देश में गिरोहबाजों का तंत्र सुरक्षा एवं जांच एजंसियों के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। अपराध की दुनिया के ये कुख्यात सरगना कई बड़ी वारदातों को अंजाम देने के बाद आसानी से विदेश भाग जाते हैं और वहीं से अपने गिरोह को संचालित करते हैं। पिछले कुछ वर्षों में तमाम सख्ती के बावजूद ऐसे कई गिरोह पनपे, जो समाज के लिए बड़ा खतरा बन गए। लारेंस बिश्नोई गिरोह भी इनमें से एक है। लारेंस के सुरक्षा एजंसियों की गिरफ्त में आने के बाद उसका भाई अनमोल अमेरिका से इस गिरोह को संचालित कर रहा था।
मगर, राष्ट्रीय जांच एजंसी ने अब उसे अमेरिका से प्रत्यर्पित कर गिरफ्तार कर लिया है। वह राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता बाबा सिद्दीकी की हत्या, अभिनेता सलमान खान के घर पर गोलीबारी और पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला की हत्या सहित कई अन्य अपराधों में वांछित था।
अनमोल की गिरफ्तारी को भले ही जांच एजंसी की बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है, लेकिन सवाल है कि इस तरह के अपराधी सुरक्षा एजंसियों को चकमा देकर विदेश कैसे फरार हो जाते हैं?
इसे सुरक्षा एजंसियों की विफलता नहीं तो और क्या कहा जाएगा कि लारेंस बिश्नोई गिरोह ने दिल्ली, पंजाब और गुजरात सहित तेरह राज्यों में अपना तंत्र खड़ा कर लिया था। यही नहीं, इस गिरोह ने अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, दुबई और पुर्तगाल जैसे देशों में भी अपनी जड़ें जमा लीं।
क्या कारण है कि तमाम संसाधनों और तकनीकी दक्षता के बावजूद राज्यों की पुलिस एवं अन्य सुरक्षा एजंसियां इस तरह के गिरोहों पर लगाम कसने में उतनी सतर्क एवं सजग नजर नहीं आतीं, जितनी उनसे अपेक्षा की जाती है।
लारेंस और अनमोल के अलावा और भी कई गिरोहबाज विदेश से देश के भीतर आपराधिक वारदातों को अंजाम देने की साजिश रचते रहते हैं। हालांकि, केंद्र सरकार ने ऐसे गिरोहबाजों की धरपकड़ के लिए पिछले कुछ समय से अपने कूटनीतिक प्रयासों को तेज किया है और मुंबई हमले के साजिशकर्ताओं में शामिल तहव्वुर हुसैन राणा को अमेरिका से भारत लाना इन्हीं प्रयासों का नतीजा है। उम्मीद है कि सरकार और सुरक्षा एजंसियां विदेश में बैठे आर्थिक अपराधियों सहित अन्य गिरोहबाजों को भी न्याय के कठघरे में लाएगी।
