चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद में वृद्धि दर अनुमान से कहीं अधिक दर्ज होने से स्वाभाविक ही अर्थव्यवस्था को लेकर उत्साह का वातावरण है। भारतीय रिजर्व बैंक ने इस तिमाही में वृद्धि दर 6.5 फीसद रहने का अनुमान लगाया था, मगर यह 7.6 फीसद दर्ज हुई है। इसमें निर्माण और विनिर्माण क्षेत्र का प्रदर्शन पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में बहुत अच्छा रहा।

पिछले वर्ष की दूसरी तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर जहां -3.8 रही, वहीं इस वर्ष 13.9 फीसद दर्ज हुई। इसी तरह निर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर पिछले वर्ष की 5.7 फीसद की तुलना में 13.3 फीसद देखी गई। इन दोनों क्षेत्रों के बेहतर प्रदर्शन के चलते सेवा, कृषि आदि अन्य क्षेत्रों में वृद्धि दर धीमी रहने के बावजूद सकल वृद्धि दर पिछले वर्ष की 6.2 फीसद की तुलना में इस वर्ष 7.6 फीसद दर्ज हुई।

निश्चित रूप से इस वृद्धि दर से अगली दो तिमाहियों में वृद्धि दर का दबाव कम हो गया है और रिजर्व बैंक के इस वर्ष की कुल वृद्धि दर 6.5 फीसद के लक्ष्य तक पहुंचना आसान हो गया है। रिजर्व बैंक का मानना है कि अगली दो तिमाहियों में भी प्रदर्शन बेहतर रहेगा। स्वाभाविक ही, इससे अर्थव्यवस्था के और मजबूत होने की उम्मीद बढ़ गई है।

इस समय जब दुनिया के तमाम देश मंदी और महंगाई के दौर से गुजर रहे हैं, तब भारत में वृद्धि दर का रुख ऊपर की तरफ रहना निवेश की संभावनाओं को प्रबल बनाता है। कोरोना महामारी और पूर्णबंदी के बाद निर्माण और विनिर्माण क्षेत्र एक तरह से ठप पड़ गए थे, जिसका असर विकास दर पर साफ दिखने लगा था।

मगर इन क्षेत्रों ने जल्दी ही रफ्तार पकड़ ली और इस वर्ष की दूसरी तिमाही तक पहुंच कर अपनी पुरानी लय में लौट आए हैं। हालांकि दूसरे क्षेत्रों में चुनौतियां अभी बनी हुई हैं। सेवा क्षेत्र, जिसमें होटल, व्यापार, परिवहन और संचार में मंदी देखी गई है। इस क्षेत्र में पिछले वर्ष की दूसरी तिमाही में 9.4 फीसद के मुकाबले इस बार महज 5.8 फीसद वृद्धि दर्ज हुई।

इसी तरह कृषि क्षेत्र का प्रदर्शन पिछले वर्ष के 2.5 फीसद की तुलना में 1.2 फीसद देखा गया। इन क्षेत्रों में सबसे अधिक लोग काम पर लगे होते हैं, इसलिए यह चिंता का विषय है। इस वृद्धि दर में एक विरोधाभास यह भी है कि पिछले वर्ष के 8.3 फीसद की तुलना में निजी व्यय घट कर 3.1 फीसद दर्ज हुआ, फिर उधारी की दर में भी बढ़ोतरी दर्ज हुई, इसके बावजूद निर्माण और विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर में उछाल देखा गया।

अर्थव्यवस्था में स्थायी मजबूती के लिए सभी क्षेत्रों के सकल घरेलू उत्पाद में संतुलित वृद्धि दर जरूरी होती है। इस दृष्टि से भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने चुनौतियां अभी समाप्त नहीं हुई हैं। फिर, महंगाई पर काबू पाना कठिन बना हुआ है, वैश्विक उथल-पुथल की वजह से कच्चे तेल की कीमतें नीचे नहीं आ रहीं। छोटे, मझोले और सूक्ष्म उद्योगों की स्थिति अब भी बेहतर न होने की वजह से रोजगार का संकट बना हुआ है।

राजकोषीय घाटा कम नहीं हो पा रहा। आयात और निर्यात में संतुलन कायम करना कठिन बना हुआ है। घरेलू निवेश, लोगों की क्रयशक्ति और निर्यात नहीं बढ़ेगा, तो विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर का प्रभावित होना तय है। हालांकि रिजर्व बैंक इन पहलुओं पर नजर रखते हुए सावधानी बरत रहा है, पर अर्थव्यवस्था के लिए जोखिम कम नहीं हुए हैं।