रीय जांच एजंसी यानी एनआइए के दल पर स्थानीय लोगों का हमला है। दो महीने पहले इसी तरह संदेशखाली में प्रवर्तन निदेशालय के जांच दल पर ग्रामीणों ने हमला कर दिया था।
ताजा घटना मिदनापुर जिले के भूपतिनगर की है। दरअसल, एनआइए कर्मी करीब सवा साल पहले वहां हुए एक बम विस्फोट के मामले में एक व्यक्ति को गिरफ्तार करने गए थे। तभी स्थानीय लोगों ने उन पर हमला कर दिया। जांच दल की गाड़ियों के कांच टूट गए। इस घटना पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि जांच दल को रात में वहां जाने की क्या जरूरत थी।
क्या उन्हें यह पता नहीं था कि रात के अंधेरे में गांव वाले अनजान लोगों को देख कर हमलावर हो सकते हैं। हालांकि उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि पता नहीं, एनआइए ने स्थानीय पुलिस से सहयोग लिया था या नहीं। जबकि एनआइए अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने स्थानीय पुलिस से सहयोग मांगा था, पर उसका रवैया सहयोगात्मक नहीं था।
ममता बनर्जी ने पूछा है कि चुनाव के वक्त में इस तरह गिरफ्तारियां करने की आखिर वजह क्या है। बता दें कि एनआइए जिस व्यक्ति को गिरफ्तार करने गई थी, वह तृणमूल कांग्रेस का नेता है। अब ममता बनर्जी इस घटना को भाजपा के उकसावे पर की गई कार्रवाई बता रही हैं। यह पहली बार नहीं है जब ममता बनर्जी इस तरह अपने किसी नेता या कार्यकर्ता के पक्ष में सीधे मैदान में कूद पड़ी हैं।
वे तो एक बार अपने कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के विरोध में सीधे थाने में पहुंच गई थीं। राज्य के पुलिस अधीक्षक की अनियमितताओं के खिलाफ जब सीबीआइ ने पूछताछ की कोशिश की थी, तब भी वे धरने पर बैठ गई थीं। चुनावी हिंसा के मामलों में भी वे अक्सर अपने कार्यकर्ताओं का बचाव और भाजपा कार्यकर्ताओं के उपद्रव पर तल्खबयानी करती रही हैं।
यह ठीक है कि भाजपा और तृणमूल के बीच सियासी रस्साकशी चलती रहती है और यह अक्सर केंद्र-राज्य संबंधों में टकराव बन कर भी उभरती है, मगर क्या हर आपराधिक घटना को सियासी रंग दे देने से राज्य की कानून-व्यवस्था प्रभावित नहीं होती! आखिर कानून-व्यवस्था की जवाबदेही राज्य सरकार की है।
बम विस्फोट के जिस मामले में एनआइए जांच कर रही है, उसमें तीन लोगों की मौत हो गई थी। यह राज्य सरकार की भी चिंता का विषय होना चाहिए कि जिस घर में विस्फोट हुआ, वहां इतना ताकतवर बम पहुंचा कैसे और उसका किस मकसद से इस्तेमाल किया जाना था। आपराधिक घटनाओं को सियासी रंग दे देने का नतीजा यह होता है कि राजनीतिक दलों के बीच हिंसा और प्रतिहिंसा का दौर लगातार चलता रहता है। इसे लेकर पश्चिम बंगाल पर लंबे समय से अंगुलियां उठती रही हैं।
चुनाव के दौरान तो व्यापक हिंसा देखी जाती है। इस समय आमचुनाव का माहौल है और ममता बनर्जी अगर एनआइए जांच में सहयोग करने के बजाय इसके पीछे भाजपा का हाथ बता रही हैं, जो जाहिर है, उनके कार्यकर्ताओं को एक तरह से उकसावा ही मिलेगा। इस तरह हिंसा के बल पर कोई राजनीतिक दल अपना आधार बेशक कुछ मजबूत बना ले, पर राज्य की कानून-व्यवस्था कमजोर ही होगी।