आधुनिक तकनीकी के दौर में आम लोगों की यह स्वाभाविक उम्मीद है कि उनके रोजमर्रा के कामकाज में सुविधा हो, लेकिन साथ ही उसमें कोई नुकसान न हो। लेकिन सच यह है कि जैसे-जैसे तकनीक पर लोगों की निर्भरता बढ़ रही है, उसमें कुछ नए तरह के जोखिम पैदा हो रहे हैं। खासतौर पर आर्थिक गतिविधियों या लेनदेन के मामले में बहुत सारे लोगों ने इंटरनेट या डिजिटल माध्यम का चुनाव उत्साह से इसलिए किया कि सुविधा और पारदर्शिता के साथ सुरक्षा भी सुनिश्चित हो।
मगर हकीकत यह है कि साइबर तंत्र के विस्तार के समांतर लोग इसके खतरों का भी सामना कर रहे हैं। भारतीय रिजर्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट 2022-23 में कहा गया है कि बैंकिंग क्षेत्र में धोखाधड़ी के मामले बढ़े हैं और इसके तहत सबसे ज्यादा ठगी का निशाना डिजिटल लेनदेन रहा। रिपोर्ट के मुताबिक इस वित्त वर्ष में धोखाधड़ी के तेरह हजार पांच सौ तीस मामले दर्ज किए गए, जो पिछले साल के मुकाबले काफी ज्यादा हैं। इसमें ऋण, कार्ड और इंटरनेट श्रेणी में सबसे ज्यादा ठगी की रिपोर्ट हुई। वित्त वर्ष 2021-22 में धोखाधड़ी के कुल नौ हजार सत्तानबे मामले सामने आए थे। हालांकि इसमें शामिल राशि में इस साल कमी आई है।
दरअसल, इंटरनेट के विस्तार के साथ इससे जुड़ी सुविधाएं भी तेजी से लोगों के जीवन में अपनी जगह बनाती जा रही हैं। आज देश का एक खासा हिस्सा जरूरी खरीदारी से लेकर लेनदेन तक के लिए डिजिटल माध्यम का उपयोग कर रहा है। समस्या यह है कि लेनदेन या खरीदारी का यह जरिया जितना सुविधाजनक है, उतना ही संवेदनशील भी है। अगर इसका उपयोग करने में कोई चूक या लापरवाही होती है तो एक झटके में बड़ा नुकसान हो जाता है।
इसी तरह, अगर कोई ठग किसी व्यक्ति को बातों में फंसा कर उससे आर्थिक लेनदेन से संबंधित कुछ संवेदनशील ब्योरे हासिल कर ले तो बैंक खाते से पैसे एक पल में गायब हो जाते हैं। पुराने दौर की परंपरागत ठगी के बाद अब डिजिटल माध्यम में भी जाल फैला कर धोखाधड़ी करने वालों ने एक नई समस्या खड़ी कर दी है। सरकार की ओर से इस तरह के अपराध के संजाल से बचाव के लिए सुरक्षा तंत्र बनाने के दावे तो किए जाते हैं, लेकिन इस पर ठोस तरीके से रोक लगाना मुमकिन नहीं हो पाया है।
रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में एक अहम पहलू यह उभर कर सामने आया है कि पिछले तीन साल में निजी बैंकों ने सबसे ज्यादा धोखाधड़ी की सूचना दी है, लेकिन राशि के हिसाब से देखा जाए तो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से 2022-23 के दौरान सबसे अधिक पैसे गायब हुए। मुश्किल यह है कि बैंकिंग गतिविधियों या लेनदेन में सुविधा होने की वजह से लोग इस माध्यम का चुनाव तो कर लेते हैं, लेकिन इसके सुरक्षित उपयोग के लिए जरूरी प्रशिक्षण ज्यादातर लोगों के पास नहीं होता है।
औपचारिक तौर पर स्मार्टफोन या कंप्यूटर में इसके उपयोग से संबंधित कुछ तरीके जान कर लोग धड़ल्ले से पैसों का लेनदेन करते हैं और इसी क्रम में कभी-कभी वे साइबर अपराधियों के जाल में फंस जाते हैं। अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि ज्यादातर लोग आधार कार्ड में दर्ज सूचनाएं भी किसी से साझा करते हुए सतर्कता नहीं बरतते। जबकि इस डिजिटल दौर में आधार नंबर और बैंक खाते से जुड़ी संवेदनशील जानकारियां सबसे ज्यादा जोखिम कारण बन रही हैं। आम लोगों को डिजिटल माध्यम का इस्तेमाल करने को लेकर प्रोत्साहित किया जा रहा है, लेकिन यह ध्यान रखने की जरूरत है कि इसी अनुपात में साइबर सुरक्षा की दीवार मजबूत नहीं की गई तो यह सुविधा के बजाय जोखिम का जरिया बन जाएगा।