अच्छी बात है कि सरकार ने किसानों की सारी मांगें मान ली और संयुक्त किसान मोर्चा ने आंदोलन समाप्ति की घोषणा कर दी। शनिवार को दिल्ली की सीमाओं से किसान वापस लौटना शुरू कर देंगे और पंद्रह तारीख तक सीमाओं को पूरी तरह खाली कर दिया जाएगा। हालांकि संयुक्त किसान मोर्चा के आंदोलन समाप्ति की घोषणा के साथ ही किसानों ने अपने तंबू उखाड़ने शुरू कर दिए हैं। यह भी अच्छी बात है कि आंदोलन की समाप्ति पर किसान संतुष्ट और उत्साहित नजर आए, उनके मन में अब किसी तरह की कड़वाहट नहीं है।

पिछले एक साल तक जिस तरह सरकार और किसानों के बीच तनातनी, तल्खी, अविश्वास और जोर आजमाइश का वातावरण बना हुआ था अब वह पिघल चुका है। सरकार ने भी आखिरकार लचीला रुख अपनाते हुए किसानों की हर मांग मानी और सौहार्दपूर्ण माहौल बनाने का प्रयास किया। उसने तीनों विवादित कानूनों को तो संसदीय प्रक्रिया के तहत वापस ले ही लिया, पराली जलाने, बिजली बिल, न्यूनतम समर्थन मूल्य, किसानों के खिलाफ दर्ज मुकदमे वापस लेने और अंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले किसानों के परिजनों को मुआवजा देने संबंधी मांगों को भी मान लिया।

विवादित कानूनों की वापसी के बाद भी लग रहा था कि किसान पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं, क्योंकि उनकी तीन अहम मांगों पर सरकार का कोई सकारात्मक रुख नजर नहीं आ रहा था। न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर उसकी तरफ से कोई बयान नहीं आ रहा था। फिर आंदोलन के दौरान जान गंवा चुके किसानों के मुआवजे के मसले पर सरकार ने कहा कि उसके पास आधिकारिक आंकड़े नहीं हैं, इसलिए इस पर विचार करना संभव नहीं है। इसके अलावा किसानों पर से मुकदमे वापस लेने के मामले में केंद्र ने गेंद राज्य सरकारों के पाले में सरकाने की कोशिश की थी।

इस पर किसान अड़ गए। उन्हें शक था कि अगर केवल कृषि कानूनों की वापसी से संतुष्ट होकर आंदोलन वापस ले लिया गया तो न्यूनतम समर्थन मूल्य के मसले पर सरकार अपने ढंग से फैसले करती रहेगी। जिन किसानों के खिलाफ मुकदमे दर्ज हैं, उन्हें अदालती प्रक्रिया में घिसटते रहने को छोड़ कर वे नहीं जा सकते थे। मुआवजे के मामले में वे किसी भी तरह की टालमटोल को स्वीकार करने को तैयार नहीं थे। आखिराक गृहमंत्री ने इसमें पहल की और फिर किसानों ने एक पांच सदस्यीय समिति गठित कर दी। तब मांगों को लेकर समझौतों की प्रक्रिया में तेजी आई।

हालांकि अब भी किसानों के मन में हल्का अविश्वास है। सरकार ने लिखित भरोसा दिलाया है कि वह किसानों पर से मुकदमे वापस ले लेगी, पर किसान उससे संबंधित आदेश प्राप्त कर लेना चाहते हैं। वह एक प्रक्रियागत काम है, जो शनिवार तक पूरा हो जाएगा। न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर किसानों ने अड़ियल रुख इसलिए भी नहीं दिखाया कि इसका कानूनी प्रारूप तैयार करना थोड़ा जटिल काम है।

हालांकि स्वामिनाथन समिति न्यूनतम समर्थन मूल्य का फार्मूला पहले ही तय कर चुकी है, पर इसे कानूनी रूप देने के लिए खासा मंथन करना पड़ेगा। सरकार समिति में किसानों के साथ विचार-विमर्श करके तय समय के भीतर इसे अंतिम रूप दे देगी। हालांकि संसद में इसे कब तक मंजूरी मिल पाएगी, देखने की बात होगी। पर अभी संतोष की बात यही है कि दोनों पक्षों ने चलीला रुख अपनाते हुए आंदोलन को एक सकारात्मक अंत तक पहुंचाया और इससे जनतंत्र पर लोगों का भरोसा प्रगाढ़ हुआ है।