पिछले कुछ समय से विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार गिरावट का रुख बना हुआ है। बीते सितंबर में विदेशी मुद्रा भंडार 704.89 अरब डालर के अपने सार्वकालिक ऊंचे स्तर पर पहुंच गया था, मगर उसके बाद से अब तक करीब अड़तालीस अरब डालर की कमी दर्ज की जा चुकी है। शुक्रवार को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार में 3.23 अरब डालर की कमी दर्ज की गई। अब वह 654.86 अरब डालर पर पहुंच गया है।
इस सप्ताह विदेशी मुद्रा भंडार की सभी आस्तियों में गिरावट दर्ज की गई। इससे पहले 15 नवंबर वाले हफ्ते में 1998 के बाद सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई थी। उस वक्त विदेशी मुद्रा भंडार 17.76 अरब डालर गिर कर 657.892 अरब डालर पर पहुंच गया था। इस तरह विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार गिरावट की मुद्रा स्वाभाविक रूप से सरकार के लिए चिंता का विषय है।
पिछले महीने हुई थी सबसे बड़ी गिरावट
उधर, डालर के मुकाबले रुपए की कीमत भी लगातार गिर रही है। पिछले महीने रुपए की कीमत गिर कर 84.41 के अपने सार्वकालिक निचले स्तर पर पहुंच गई थी। विशेषज्ञों का कहना था कि रिजर्व बैंक रुपए की कीमत में गिरावट को रोकने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार से डालर निकाल कर बेच रहा होगा।
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विदेशी मुद्रा भंडार की मजबूती से न केवल आर्थिक संकट के समय सुरक्षा का भरोसा बना रहता है, बल्कि इससे अर्थव्यवस्था की बेहतरी का भी संकेत मिलता है। इसमें गिरावट की कई वजहें होती हैं। विदेशी मुद्रा भंडार में कमी से जाहिर होता है कि विदेशी निवेशक अपना हाथ खींच रहे हैं। नवंबर के तीसरे हफ्ते में भारी गिरावट दर्ज हुई तो उसकी बड़ी वजह यही थी। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे आते ही विदेशी निवेशकों ने अपने पैसे निकाल कर अमेरिका का रुख कर लिया।
व्यापार घाटा बढ़ने की वजह से विदेशी भंडार पर बुरा असर
जाहिर है, इसका असर विकास परियोजनाओं पर पड़ता है। सरकार एक ओर तो प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ने का दावा करती है, दूसरी ओर उसके विदेशी मुद्रा भंडार में छीजन दर्ज हो रही है। विशेषज्ञों का यह कयास निर्मूल नहीं है कि रिजर्व बैंक ने विदेशी मुद्रा भंडार से डालर बेच कर रुपए की गिरती कीमत को रोकने का प्रयास किया। इसके अलावा, विदेशी भंडार पर सबसे सबसे बुरा असर व्यापार घाटा बढ़ने की वजह से पड़ता है। छिपी बात नहीं है कि तमाम दावों के बावजूद निर्यात घटा और आयात बढ़ा है। इस अंतर को रोकने के लिए सरकार ने घरेलू उत्पाद को प्रश्रय देने का प्रयास किया, मगर उसका बहुत लाभ नजर नहीं आया।
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हालांकि भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार अभी इतना कमजोर नहीं है कि उसे लेकर चिंता की जाए। सरकार ने संसद में कहा भी कि अनेक अन्य देशों की तुलना में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार सुदृढ़ है। दुनिया का चौथा मजबूत विदेशी मुद्रा भंडार है। मगर जिस तरह इन दिनों महंगाई का रुख ऊपर की तरफ बना हुआ है, विकास दर में असंतुलन दर्ज हो रहा है।
निर्यात बढ़ाने की सलाह
प्रति व्यक्ति आय नहीं बढ़ पा रही, दुनिया के कई देशों में संघर्ष के चलते आपूर्ति शृंखला गड़बड़ हो गई है, सरकार अपने विकास लक्ष्य की तरफ बढ़ पाने में कुछ थकान महसूस करने लगी है, उसमें विदेशी मुद्रा भंडार का कमजोर होना मुश्किलें तो खड़ी कर ही सकता है। लंबे समय से निर्यात बढ़ाने की सलाह दी जा रही है। जब तक इस दिशा में बेहतरी नहीं आएगी, विदेशी मुद्रा भंडार की मजबूती को लेकर कोई दावा करना कठिन बना रहेगा।