सरकारों को शायद अब इस बात की चिंता बिल्कुल नहीं रह गई है कि मुफ्त की योजनाएं चलाने से खजाने पर पड़ने वाले बोझ की भरपाई कहां से हो पाएगी। इसे लेकर सर्वोच्च न्यायालय भी नसीहत दे चुका है और अनेक अर्थ-विशेषज्ञ सावधान करते रहे हैं, पर हर सरकार चुनावी समीकरण को ध्यान में रखते हुए न केवल पहले से चल रही मुफ्त की योजनाओं को जारी रखने का प्रयास करती हैं, बल्कि कुछ नई योजनाएं भी घोषित करती देखी जाती हैं। उत्तर प्रदेश सरकार का इस वर्ष का बजट इसका ताजा उदाहरण है। वहां पहले से विद्यार्थियों, खासकर छात्राओं को मुफ्त लैपटाप, टैबलेट, मोबाइल फोन आदि बांटने की योजना चल रही है।

इस बजट में मेधावी छात्राओं को मुफ्त स्कूटी बांटने के लिए चार सौ करोड़ रुपए का आबंटन किया गया है। आठ लाख आठ हजार सात सौ छत्तीस करोड़ रुपए के इस बजट में पिछले वर्ष की तुलना में 9.8 फीसद अधिक धन का प्रावधान किया गया है। मगर बजट का काफी बड़ा हिस्सा मथुरा-वृंदावन और मीरजापुर जैसी जगहों पर धार्मिक गलियारों के विकास, मंदिरों के जीर्णोद्धार-पुनरुद्धार और द्रुतगामी मार्गों के लिए आबंटित किया गया है। इसके अलावा, पहले से चल रही लखपती दीदी जैसी योजनाओं का दायरा और बढ़ाने के लिए बड़ी राशि आबंटित की गई है।

बजट सरकार के कामकाज का आईना होते हैं। वे इस बात का पता देते हैं कि कोई सरकार अगले एक वर्ष में क्या काम करने जा रही है और उसकी प्राथमिकता क्या होगी। अपेक्षा की जाती है कि सरकारें जनकल्याण और सामाजिक कल्याण के कार्यों पर अधिक खर्च करें। ऐसी योजनाओं को प्रोत्साहित करें, जिससे राज्य और देश के आर्थिक विकास को बल मिले। मुफ्त की योजनाओं का व्यापक अनुभव यही रहा है कि वे अनुत्पादक साबित होती हैं। उनसे सरकार पर वित्तीय बोझ ही बढ़ता है। पिछले दिनों सर्वोच्च न्यायालय ने कड़े शब्दों में कहा कि सरकारें मुफ्त की योजनाएं चला कर लोगों को अकर्मण्य बना रही हैं।

इसके बावजूद अगर उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने बजट में चार सौ करोड़ रुपए मुफ्त स्कूटी बांटने के लिए आबंटित किए हैं, तो जाहिर है, उसका मकसद अगले चुनाव में लोगों को आकर्षित करने का है, इसके कोई उत्पादक नतीजे नहीं निकलने वाले। इसके बरक्स विचित्र है कि सरकार ने उच्च शैक्षिक संस्थानों और राज्य विश्वविद्यालयों में आधारभूत ढांचा मजबूत करने के लिए महज पचास करोड़ रुपए आबंटित किए हैं। नए बन रहे महाविद्यालयों के लिए भी पचास करोड़ रुपए तय किए हैं।

उत्तर प्रदेश में शिक्षा के स्तर को लेकर अनेक बार अंगुलियां उठती रही हैं। बोर्ड परीक्षाओं में नकल, प्रतियोगी परीक्षाओं में पर्चाफोड़ और अनियमितताओं आदि को लेकर सवाल उठते रहे हैं। ऐसे में अगर मेधावी छात्राओं को मुफ्त स्कूटी दे भी दी जाए, तो उनके जीवन में कितना बदलाव आ जाएगा, कहना मुश्किल है। अगर शिक्षा का स्तर सुधारने को लेकर सरकार सचमुच संजीदा होती, तो वह शैक्षिक संस्थानों के बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाने, विद्यार्थियों के लिए शैक्षणिक सुविधाएं बेहतर बनाने, स्कूल-कालेजों में अध्यापकों के खाली पदों पर भर्ती आदि पर जोर देती। स्कूटी, लैपटाप, टैबलेट, मोबाइल जैसे साधन देने से वास्तव में उन्हें कितना लाभ मिलेगा, इसका आकलन शायद नहीं किया गया। हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार इकलौती नहीं है, जो ऐसी मुफ्त की योजनाओं पर जोर दे रही है, ज्यादातर राज्य सरकारों ने यही रास्ता पकड़ रखा है।